एक सवाल उठता है मुख्यमंत्री महोदय की यात्रा के समापन के बाद की क्या अब किसी सिद्धार्थ को हम गौतम बुद्ध नहीं बनाने देंगे।
जब भी देश का कोई बड़ा नेता आता है तब रातोंरात सड़के बन जाती हैं, गमले में नकली रजनीगंधा महका दिए जाते हैं, हर जगह रोड लाईट लग जाती है, यथार्थ से उनको इतना दूर रखा जाता है मानो अगर वे हकीकत देख लेते है तो कौन सी तबाही आ जायेगी, ये सारे लोग सुद्धोधन की भूमिका में हो जाते हैं, और आज के सिद्धार्थों का किसी चन्ना जैसे सारथि पर न विश्वास रहा न ही वैसा सम्बन्ध।
और जब उनको सब कुछ चमचमाती हुई ही नजर आती है तो फिर किस बात की गला फाड़ू रोना रोते हो आप सभी? क्या संतरी क्या मन्त्री सारे लोग रंगाई पुताई में लगे होते है।
पहले जो सड़के दो दो चार साल पर बनती थी और फिट रहती थी आज वो आये दिन किसी वीआईपी के आने पर बनती रहती है पर उसके जाने के ठीक बाद धुल बन जाती हैं। ईमानदारी की चुरकुन भी नहीं लगती और नियति के अभाव में बने इन सड़कों की मियाद से क्या करेंगे आप ?
अतः आज भी हो सकता है सब कुछ लेकिन जैसे ही सड़कों पर जहा आये दिन कचरे बिखरे रहते हैं वहां जब किसी वीआईपी के आने पर जब झाड़ू और पोछे की बौछारें होती है तो निश्चित उनका विरोध इस कदर चाहिए की आने वाले मुखिया को हकीकत के दर्शन हो सकें।
क्योंकि लोकशाह कभी सही कानो और आँखों तक जनता की पीड़ा को पहुचने नहीं देना चाहते , अतः अब कोई गौतम बुद्ध नहीं बनाने दिया जायेगा ,,, कहीं सारनाथ भी उनसे ख़ाली न हो जाए यह भय है।