TaazaTadka

हाथरस हादसा: असली बलात्कारी तो यूपी पुलिस और सरकार है

हाथरस की उस बच्ची के साथ जो भी कुछ हुआ, वो दिल दहला देने वाला था। इस हादसे से पूरा देश सन्न हैं और सदमे में हैं। लोगों में गुस्सा भरा हुआ है। उत्तर प्रदेश में लगातार लड़कियों के साथ जिस तरह की घटनाएं हो रही है वो इसे क्राइम स्टेट से कम नहीं बनाता है।

हाथरस की बच्ची जिस दर्द से गुजरी है उससे निर्भया याद आ गया, बस फर्क ये था कि उस वक्त पूरा देश एक साथ सड़क पर था, किसी को कोई परवाह नहीं थी कि उसे लाठी पड़ रही है या वो वॉटर केनन की चपेट में आ रहा है। उसके आगे आंसू गैस छोड़ी गई है या फिर उसे बस में भरकर ले जाया जा रहा है। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हो रहा, हां विपक्ष जरूर थोड़ा बहुत हंगामा कर रहा है, लेकिन आम जनता सिर्फ सोशल मीडिया पर आक्रोश जता पा रही है।

शासन प्रशासन का रवैया इतना खराब कैसे हो सकता है?

इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार दोनों ही सवालों के घेरे में है। उन पर कार्रवाई कब की जाएगी, क्योंकि वो किसी बलात्कारी से कम नहीं है। जब से ये घटना हुई है पुलिस का रवैया ढुलमुल सा ही रहा है। ये घटना 14 सितंबर की है, उस वक्त इन लड़कों के द्वारा पीड़ि‍ता को दुप्पटे से खींच कर खेत में ले जाया गया और वारदात को अंजाम दिया। इसकी वजह से पीड़ि‍ता की जीभ भी कट गई और उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई।

लेकिन हाथरस पुलिस ने आरोपियों पर हत्या की कोशिश और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया। रेप का मामला नहीं बनाना, वो तो बाद में दर्ज किया गया। पुलिस का रवैया इतना पक्षपातर्पूण रहा है कि परिवार को हर बार जलील किया गया है। यहां तक की उस लड़की को सही ढंग से इलाज तक नहीं मिला। पहले हाथरस में, फिर अलीगढ़ में और अंत में हालात बेकाबू हो गए तो दिल्ली के सफदरजंग में उसे लाया गया जहां उसे बचाया नहीं जा सका।

रात को 2 बजे जला सकते हो, लेकिन मामला सही से नहीं लिख सकते

लेकिन इस लड़की के मर जाने के बाद पुलिस और प्रशासन की तत्परता देखिए, रातों रात पुलिस पीड़िता के शव को दिल्ली से हाथरस ले जाती है और 2 बजे ही रात में उसको जला देती है। आप इसे चाहे अंतिम संस्कार कह सकते हैं, लेकिन इसे जलाना कहना ज्यादा सही रहेगा क्योंकि इसमें परिवार का कोई भी सदस्य मौजूद नहीं था।

पीड़िता की मां उस एंबुलेंस के आगे लेटी हुई थी कि बेटी का एक आखिरी बार चेहरा दिखा दो, वो उसे पूरे तरीके से अंतिम विदाई देना चाहती थी। लेकिन पुलिस ने इससे भी मना कर दिया। पीड़ि‍ता को आग किसने दी ये भी नहीं पता। परिवार वाले कहते रहे कि हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक रात को शव का संस्कार नहीं करते लेकिन एक योगी के मुख्यमंत्री रहते प्रदेश की पुलिस ने ये नहीं होने दिया।

भगवा पहनने वाले के राज में सनातन धर्म का अपमान कैसे

मुख्यमंत्री जो भगवा पहनते हैं, उनकी पुलिस इतनी निर्दयी कैसे हो गई कि उन्होंने सनातन धर्म की परंपरा नहीं मानी। पुलिस का तर्क है कि उन्हें कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर था, अगर उत्तर प्रदेश पुलिस इस डर से नहीं लड़ सकती तो किस बात की पुलिस है। पुलिस जिसने इस मामले में हर कदम पर जानबूझ कर गलती की है, उस पर अभी भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस के इस तरह काम करने की वजह है।

मामला जिस गांव का है वहां करीब 200 घर हैं जिसमें ठाकुरों का आंकड़ा ज्यादा है। जाहिर है उनका दबदबा है और आज के समय में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी जाति से आते हैं। जिस गांव में ये घटना हुई है वहां ठाकुरों के अलावा ब्राह्मण हैं और केवल चार घर दलितों के हैं। इसलिए ये मामला जाति का भी है।