भारत को अपनी पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) से जितना अधिक खतरा होता है, उतना ही खतरा पड़ोसी चीन से भी बना रहता है।चीन के साथ वर्ष 1962 में भारत का युद्ध भी हो चुका है।चीन (China) ने कई मौकों पर भारत को परेशान करने का काम किया है।
चीनी मीडिया में कई बार इस बात को उठाया जा चुका है कि उस युद्ध में भारत को किस तरह से हार का सामना करना पड़ा था। ऐसा माना जाता है कि यदि चीन के साथ भारत का युद्ध भविष्य में होता है तो उसे पाकिस्तान से भी युद्ध लड़ना पड़ेगा। आखिर चीन के साथ जो 1962 में भारत का युद्ध हुआ था, उसमें पाकिस्तान की क्या भूमिका थी?
पाकिस्तान ने क्या तब इस युद्ध में चीन का साथ दिया था? चीन के साथ तनातनी यदि युद्ध में बदल जाती है तो उस स्थिति में पाकिस्तान क्या करेगा? ये ऐसे सवाल हैं जो हमारे जेहन में आ जाते हैं।
कुलदीप नैयर, जो भारत के वरिष्ठ पत्रकार रहे, उन्होंने एक बार BBC के साथ बातचीत में यह बताया था कि यदि चीन के साथ भारत के युद्ध के समय पाकिस्तान भारत को मदद कर देता तो इस युद्ध में भारत की जीत हो जाती।
यह बात जरूर है कि पाकिस्तान तब कश्मीर की मांग करता और उसे ना कहना भारत के लिए कठिन हो जाता। हालांकि, भारत ने उस वक्त पाकिस्तान से युद्ध में मदद तो नहीं मांगी थी, लेकिन उससे मदद की उम्मीद जरूर की जा रही थी। कुलदीप नैयर ने उस वक्त यह भी बताया था कि उन्होंने अयूब खान से जब इस बारे में बात की थी तो उन्होंने भारत का साथ देने से साफ इनकार कर दिया था।
हालांकि कुलदीप नैयर के मुताबिक जब उन्होंने यही सवाल इससे पहले जिन्ना से किया था तो जिन्ना ने कहा था कि वे भारत का साथ देंगे। साथ मिलकर वे ड्रैगन को भगा देंगे। जिन्ना ने नैयर से यह भी कहा था कि हम दोनों बेहतरीन दोस्त आखिर क्यों नहीं हो सकते हैं। फ्रांस और जर्मनी भी तो आपस में इतना लड़े, लेकिन क्या वे आपस में दोस्त नहीं हैं?
अब सवाल यह उठता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में पाकिस्तान भारत की मदद के लिए क्यों नहीं आया? दरअसल उस वक्त पाकिस्तान में मोहम्मद अयूब खान शासन कर रहे थे। उनके बारे में कहा जाता है कि अमेरिका का उन पर खासा दबाव था।
अमेरिका (America) ने पाकिस्तान को साफ कह दिया था कि भारत और चीन के बीच युद्ध में वह कुछ भी ना करे। पाकिस्तान और अमेरिका के बीच में रक्षा समझौता हो चुका था और इसकी वजह से पाकिस्तान वेस्टर्न अलायंस सिस्टम का भी एक भाग बन चुका था।
शीत युद्ध की धमक अब दक्षिण एशिया (South Asia) तक भी पहुंचने लगी थी। अमेरिका की ओर से 1962 के युद्ध में भारत का साथ दिया गया था। अमेरिका चाहता था कि पाकिस्तान तटस्थ रहे। इसलिए पाकिस्तान ने चीन का भी साथ नहीं दिया था।
भारत और चीन के बीच हुए युद्ध (India China War) को लगभग 57 वर्ष बीत चुके हैं। फिर भी कई बार भारत और चीन के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो ही जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि चीन के साथ भारत के युद्ध की स्थिति बनती है तो पाकिस्तान खुलकर चीन के साथ खड़ा हो जाएगा, क्योंकि मौजूदा हालात इस ओर इशारा करते हैं।
इस तरह से यदि भारत और चीन के बीच युद्ध होता है तो भारत को केवल चीन से ही नहीं, बल्कि संभव है कि दूसरी ओर से पाकिस्तान से भी युद्ध करना पड़ेगा। यह भी संभव है कि पाकिस्तान पर अमेरिका की ओर से तटस्थ रहने का दबाव बनाया जाए।
वैसे, पाकिस्तान की ओर से भारत इस बात को लेकर थोड़ा निश्चिंत रह सकता है कि पाकिस्तान को एक साथ तीन मोर्चों पर लोहा लेना पड़ रहा है। ईरान और अफगानिस्तान के साथ भी पाकिस्तान का चल रहा संघर्ष किसी से छुपा नहीं है।
ऐसे में यदि भारत के खिलाफ भी वह खुलकर मोर्चा संभालता है तो उसे एक साथ तीन मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा, जो कि उसके लिए आसान नहीं होने वाला है।
भारत और चीन के बीच 1962 के युद्ध के बाद एक बार फिर से 1965 की लड़ाई हुई। सिर्फ तीन वर्ष के बाद पाकिस्तान ने भारत पर धावा बोल दिया था। जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान को लगा था कि 1962 के युद्ध में हार के बाद भारतीय सेना का मनोबल गिरा हुआ है।
ऐसे में भारत की हार निश्चित है। हालांकि, पाकिस्तान का यह अंदाजा पूरी तरह से गलत साबित हुआ। भारतीय सेना ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान की युद्ध में हार हो गई।
उस युद्ध के बाद से पाकिस्तान यह समझ गया कि सीधी लड़ाई में उसका भारत के आगे टिकना मुश्किल है। यही वजह रही कि तब से वह छद्म युद्ध यानी कि प्रॉक्सी वार ज्यादा करता आ रहा है।