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All around the world, thousands of markets have millions of tents, and an Arabic tent still lists at the top position and astonishing part of Arabic tents.

Taaza Tadka

तबही त प्रशासन भी मानता है कि, बनारस के लिए कुछ न करो सब बाबा भरोसे है

यातायात पुलिस भी पउवा देखकर ही किसी को रोकती है, प्रदूषण सर्टिफिकेट के नाम पर 40 रुपये की रसीद थमाई जाती हैं जिस पर प्रदूषण की तीव्रता हाथ से लिखी जाती
Blog Durga Prasad 8 July 2017

हमारा शहर बनारस है ही अनोखा, तभी तो हमारा प्रशासन भी यह मानता है कि, सब कुछ बाबा भरोसे हैं।

पूरा शहर ही जाम रहता हैं, सब लोग जानवरो की तरह रहते है।आलम यह है कि सब अपने मर्जी के मालिक है, कभी भी कोई भी कही से भी आ और जा सकता है।

यातायात पुलिस भी पउवा देखकर ही किसी को रोकती है|

किसी के पास गाड़ी की कागजात भी नही है तो भी पुलिस नही रोकती है, और कोई हेलमेट लगा रखा है, कागज भी है तो भी उसका चालान कट जाता हैं।

क्योंकि मुझे लगता हैं कि पुलिस को नियम से ज्यादा अपनी कमाई पसंद है।

ट्रैफिक लाइट कई बार लगाई गई, लेकिन हरबार पैसा बर्बाद ही हुआ।
देखते हैं इसबार क्या होता हैं?

एक तो सकरी सड़क और उस पर भी जानवरो और लोगो की अनियमित भीड़। गाय और साँड़ आपको हर सड़क पर मिल जाएंगे और उनके सामने सरकारी आदमी भी पस्त हैं। कितनी बार ये लोगो को नुकसान पहुँचा चुके है और यातायात को बाधित कर चुके है, लेकिन आज तक इनका कोई इलाज नहीं मिला।

हेलमेट का ही नियम ले लीजिए।आजतक इस नियम को कड़ाई से लागू नही कराया जा सका। जिसको लगाना है लगाए और जिसको नही लगाना है नही लगाये। हाँ कभी कभी इनलोगो पर भी टारगेट रहता है, जिसे यह लोग यातायात सप्ताह का नाम देते है और उस समय यह लोग किसी की नहीं सुनते हैं, अपनी ऊपरी कमाई की भी चिंता एक उसी समय नहीं करते हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही एक नियम आया था। नो हेलमेट नो पेट्रोल, एक दिन भी यह नियम नहीं चल पाया। कुछ तो यहाँ के लोग भी है कि हम नही सुधरेंगे। लोग भी कम नही है यातायात पुलिस हाथ दिया है और लोग आगे बढ़ते रहते है, उन्हें इनसे कोई मतलब नही है कि उनके इस वजह से जाम लग जाये। कुछ तो पुलिस को ही हड़का देते हैं|

प्रदूषण के नाम पर पुलिस का खेल देखिये;

प्रदूषण सर्टिफिकेट के नाम पर लोगो का जेब काटा जा रहा है। प्रदूषण सर्टिफिकेट के नाम पर 40 रुपये की रसीद थमाई जाती हैं जिस पर प्रदूषण की तीव्रता लिखी जाती हैं, लेकिन हाथ से। मशीन का यूज़ ही नही होता है।

जो पुरानी गाड़ी है, उसका भी और जो नया है उसका भी, सबका हाथ से बनता हैं, ऐसे सर्टिफिकेट की क्या जरूरत?

ऐसे बाइक से पर्यावरण सेफ रहे या ना रहे हा पुलिस और पर्यावरण कंपनियों की जेब जरूर गर्म रहती हैं।

कितने ही ऐसे चौराहे हैं, जहाँ पुलिस की ड्यूटी नहीं है, वहाँ पर लोग अपने से ही मैनेज करते हैं। गाड़ी की पार्किंग की समस्या लगता हैं कभी समाप्त नही होंगी।वैसे ही सड़के छोटी है, उसपर भी पार्किंग की समस्या। लोगो का बस चले तो बीच सड़क पर ही कार या बाइक पार्क कर दे। ना ही लोग समझदार हैं और ना ही प्रशासन इन्हें सुधार पाता है।

जितने भी बड़े-बड़े मॉल या शॉप हैं किसी की भी प्रॉपर पार्किंग नहीं है, इसलिए सड़कों का ही यूज़ किया जाता हैं। इसमें भी कुछ ना कुछ गोरखधंदा जरूर होगा।

लोगो को तो जागरूक होना ही चाहिये, साथ ही पुलिस-प्रशासन को भी निष्ठा के साथ ड्यूटी करने की जरूरत है, जो कि संभव नही लगता हैं, चंद पैसे के लिये कितने ही नो एंट्री में यह लोग ट्रको की एंट्री करा देते है और लोगो की जान ले लेते है।
पता नही यह सब कब बन्द होगा।