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Taaza Tadka

खड़ी हूँ आज यहाँ लेकिन तुम्हे दोबारा मौक़ा देकर खुद को तोड़ने के लिए नहीं

डरती नहीं हूँ मैं इस दुनिया और सच्चाई का सामना करने से. है हिम्मत मेरे में लड़ जाने का खुद से कि खड़ी रहूं.. झेलती रहूं. हर झूठे इल्ज़ाम को.बस चुप चाप वही सहती

मैंने सोचा नहीं

आज ऐसा वक़्त आएगा … मैंने सोचा नहीं था
आज यहाँ इस मोड़ पे खड़ी होउंगी … मैंने जाना नहीं था ..
लम्हे इतने बिगड़ेंगे … मैंने माना नहीं था ..
सुना तो था बहुत लोगों को कहते हुए
कि, एक दिन उस मोड़ पे खड़ी होगी तुम
जहाँ लोगों का सामना करना मुश्किल होगा
हाँ रखती थी वास्ता तुमसे
पर आज यहाँ खड़ी रहूंगी ऐसा बुरा ख्वाब तक ना आये मुझे

मैं नहीं जानती कि क्यों खड़ी हूँ इस मोड़ पर इस तरह
कि जीना मुश्किल सा है अब उन यादों और बातों के साथ..
कैसे करूँ मैं सच्चाई का सामना ..
बहुत मुश्किल सा है इस दिल को हर बार तोड़ कर जोड़ना

डरती नहीं हूँ मैं इस दुनिया और सच्चाई का सामना करने से..
है हिम्मत मेरे में लड़ जाने का खुद से
कि खड़ी रहूं.. झेलती रहूं.. हर झूठे इल्ज़ाम को.. बस चुप चाप वही सहती रहूं

आज छुपती तो हूँ इस सच्चाई से .. लेकिन
तुम्हे क्या पता मैं किस झूठी सच्चाई के सहारे जी रही हूँ ..
मानती हूँ कि सच्चाई दर्द देती है .. पर कभी
झूठी सच्चाई एक ज़िन्दगी जीने कि उम्मीद देती है
इतनी हिम्मत से लड़ रही हूँ .. तुम्हे क्या पता है कि कैसे
तुम तो बस मुझे देख सकती हो.. सुन सकती हो.. मुझे जान सकती हो लेकिन..
मेरे दिल को.. मेरे मन को पहचान नहीं सकती हो ..

क्यूंकि जिस झूठी सच्चाई के सहारे खड़ी हूँ आज …
जिस दिन मैं उसे एक सच्चाई में बदल दूंगी..
शायद मैं टूट के बिखर जाउंगी…
उन कांच के टुकड़े की तरह
बहुत कुछ समेटा है इस दिल ने.. खुद के अंदर..
ना जाने क्यों बस .. अब दिल पे मानो पत्थर की लकीर सी बनी हो कि….
अब लाख कोशिश कर लो तुम.. हम नहीं हिलेंगे ..

अब चाहे लाख झूठ बोल लो तुम हम नहीं मानेंगे
अब चाहे लाख कोशिश करो उस वक़्त को
पाने की, हम ना आने देंगे उसे
क्यूंकि तब तो मैंने.. हर इल्ज़ाम
लगाए खुद पे.. हर रोज़ कोसा खुद को..
और लो खुद से नफरत तक हो गयी थी हमें..
पर तुम्हे क्या फर्क पड़ता .. तुम तो बस
आये और मेरे दिल को कांच क टुकड़े की
तरह.. तोड़ कर चले गए ..
प्यार किया मैंने..
विश्वास खुद से ज्यादा था तुम पर
पर खैर …..

वो तो अब बातें हैं
हूँह …. तोड़ के गए थे ना मुझे ..
लो इतनी हिम्मत तो आज भी रखती हूँ कि,
बिना लड़खड़ाए तुम्हारा सामना कर लूँ..
हर एक पल को शायद संभाल ना पाऊं ..
क्योंकि यादें इतनी गहरी सी थी तुमसे
आज भी नहीं भुला पायी हूँ ..

पर.. हार जाऊं .. !! ये तो मैं कर नहीं सकती..
क्योंकि शायद आज भी फ़िक़र है तुम्हारी..
यूँ इसका मतलब ये नहीं कि एक दिन जब तुम
आओ और … फिर मेरे दिल को अपना बनाने की
कोशिश करो तो मैं, समुंदरों की लहरों की तरह
भावनाओं में बह जाऊं

और फिर तुमपे एक विश्वास कर लूँ ..
मुझे नहीं पता लेकिन मैं वो प्यार तुमसे कभी
नहीं कर पाउंगी जिस तरह किया करती थी
तोड़ा है तुमने जोड़ू कैसे मैं
जोड़ी खड़ी हूँ आज यहाँ लेकिन तुम्हे
दोबारा मौक़ा देकर खुद को तोड़ने के लिए नहीं..

जी लूँगी मैं, नहीं चाहिए तुम्हारा सहारा…
क्योंकि जीने के लिए, झूठी सच्चाई का सहारा ही
बहुत होता है .. बस जीना आना चाहिए ..
और आज जी रही हूँ ..
आज लड़ रही हूँ ..