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Taaza Tadka

२०१४ में कांग्रेस अब २०१७ में बीजेपी, ‘कड़े शब्दों में निंदा’ का काम जनता पे छोड़ो

News World Taaza Tadka 25 April 2017
आज एक बार फिर भारत माता के बेटों की अर्थियां रातो रात उठी हैं | हर मुद्दे की तरह इस बार ये मुद्दा भी विपक्ष रो कर और चिल्ला चिल्ला कर संसद में उठा रहा है |

११ मार्च २०१४ , सुबह १० बज के १५ मिनट पर , सुकमा छत्तीसगढ़ , १६ जवान शहीद हुए | जिसमें ११ CRPF के जवान थे | उस समय उस दिन को भारत के इतिहास में एक बड़े काले दिवस के रूप में घोषित करने की विपक्ष की मांग को भला हम कैसे भूल सकते हैं ?

हम कैसे भूल सकते हैं कि २०१४ मार्च में सत्ता पक्ष में बैठी कांग्रेस के ऊपर उसकी सरकार कि नाकामी का ठीकरा फूटा था |

टीवी पक्ष और मीडिया हाउस खुद भी इसी बात की बहस में लगी थी कि यदि सत्ता में सरकार कांग्रेस की है तो जिम्मेदारी भी कांग्रेस की ही होगी | देखिये किस तरह अरनब गोस्वामी स्टूडियो में सभी पक्ष से सिर्फ एक ही मुद्दे पर बहस कर रहे हैं

हालांकि कहा जाता है कि विपक्ष जिस दिन बोलना बंद कर देगा देश में सत्ता पक्ष काम करना बंद कर देगा और विपक्ष कि बात कही न कही सही भी थी | यदि कांग्रेस सत्ता में थी तो जवाबदेही किसकी होगी ?

किन्तु कल की घटना के बाद जिस तरीके का बड़बोलापन सामने आ रहा है उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि, जब तक विपक्ष में रहो सिर्फ तब तक ही देश के प्रति जिम्मेदारी को समझो |

जी हाँ , आज एक बार फिर भारत माता के बेटों की अर्थियां रातो रात उठी हैं छत्तीसगढ़ से और इस बार भी भारत देश में एक पक्ष सत्ता पक्ष और एक पक्ष विपक्ष का है |

हर मुद्दे की तरह इस बार ये मुद्दा भी विपक्ष रो कर और चिल्ला चिल्ला कर संसद में उठा रहा है | राजनितिक पार्टियों के लोग जान बुझ कर संसद को भंग करने की मांग कर रहे हैं | देशभक्ति में संसद की कुर्सियां तोड़ते हुए खुद को बाहुबली दिखा रहे हैं |

बस अंतर है तो इतना की उस बार कांग्रेस पार्टी सत्ता पक्ष और भारतीय जनता पार्टी विपक्ष थी जबकि इस बार इसके ठीक विपरीत भारतीय जनता पार्टी सत्ता में और कांग्रेस पार्टी विपक्ष में है |

हालाँकि इस बार थोड़ी सी देशभक्ति ज्यादे है , वो क्या है ना JNU के नारेबाजी इस बार सत्ता पक्ष के हिमायती मीडिया वालों का हथियार है |

किन्तु इन सबके बीच कार्यवाही के नाम पर जो एक बात दोनों ही साल सत्ताधारियों के मुख से निकला था वो ये कि, “हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं” |

आदरणीय गृहमंत्री जी आखिर कब तक , हम कड़े शब्दों में निंदा करेंगे ? और यदि यही करना है तो क्या जरुरत थी २०१४ के हमले के बाद उस समय की सरकार पर हमला बोलने की ?

कृपया होश में आइये और इस तरह के हमले पर मिलजुल कर विवेचना करके उपाय निकालिये | कभी तो राजनीति से बाहर आइये |

अनुरोध है कि, कड़े शब्दों में निंदा करने का काम आप आम जनता पर छोड़ दें , और संसद में कुर्सियां तोड़ कर संसद को भंग करना बंद करें |