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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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गरीबपुर का वो युद्ध, जिसने रख दी थी 1971 की जंग में भारत की जीत की नींव

22 नवंबर 1971 की जंग में तीन पाकिस्तानी सेबर विमान भारतीय सेना को उनकी ओर आते दिखे। ऐसा लगा कि दिन ढलने से पहले वे आखिरी हमला करना चाह रहे थे।
Information Anupam Kumari 27 July 2020
गरीबपुर का वो युद्ध, जिसने रख दी थी 1971 की जंग में भारत की जीत की नींव

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग हुई थी। इसी के फलस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ था। वैसे तो युद्ध की शुरुआत 3 दिसंबर, 1971 को मानी जाती है, लेकिन इससे पहले ही भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच झड़पें होने लगी थीं। दोनों देशों की सेना के बीच पहला टकराव 20 और 21 नवंबर को देखने के लिए मिला था।

कब्जा जमाने की जिम्मेदारी

गरीबपुर में पाकिस्तान की सेना मौजूद थी। यह पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने का रास्ता था। बोयरा सालिएंट के अंदर यह स्थित था। पाकिस्तान इसी गरीबपुर से अपने तोपखाने का संचालन कर रहा था। भारतीय सेना में 14 पंजाब बटालियन को नवंबर के अंत तक गरीबपुर पर कब्जा करने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी।

यहां हो गया आमना-सामना

इस ऑपरेशन को चुपचाप अंजाम दिया जाना था। 14 पंजाब की टुकड़ी 20 नवंबर की रात को यहां गश्त पर पहुंची थी। तभी दुश्मनों की एक टुकड़ी से इसका आमना-सामना हो गया। ऐसे में दुश्मन सतर्क हो गए थे।

इसके बाद कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल आरके सिंह ने और तेजी से अपनी बटालियन को आगे बढ़ने का निर्देश दे दिया। 14 पंजाब बटालियन की चार कंपनियां रवाना हो गईं। वे पीटी 76 टैंक लेकर पहुंचे थे। 1971 की जंग के बाद दुश्मनों के स्थानों पर भारतीय सेना कब्जा करने में कामयाब रही।

दुश्मनों की जवाबी कार्रवाई

एक बार फिर से पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की। वह टैंकों के साथ गरीबपुर में 9 किलोमीटर उत्तर में बढ़ने लगा था। तभी कैप्टन जीएस गिल की अगुवाई में गश्ती दल को सड़क के नीचे से टैंकों की आवाज सुनाई दी। बटालियन को काउंटर अटैक के बारे में सूचित कर दिया गया।

पहला हमला

सुबह में 6 बजे पहला हमला हो गया। भारत के पास पीटी 76 टैंक थे, लेकिन शस्त्र बहुत कम थे। फिर भी बहुत ही कुशलता से भारतीय सेना लड़ी और दुश्मनों को उसने काफी नुकसान पहुंचाया। हालांकि, इस दौरान स्क्वॉड्रन कमांडर के मेजर डीएस नारंग के टैंक पर दुश्मनों ने प्रहार कर दिया था। फिर भी भारतीय सैनिकों ने बहादुरी दिखाई। जब सुबह के लगभग 11 बजे कोहरा साफ हुआ तो दिखा कि पाकिस्तान के टैंक नष्ट हो गए हैं। बड़ा नुकसान पाकिस्तानियों को हुआ है।

दुश्मनों का विमानों से हमला

हवाई सुरक्षा के लिए कई बार तब भारतीय सेना के अधिकारियों की ओर से अपील की गई थी। हालांकि, यह उन्हें नहीं मिली। इसकी वजह यह रही कि उस समय तक औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा नहीं की गई थी। 22 नवंबर को तीन पाकिस्तानी सेबर विमान भारतीय सेना को उनकी ओर आते दिखे। ऐसा लगा कि दिन ढलने से पहले वे आखिरी हमला करना चाह रहे थे।

उन्होंने 500 फुट नीचे तक आकर हमला करना जारी रखा। भारतीय सेना के जवान मीडियम और लाइट मशीन गन से उनका सामना कर रहे थे।

नैट विमान आये लोहा लेने

हालांकि, फिर भारत के भी नैट विमान इस लड़ाई का हिस्सा बन गए। उन्होंने पाकिस्तान के सेबर विमानों को अपना निशाना बनाया। 20 एमएम के गोले हमारे नैट विमानों ने पाकिस्तान के सेबर विमानों का पीछा करते हुए उन पर दाग दिए। इस तरह से पाकिस्तान के तीनों सेवर विमान धू-धू कर जलते हुए नीचे गिरने लगे। सिर्फ 3 मिनट के अंदर यह सब कुछ हो गया था।

पकड़ में आया दुश्मन

तीन में से एक विमान किसी तरीके से हिचकोले खाता जेस्सोर की तरफ लौट गया और ढाका पहुंच गया था। एक विमान से पाकिस्तान के 2 सैनिक पैराशूट खोलकर कूदे थे। इनमें से एक खाई में गिर पड़ा था, जिसे भारतीय सैनिकों ने पकड़ लिया था। परवेज कुरेशी मेहंदी उसका नाम था, जो कि ढाका में तैनात स्क्वाड्रन कमांडर था।

जनरल पनाग ने बनाया बंदी

परवेज को जब भारतीय सेना के जवानों ने पकड़ लिया था तो उन्होंने उसकी पिटाई शुरू कर दी थी। हालांकि, लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने उसे छुड़ाकर युद्धबंदी बनाया। उसे यह बताया गया कि उसके साथ जिनेवा समझौते के अंतर्गत व्यवहार किया जाएगा।

परवेज ने तब अपने बयान में यह बताया कि उसे भारत के नैट विमान अपनी ओर आते दिखे ही नहीं थे। उसने इस बात को स्वीकार किया कि नीचे से उसके विमान पर हमला किया गया था। जनरल पनाग के मुताबिक युद्धबंदी बना लिए जाने के बाद भी वह बहुत शांत बना हुआ था।

मजबूत हुई जीत की नींव

इस तरह से भारतीय सेना ने 1971 के जंग की औपचारिक शुरुआत से पहले गरीबपुर में अपनी अदम्य वीरता का परिचय दिया था। यहीं से भारत की जीत की नींव इस युद्ध में पड़ गई थी।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान