एक चीनी कहावत है,
गज में कब्जा करने से बेहतर है इंच में कब्जा करना।
जी हाँ इसे कब्जा करने की नीति कहे ,या चीन की फ़ितरत जिसके कारण आज वह सभी दिशाओं में आलोचना झेल रहा है।
वर्तमान घटनाक्रम भूटान ,भारत और चीन के बीच एक ऐसे हिस्से को लेकर है जिसे ‘कहकर’ क्षेत्र में भारतीय सेना के मौजूदगी को लेकर या डॉकलोंग क्षेत्र में चीन द्वारा किये जा रहे सडक मार्ग के निर्माण को रोकवाने से चीन के भड़कने से है।
बताते चलें कि चीन का भारत के साथ विवादों से नाता रहा है, वर्तमान विवाद का कारण उस हिस्से से है जो कुछ सिक्किम तथा भूटान के हिस्से में पड़ता है। जिसमें भूटान का हिस्सा एक पठारी भाग जो ‘डोकला’ के नाम से जाना जाता है, जिसमे चीन रास्ता बनाकर उसे हड़पना चाहता है|
भूटान चीन के साथ कोई राजनयिक सम्बन्ध नही रखता और उसे किसी भी सुरक्षा आवरण हेतु भारत की तरफ देखना पड़ता है। क्योंकि चीन द्वारा उस हिस्से को लेने की पहल भूटान के साथ असफल रही जिसका परिणाम ये नया विवाद है। इस तरह के सीमा विवाद का चीन भारत का पुराना नाता है जिसमे चीन ने 1967 में एक हिंसात्मक रवैये के साथ सीमा रेखा को मानने से इंकार कर दिया था । जिसमें काफी जाने भी गयीं।
वही 1986 में (सुमडोरोंग चो)की घटना जिसमे तनाव को देखते हुए दो लाख भारतीय सेना को तैनात कर दिया गया। दोनो तरफ से सेना की टुकड़ियों का मार्च होता रहा पर वहाँ एक भी गोली नही चली। (ली काछी यांग)में भी चीनी सैनिक घुसपैठ कर काफी अंदर तक आ गए थे जिसको बातचीत से सुलझा लिया गया।
चीन अक्सर अरुणाचल प्रदेश में भारतीय राजनायिकों, दलाई लामा, और अमेरिकी राजदूत के यात्रा का समय-समय पर विरोध करता रहता है। इससे यह बात समझ आती है कि चीन भारत के इन हिस्सों को लेकर दुर्भावना से ग्रसित है। चीन ने भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मसलों जैसे; मसूद अजहर ,सुरक्षा परिषद में सदस्यता आदि मसलों पर अपने रुख से परेशानी ही पैदा किया है।
उधर चीन की बौखलाहट सिक्किम सीमा पर साफ-साफ देखी जा सकती है, उसके तेवर और मीडिया रिपोर्टों में उसके बयान में बौखलाहट का अंदाजा लगाया जा सकता है।
जैसा कि चीन के समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा–
“अपनी सरहदों की रक्षा के लिए चीन युद्ध की स्तर तक जा सकता है” ।
कुल मिलाकर चीन अपनी पुरानी घुड़कबाजी से पार नहीं पा रहा और भारतीय सैनिकों, और राजनयिकों के बढ़े मनोबल को देखते हुए ऐसे बयान दे रहा है। २००३ में भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के दौरान एक द्विपक्षीय समझौता किया गया जिसमें भारत ने तिब्बत के हिस्से को चीन के भू-भाग के रूप में स्वीकार कर अपने देश मे किसी प्रकार का चीन विरोधी कायर्क्रम को निषेध कर दिया। वही चीन सिक्किम के विलय को मानते हुए इस क्षेत्र में अपने व्यापारिक गतिविधियों को अपने कूटनीतिक प्रयासों से साधने सफल रहा लेकिन सिक्किम पर उसके तरफ के कोई आधिकारिक बयान जारी नही किया गया ।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बयान को देखें जिसमे उन्होंने कहा था कि भारत -चीन सम्बन्ध एक अधिक महत्वपूर्ण फैक्टर होगा जो 21वी सदी में मानव इतिहास की दिशा तय करेगा। वैसे तो कहा जाता है कि दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के हिस्से में आ जाया करते है पर एक रिपोर्ट में आकड़ो पर गौर करें तो इस घुसपैठ की संख्या 213 बार तक पहुंच गई है।अरुणाचल पर चीन लगातार हमलावर रहा है, वह कई स्तरों पर अपना विरोध जताकर पूर्व के समझौते को लागू नही करता है।
जैसा कि हमारे यहाँ के मीडिया चैनल जो कि पाकिस्तान के साथ किस तरह के कंफ्लिक्ट पर परिणाम भुगतने की बात अमूमन करते रहते हैं वे आजकल द्विपक्षीय व्यापार, संस्कृति संचार आदि की दोहाई देते दिख रहे हैं ।
पिछले चार हफ्ते की तल्ख़ी में भारत और चीन हैम्बर्ग में एक मंच पर रहेंगे पर स्थिति को देखते हुए किसी औपचारिक बात की सम्भावना नहीं बनती दिख रही। पर उम्मीद करेंगे कि दोनों देश अपने हित को साधते हुए कुछ ऐसा करेंगे कि इस मसले का शांतिपूर्ण समाधान निकाल ले।
भारत चीन दुनिया को दो बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप स्थापित हो चुके हैं, इस बात को समझते हुए चीन जरूर गौर करेगा कि किसका किसमें हित है, लेकिन यदि भारत भूटान की सम्प्रभुता का ख्याल कर रहा है तो चीन को उसका जरूर सम्मान करना चाहिए और यथा स्थिति बनाये रखना चाहिए। इसी में दोनों ही देशों की भलाई होगी।