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Taaza Tadka

पहला अफ़ेयर – काश मैं चुप न रहती

Blog Kahi Ankahi 8 October 2016
जिंदगी में ऐसा भी मुकाम आता है , जब इंसान का दिल कुछ कहता है और दिमाग़ कुछ और | तक़दीर भी क्या चीज है जो इंसान का ना जाने कितनी बार इम्तिहान लेती है | कभी इंसान को फ़र्ज़ की खातिर अपना दोस्त , साथी सब कुछ खोकर भी मुस्कुराना पड़ता है |
मेरी जिंदगी में भी ऐसा ही कुछ हुआ , प्यार क्या होता है , ये तो मैं नहीं जानती , लेकिन शायद प्यार वही होता है जो दिल में दर्द और ख़ुशी भर देता है | जब कभी मेरा दिल अपनी खोयी हुई तस्वीरों को ढूंढने की कोशिश करता है , तब वह बीते दिन याद आते हैं जो मेरे जीवन में शायद सबसे कीमती थे |
बात उस समय की है जब मैं ग्यारहवीं क्लास में पढ़ती थी , उस समय हमलोग आगरा में रहते थे | मेरे साथ मेरे पापा के दोस्त के बेटे भी पढ़ते थे , राज मुझसे एक साल सीनियर थे , वह दिखने में बहुत खूबसूरत थे | हमारे कॉलेज की सभी लड़कियां उन पर मोहित थी , पर वे किसी से भी बात नही करते थे |जैसे उनका नाम था बिलकुल वैसे ही थे , उनकी हर बात उनके दिल में राज़ बनकर ही रहती थी |
वे पहली बार जब हमारे घर आये तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई वह मुझे प्रथम आने की बधाई देने आये थे | कुछ दिन बाद मेरा जन्मदिन था और मैं अपनी सहेलियों के साथ राज़ को भी बुलाना चाहती थी | जब ये बात मेरे पापा को पता चली तो उन्होंने अपनी तरफ से राज़ के सभी घरवालों को डिनर पर बुलाया , मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था |
दूसरे दिन मैं कॉलेज गयी तो राज़ को न देखकर मेरी निगाहें सारे दिन उनको ढूंढती रही , अगले दिन राज़ मेरी किताब देने मेरे घर आये तो किताब में उनका लिखा हुआ खत मिला |
डिअर अनु ,
    मैंने तुमसे कई बार कहने की कोशिश की, लेकिन हिम्मत नहीं हुई , हमेशा डरता रहा की कहीं तुम नाराज न हो जाओ | हकीकत यह है की मैं तुम्हे सात सालों से चाहता हूँ , मेरे घरवाले भी तुम्हे पसंद करते हैं | क्या तुम भी मुझे पसंद करती हो ? मुझे प्यार करती हो ?
खत को पढ़ने के बाद मुझे एक झटका सा लगा , बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को सम्भाला और यही सोचती रही की मैं क्या करूँ ?
सच तो यह है की मैं भी राज़ को बहुत प्यार करती थी , लेकिन अपने पापा के डर की वजह से मैंने राज़ के खत का जवाब नहीं दिया , क्योंकि मेरे पापा इस रिश्ते को कभी स्वीकार न करते | मैंने कॉलेज जाना भी कम कर दिया , इसी तरह महीनों गुज़र गए |
एक दिन अचानक राज़ के पिता हमारे घर आये , उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा था | उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा की बेटे कल आप सभी को हमारे घर डिनर पर आना है , कल प्रिया के साथ राज़ की सगाई है | उस वक़्त मेरे दिल पर क्या गुज़र रही थी ये तो मैं ही जानती हूँ | मेरे दिल में सैकड़ों तूफ़ान उठ रहे थे पर मैं समुंद्र की तरह शांत दिखाई दे रही थी | दूसरे दिन घर के सभी लोग राज़ के घर सगाई पर गए पर मैं तबियत ठीक न होने का बहाना बनाकर घर पर ही रह गयी | मैं अपने ख़यालों में ग़ुम लेटी थी की राज़ का फ़ोन आया ,
” अनु , काश तुम चुप न रहती , तुमने ऐसा क्यों किया ? कुछ तो वजह होगी , कोई तो जवाब होगा तुम्हारा ….”
बिना कोई जवाब दिए मैंने फ़ोन रख दिया और यही सोचती रही की काश मैं चुप न रहती |
मेरी आँखों से न जाने कितने आंसू बहते रहे , आंसू का हर एक कतरा मेरी बर्बादी की कहानी लिखता गया |
Originally written by – Anjali