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All around the world, thousands of markets have millions of tents, and an Arabic tent still lists at the top position and astonishing part of Arabic tents.

Taaza Tadka

मन हो गया विभोर रे सावन तेरे आने से, अब छम छम कर भींग जाने तो दे

कहीं केसरिया रंग ने डूबे काँवरिया, बारिश की नाव तो कहीं 'सावन का महीना पवन करे शोर' से लेके 'कचौड़ी गली सुन कइले बलमु' तक सभी अपनी मन की व्यथा की अभिव्यक्ति
Blog Munna Yadav 13 July 2017

सावन का महीना पवन करे शोर मनवा रे नाचे ऐसे जैसे बनवा नाचे मोर, सावन में लग गयी आग आदि न जाने कितने गानो में सावन की सुरमयी एहसास का वर्णन अनेको रूपो में किया गया था।

वर्षाऋतु सभी ऋतुओं की रानी मानी जाती है,और सावन महीने में जोभाव उत्पन्न होता है, वह प्रकृति के एक -एक कण में देखा जा सकता है मानो बारिश की एक -एक बूंद उस तपिश में ऐसे घुल जाती जैसे कि उस मौसम का बेसब्री से इंतजार हो रहा हो।

सावन में पशु,पक्षी, धरती, पेड़, पौधें, नदी,झरने,तालाब,झीलसे लेकर सागर और प्रकृति के हर जीव में महसूस किया जाता है।जीव जिसमे जीवन है, स्पंदन है वह एकाचार होकर सावन में मदमस्त हो जाता है। यही सावन की सच्ची अनुभूति है। चारों तरफ छाई हरियाली, हरीतिमा पल्लवित होकर अपन को निहारने लगती है और यही संदेश देती है कि मैं सावन हूँ।

Image Courtesy: Pirate’s Cove

वैसे तो सावन पर अनेकों कविता, गीत,कजरी लोकगीत सबसे ज्यादा बने है जो जीवन के विभिन्न रूपों में मिलते हैं, सावन नवजीवन का नया श्रृंगार है जिसमे नवविवाहिता के लिए सावन प्रेम का अहम संयोग है जिसमे वह अपने प्रियतम के साथ सावन के साथ समेटने झूला कजरी तीज का आनन्द लेती हैं।

पिया मेहदी लियाइदा मोतीझील से, जाके साईकिल से ना 

नवविवाहिता अपने पति को छेड़ते हुए उससे कहती है ,

जब से साड़ी ना लियायिबा तब से जेवना ना बनाइबा हमरे जेवना में लागल बा मजूरी पिया , रंग रहे कसूरी पिया ना>

वहीं उस विरहिन के लिए वेदना समान है जिसका प्रिय परदेश है उसके लिए सावन मन भावन नहीं।

कजरी – सेजिया पे लोटै काला नाग हो, कचौरी गली सुन कइले बलमु 

सावन पर पर न जाने कितने रचनाकारो ने फिल्मों में समृद्व गीतों के माध्यम से मानव मनमें उठने वाले संवेगों, भावनाओं को फ़िल्मी पर्दे पर उतारकर सावन की सुरमयी गीतों से जीवन को झंकृत कर दिया। जैसे सावन का महीना पवन करे शोर… ,सावन में लग गईं आग…. ,अबकी सजन सावन में….,न जाने कितनों गीतों के भावों को प्रकृति के स्पन्दन से जोड़ इसके हास -परिहास को चित्रित किया है।

कहते हैं सावन शिव का मास है जिसमे शिव अपनी महिमा प्रकृति के सभी प्राणियों में नवल सृष्टि का श्रृंगार करते हैं । काँवरिया लोग शिव की भक्ति में डूब उठते हैं व नंगे पाँव चलकर उनकी चौखट तक पहुंचते हैं |हर तरफ केसरिया रंग से सराबोर लोग दिखते हैं |

Image Courtesy: Times of India

एक ओर जहाँ सभी देवी देवता चिर-विश्राम करते है वही शिव मास में सभी ओर बोलबम का जयघोष करते हुए कांवरिये  प्रकृति से कदमताल करतें है तो शिव जी भी डमरू बजा बजा कर सावन में झमाझम बारिश कराते हुए सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

सावन में कल-कल करते नदी नाले झरने तालाब, पोखरे प्रकृति से कदमताल करते हुए मानवता का संदेश देते हुए एक दूसरे के अंदर इस कदर विलीन हो जाते हैं कि, यही जीवन है मिलना और मिलाना |

सावन साधकों के लिए साधना का मास है तो सांसारिक व्यक्तियों के लिए राग-विहाग आमोद-प्रमोद का यही सावन की विशेषता है। स्वयं में धरती अंगड़ाई लेती हुई सोलह श्रृंगार करती हुई ख़ुद को निहारती है जिससे सभी प्राणियों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कहते है सावन में वर्षा का न होना प्रकृति का उपवास है जिसके कारण सभी प्राणियों में जड़ता उत्पन्न हो जा जाता है, अतः सावन तभी मनभावन है जब ऐसे ही बरसता रहे जैसे इस साल बरस रहा है,और सभी लोग हर हर बम्बम के साथ सावन के मजे ले रहे हैं।