बिहार की राजनीति हमेशा से अलग रही है। पूरे देश की निगाहें यहां की राजनीति पर टिकी रहती हैं। पल-पल यहां राजनीति में बदलाव देखने को मिलते रहते हैं। ऐसा आज से नहीं, वर्षों से होता आ रहा है। वर्ष 1980 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। यह एक बड़ा ही रोचक दौर था। जनता पार्टी की सरकार तक गिर गई थी।
सरकार गिरी नहीं कि विधानसभा चुनाव करा दिए गए थे। यह चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण था। विशेषकर कांग्रेस के लिए नाक का सवाल था। कांग्रेस को हर हाल में वापस करनी थी। आपातकाल के बाद कांग्रेस की बहुत बुरी हालत हुई थी। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, 1980 के चुनाव में बहुत कुछ बदल गया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी। देश में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार बन गई थी। बिहार भी अछूता नहीं रहा था। यहां भी कांग्रेस सत्ता में आ गई थी। 1980 में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार जमकर हो रहा था। बड़े-बड़े दिग्गज चुनाव प्रचार में उतरे हुए थे। कांग्रेस ने भी चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक दिया था।
बिहार में किसी बड़े नेता के चुनाव प्रचार की जरूरत थी। इंदिरा गांधी तब प्रधानमंत्री थीं। संजय गांधी उनके छोटे बेटे थे। संजय गांधी को उन्होंने जिम्मेवारी दी। चुनाव प्रचार करने के लिए संजय गांधी पटना आए। संजय गांधी स्टेडियम में उनकी सभा हुई। गर्दनीबाग एथलेटिक क्लब (जीएसी) मैदान के नाम से पहले यह जाना जाता था। बाद में नाम इसका संजय गांधी स्टेडियम कर दिया गया।
यहां पर उनकी चुनावी सभा हुई थी। पटना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र का यह इलाका हुआ करता था। संजय गांधी पूरी तरीके से तैयार होकर आए थे। चुनाव प्रचार उन्हें ऐसा करना था कि कांग्रेस को जीत मिल ही जाए। कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार रंजीत सिन्हा को बनाया था।
आरएचपी सिन्हा के वे बेटे थे। वे पटना के एक प्रख्यात डॉक्टर थे। संजय गांधी के बेहद करीबी दोस्त वे माने जाते थे। इन्हीं के बेटे पर कांग्रेस ने भरोसा जताया था। रंजीत सिन्हा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था।
भाजपा भी चुनाव लड़ रही थी। ठाकुर प्रसाद को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था। वे पहले उद्योग मंत्री रह चुके थे। संगठन कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी चुनाव में उतारा था। केएन सहाय संगठन कांग्रेस के प्रत्याशी बने थे। वे तब पटना के महापौर हुआ करते थे। मुजफ्फरपुर के रहने वाले थे। पटना में वैसे वे खासे लोकप्रिय थे। जनता उन्हें बहुत मानती थी।
बहरहाल, संजय गांधी की चुनावी सभा जीएसी मैदान में हुई। संजय गांधी ने भाषण दिया। भाषण उनका बहुत ही छोटा था। ज्यादा कुछ और उन्होंने अपने भाषण में नहीं कहा। हालांकि, एक बड़ी महत्वपूर्ण बात कह दी। बात क्या कहीं, उन्होंने वादा कर दिया। उन्होंने कह दिया कि रंजीत सिन्हा को आप लोग जिता दीजिए। रंजीत सिन्हा यदि जीत गए तो उन्हें मंत्री बना दिया जाएगा। संजय गांधी यह वादा करके चले गए।
कांग्रेस का 1977 में बहुत बुरा हाल हुआ था। एक तरीके से कांग्रेस का पतन इसे कह सकते हैं। फिर 1980 में तो कांग्रेस की किस्मत ही बदल गई। जैसे पतन हुआ था, वैसे ही फिर से उसका जनाधार बनने लगा। पार्टी फिर से मजबूत होने लगी। राज्यों में सरकारें उसकी लौटने लगीं। केंद्र में तो सरकार बनी चुकी थी। बिहार विधानसभा चुनाव भी हो गया।
आखिरकार नतीजे का दिन आया। कांग्रेस के लिए अच्छी खबर थी। उसके उम्मीदवार रंजीत सिन्हा जीत गए थे। केवल जीते ही नहीं थे, भारी मतों से जीते थे। कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक क्षण था। कांग्रेस के लिए यह किसी त्योहार से कम नहीं था। इसलिए की वापसी हुई थी कांग्रेस की। वह भी 38 साल के बाद।
रंजीत सिन्हा को मंत्री बनाने का संजय गांधी ने वादा किया था। वादा निभाया भी गया। डॉ जगन्नाथ मिश्र की सरकार में वे उप मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर सिंह की सरकार में भी उप मंत्री और राज्य मंत्री बने। दूसरे नंबर पर केएन सहाय रहे थे। ठाकुर प्रसाद ने भी चुनाव लड़ा था। चुनाव में तीसरे नंबर पर वे रहे थे। कांग्रेस 169 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। पूर्ण बहुमत से सरकार उसकी बनी थी।