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All around the world, thousands of markets have millions of tents, and an Arabic tent still lists at the top position and astonishing part of Arabic tents.

Taaza Tadka

भारतीय राजनीति में हिपोक्रिसी (दोगलापन और दोहरापन)

नितीश कुमार का बयान, “गाय, नीलगाय से इतनी ही सहानुभूति है तो उन्हें शाखाओं में रखे” | तो शीला दीक्षित का बयान कि “सिर्फ गाय की पूजा करते हैं रक्षा नही,,यह राजनीति है”। तो पीएम का बयान भी ख़ास रहा कि “गौरक्षा के न सत्तर

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ जनता अपना जनसेवक चुनती है, जहां पर बहुदलीय शासन प्रणाली राजनीतिक दल,पार्टी, अपने सिद्धांतों के कारण के जानी जाती है, हर एक दल का एक निश्चित वर्ग विशेष से वास्ता है।

जी हाँ, मै इस लेख माध्यम से सामयिक राजनीतिक परिदृश्य ओर उसमे राजनीतिक लोलुपता का विश्लेषण करने की कोशिश करेंगे कि क्यों वर्तमान समय मे हर एक राजनीतिक दल उस मुद्दे पर ज्यादा सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं जोकि कंट्रोवर्सियल की श्रेणी में आता है।वैसे तो पाखण्ड शब्द एक व्यापक रूप में प्रयोग होता है लेकिन जब इसपर राजसत्ता का टैग लग जाता है तो इसकी टीआरपी बढ़ जाती हैं।

कुछ ऐसा ही हुआ जब बीफ पर तमाम दलों ने अपने स्लोगन बदल डाले,, निश्चत रूप से इस पर राजनीति हुई, गाय को लेकर कुछ भृमित दिखावे के प्रदर्शन ने कुछ दलों की राजनीतिक विवशता का परिचय दे दिया,, हालांकि वर्तमान केंद्र सरकार ने किरकिरी से बचते हुए गोरक्षकों, गोशाला, आदि पर सार्वजनिक बयानबाजी से परहेज करने अपनी भलाई समझी।

गाय को जब किसी संघ वाले ने राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात की तो, उसपर बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार का बयान,,,“गाय, नीलगाय से इतनी ही सहानुभूति है तो उन्हें शाखाओं में रखे”। जो अब राष्ट्रपति के चुनाव में बीजेपी के साथ दिख रहे।

तो शीला दीक्षित का यह बयान कि “सिर्फ गाय की पूजा करते हैं रक्षा नही,,यह राजनीति है”

तो पीएम का बयान भी ख़ास रहा कि “गौरक्षा के नाम पर  सत्तर प्रतिशत लोग अपनी दुकान चला रहे”

निश्चिंत रूप से ये दुकान चला कौन रहा  ,,कौन है इनके स्पांसर?

एक बात यह लाज़मी है कि जातिवाद पाखण्ड का द्योतक है और जातिवाद वर्ण व्यवस्था का विभाजक चक्र है जिससे पूर्वर्ती लोग भी इस पाखण्ड का शिकार होते रहे| अगर इतिहास में जाया जाय तो चंद्रगुप्त, शम्भूक, सत्यकामा जाबालि,सन्तसिरोमनी रैदास,आदि ने पाखण्ड से लोहा लिया, और ब्राह्मनो के सर्वोच्चता के सिद्धांत को बौना कर दिया।

आज कुछ राजनीतिक दल,जातिगत राजनीति का सहारा लेकर राज भी किये या कर रहे,

समाजवादी पार्टी जहाँ, अति पिछड़े व मुस्लिम हितैषी बताकर राजनीति पाखण्ड करने का आरोप रहा तो मायावती को दलितों के नाप पर अपनी राजरोटी चलाने का आरोप लगा, तो कौन है जो इस पाखण्ड का हिस्सा नहीं, राममंदिर हमेशा से बीजेपी का मुख्य चुनाव मुद्दा रहा।ख़ास कर उत्तर प्रदेश के चुनाव में तो क्या यह भी पाखण्ड नहीं ?

बहरहाल आज़ाद भारत में संबिधान प्रदत सत्ता के होते हुए किसी समुदाय विशेष को उसके खान पान,रहन,सहन,संस्कृति पर अपने विचारों को थोपना भारतीयता नही? अगर वर्तमान सरकार विकास को इसी हिपोक्रेसी के स्वरूप में महिमामण्डित करेगी और धरातल पर उसका असर नही दिखाई दिया तो मुश्किल हो सकती है।

तो ये बात कहना कि ,,जो प्रश्न अम्बेडकर पूछते थे -क्या आप सामाजिक व्यवस्थाके सुधार लाये बिना आर्थिक सुधार ला सकते हैं, भारत का सर्वहारा वर्ग अति निर्धन है, गरीब-अमीर के किसी और भेद को नही जानता तो यह सर्वहारा वर्ग कैसे इस राजनीतिक पखण्डता का खुलकर विरोध करे। एक अन्य विषय को यहाँ इंगित करे तो धार्मिक पखण्डता को यह समझा जय तो केरल के ज्यादातर ईसाई, मुस्लिम, ये कहते नही थकते की उनके कुल उच्च ब्राह्मण था इसका मतलब वहां धार्मिक पखण्डता अपनी चरम पर है। निश्चित रूप से गाय को लेकर हुई राजनीति ने एक न समझ मे आने वाली पखण्डता को जन्म दिया।

अगर राजनितिक दल अपने एजेंडे से कुछ शब्द जैसे,जातिवाद, साम्यवाद,सम्प्रदायवाद,  हटा कर और विकासवाद की मानसिकता को अपनाले,, वर्तमान समय के जरूरतों को देखते हुए अगर नीति-निर्माण में जुट जाय तो शायद यह पाखण्ड शब्द हमारे शब्दकोश में कभी ही  खोज जाएगा।