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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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सहते रहे पाकिस्तानियों के इतने जुल्म, फिर भी सौरभ कालिया ने नहीं बताया सच

देश की हिफाजत सौरभ कालिया को करनी थी। तेजी से सौरभ अपने साथियों के साथ बढ़ रहे थे। जल्द ही वे उस जगह पर थे, जहां दुश्मनों के होने की सूचना मिली थी।
Information Anupam Kumari 28 July 2020
सहते रहे पाकिस्तानियों के इतने जुल्म, फिर भी सौरभ कालिया ने नहीं बताया सच

पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध 1999 में चल रहा था। कारगिल के युद्ध में भारतीय जवान बहादुरी से लड़ रहे थे। सौरभ कालिया भी इनमें से एक थे। कुछ ही महीने उनकी नौकरी को बीते थे। कारगिल में अपने साथियों के साथ वे भी अपनी पोस्ट पर तैनात थे।

अचानक 15 मई, 1999 में सौरभ कालिया को एक खुफिया जानकारी मिली। पता चला कि भारतीय सीमा की ओर पाकिस्तानी घुसपैठिए बढ़े चले आ रहे हैं। जानकारी बड़ी अहम थी। नापाक इरादों के साथ घुसपैठिए चले आ रहे थे।

निकल गए सौरभ कालिया

सौरभ कालिया ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने तुरंत इसकी जांच शुरू कर दी। पांच सैनिकों भंवरलाल बगड़िया, मूल राम, भिका राम, नरेश सिंह और अर्जुन राम के साथ वे पेट्रोलिंग करने निकले। दुश्मन कितनी तादाद में होंगे, इसकी चिंता उन्हें नहीं थी।

अपने फर्ज को बस उन्हें निभाना था। देश की हिफाजत उन्हें करनी थी। तेजी से सौरभ अपने साथियों के साथ बढ़ रहे थे। जल्द ही वे उस जगह पर थे, जहां दुश्मनों के होने की सूचना मिली थी।

दिखी दुश्मनों की हलचल

सौरभ को पहले लगा कि उन्हें गलत जानकारी दी गई है। फिर दुश्मनों ने हलचल करनी शुरू कर दी। इससे यह साफ हो गया कि उन्हें सही जानकारी मिली थी। दुश्मन सच में घुस आए हैं। अब उन्होंने तेजी से दुश्मनों की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

बोल दिया हमला

दुश्मनों की नजरें सौरभ पर पड़ गई थीं। उन्होंने सौरभ और उनके साथियों पर धावा बोल दिया। दुश्मनों की तादाद बहुत थी। करीब 200 की संख्या में हुए वहां जमा थे सौरभ ने भी स्थिति को समझा उन्होंने तुरंत पोजीशन भी ले लिया।

हथियारों पर भारी जज्बा

भारी संख्या में हथियार दुश्मनों के पास मौजूद थे। उनके पास एके-47 और ग्रेनेड जैसे विस्फोटक भी मौजूद थे। सौरभ और उनके साथियों के पास उस वक्त ज्यादा हथियार नहीं थे। दुश्मन की तुलना में सौरभ और उनके साथी कमजोर स्थिति में थे। हालांकि, जज्बा उनका बहुत ऊंचा था। यह जज्बा दुश्मनों के सभी हथियारों पर भारी पड़ने वाला था।

अंतिम सांस तक लड़ने का निश्चय

अपने आला अधिकारियों को तुरंत दुश्मन के बारे में सौरभ ने सूचना भेजी। फिर उन्होंने तय किया कि लड़ना तो है ही। अपने दुश्मन के साथ अंतिम सांस तक वे जरूर लड़ेंगे। सौरभ ने तय कर लिया कि अपने साथियों के साथ वे दुश्मनों को रोकेंगे। एक इंच भी वे दुश्मनों को आगे नहीं आने देंगे।

बनाई जबरदस्त रणनीति

दुश्मनों के रास्ते में अपने साथियों के साथ सौरभ कांटा बनकर खड़े हो गए थे। ऐसी रणनीति उन्होंने बनाई कि दुश्मनों की हालत खराब हो गई। बड़ी संख्या में होने के बावजूद दुश्मन परेशान हो गए थे। दोनों ओर से गोलीबारी खूब हो रही थी। सौरभ और उनके साथी बुरी तरीके से घायल भी हो गए थे।

पीठ पर वार

हिम्मत इनकी फिर भी फौलादी थी। पूरी बहादुरी के साथ हर मोर्चे पर ये सामना कर रहे थे। दुश्मन एकदम बौखलाने लगा था। अब उसने पीठ पर वार करने की योजना बना ली। इसमें उसे कामयाबी भी मिली। सौरभ और उनके साथियों को चारों ओर से दुश्मनों ने घेर लिया।

बना लिया बंधक

दुश्मनों के हाथ सौरभ और उनके साथी इसलिए आ गए कि गोलियां और बारूद अब उनके पास नहीं बचे थे। दुश्मनों को इसका लाभ मिल गया। इन सभी को उन्होंने बंधक बना लिया। कोशिश करने लगे कि सौरभ और उनके साथियों से भारतीय सेना की खुफिया जानकारी हासिल की जाए।

दुश्मन लगातार कोशिश करते रहे। उन्होंने सौरभ और उनके साथियों को करीब 22 दिनों तक अपनी कैद में रखा था। कोशिश कर-कर के दुश्मन हार रहे थे। कैप्टन सौरभ कालिया मुंह खोल ही नहीं रहे थे।

देने लगे कठोर यातनाएं

दुश्मनों ने अब सौरभ कालिया को यातनाएं देनी शुरू कर दी थी। सारे अंतरराष्ट्रीय कानूनों की तो उन्होंने धज्जियां उड़ा दी थी। उन्होंने सौरभ कालिया की दोनों आंखें निकाल ली थी। यही नहीं, गर्म लोहे की रॉड से उन्होंने सौरभ कालिया के कानों को छेद दिया था। सौरभ की हड्डियां तक दुश्मनों ने तोड़ डाली थी।

नहीं खोला मुंह

लाख यातनाएं झेल कर भी सौरभ अपना मुंह नहीं खोल रहे थे। उनके निजी अंग तक दुश्मनों ने काट दिए थे। फिर भी सौरभ का हौसला नहीं डिगा था। उनके लिए अपना देश सर्वोपरि था। खुफिया जानकारी उन्होंने दुश्मनों को बिल्कुल भी नहीं दी। हंसते-हंसते वे दर्द सहते रहे। दर्द जब अंत में नहीं सहा गया तो मौत के आगोश में समा गए।

अपनी मातृभूमि के लिए सौरभ कालिया शहीद हो गए। मरते दम तक उन्होंने दुश्मनों को कोई भी जानकारी नहीं दी। उनकी वीरता को याद करके आज भी देशवासियों की आंखें नम हो जाती हैं।

Anupam Kumari

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