चीन न कभी सुधरा है, न सुधरेगा। हमेशा से चीन की नियत धोखा देने की ही रही है। भारत और चीन के बीच जब भी गतिरोध पैदा होता है तो चीन 1962 की याद दिलाता है। चीन कहता है कि भारत इतिहास से सबक ले, मगर वह खुद इतिहास को भूल जाता है। भूल जाता है चीन उन लड़ाइयों को जब भारतीय सैनिकों ने उसे छठी का दूध याद दिलाया था।
इन्हीं में से एक है वर्ष 1986-87 के दौरान का संघर्ष, जब भारतीय सेना ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के छक्के छुड़ा दिए थे। पीएलए भारतीय सैनिकों के शक्ति प्रदर्शन से पूरी तरह से हिल गया था। समदोरांग चू रीजन जो कि तवांग के उत्तर में स्थित है, इस संघर्ष का आगाज यहीं पर हुआ था। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी ने इसका नेतृत्व किया था। ऑपरेशन फाल्कन तब उनकी अगुवाई में चलाया गया था।
नामका चू नामक जगह पर 1987 में भारत और चीन के बीच संघर्ष (India China conflict) शुरू हुआ था। नामका चू के दक्षिणी हिस्से में नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर भारतीय सेना के जवान रुके हुए थे। नयामजंग चू नदी, जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है, इसमें नामका चू और समदोरंग चू नामक नाले गिरते हैं। गर्मी के पूरे मौसम में 1985 में भारत की सेना यहां डटी रही थी, मगर हमारे जवान जब1986 की गर्मियों में यहां पहुंचे तो उन्होंने पाया कि चीनी सैनिकों ने इस जगह को हथिया लिया है।
भारत के जो इलाके समदोरांग चू में पड़ते तेज़ चीन के तंबू वहां गड़े नजर आ रहे थे। चीन को अपनी सीमा में वापस लौटाने की भरसक कोशिश भारत की ओर से की गई, लेकिन विस्तारवादी चीन मानने को तैयार ही नहीं था। कितना भी समझाया गया उसे, लेकिन वो तैयार ही नहीं हो रहा था।
जैसा गतिरोध 2017 और अब 2020 में दिखा है, वैसा ही गतिरोध तब भी दोनों देशों के बीच पनपा था। सेना दोनों ओर से तैयार थी। वैसे, इस बार चीन की मिट्टीपलिद होने वाली थी। लड़ाई के चीन पहले से ही अपनी तैयारियों को धार दे चुका था। भारत की फौज भी इधर कुछ कर गुजरने के लिए बेचैन थी। इस इलाके में भारतीय सैनिकों का जमावड़ा होना शुरू हो गया था।
ऑपरेशन फाल्कन को भारतीय सेना की ओर से इसी उद्देश्य के लिए तैयार किया गया था। किसी भी तरह से तेजी से सैनिकों को बॉर्डर पर उतारना था। सड़क तो तब तवांग से आगे जाने के लिए थी नहीं। फिर जनरल सुंदर जी ने एक योजना बनाई। भारतीय वायुसेना को रूस से हैवी लिफ्ट MI-26 हेलीकॉप्टर मिले थे। उन्होंने इसी हेलीकॉप्टर से जेमीथांग नामक जगह पर सेना की एक ब्रिगेड को उतारने का फैसला किया।
हाथुंग ला पहाड़ी पर भारतीय सैनिकों ने मोर्चा संभाल लिया था। यह एक ऊंची जगह थी। यहां से ने केवल समदोई चू, बल्कि तीन और पहाड़ी इलाकों पर नजर रखना मुमकिन था। चीन 1962 में फायदे में इसलिए रहा था कि पोजीशन उसने बड़ी ऊंची जगह पर ली थी। यह मौका अबकी भारत के हाथों में था। रणनीति जनरल सुंदर जी की और भी थी। और कुछ भी उन्होंने सोच रखा था।
T -72 टैंकों को भी लद्दाख के डेमचॉक और उत्तरी सिक्किम में ऑपरेशन फाल्कन के तहत उतार दिया गया। चीनी सैनिकों को तो अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ। वे हैरान थे। बताया जाता है कि भारत ने उस दौरान यहां सात लाख सैनिकों को उतार दिया था। ये देख कर ही चीन की हालत तब पतली हो गई थी।
नतीजा इसका ये हुआ कि न केवल लद्दाख, बल्कि सिक्किम तक में चीन की हवा निकल गई। उन्होंने पहले ही समर्पण कर दिया। ऑपरेशन फाल्कन ने चीन को बता दिया कि उसकी असली औकात क्या है। भारत ने भी मौके को तुरंत भुनाया। अरुणाचल प्रदेश को इसकी वक्त भारत ने पूर्ण राज्य का दर्जा भी दे दिया।
भारत के सामने अब चीन क्या?
वियतनाम युद्ध के बाद से कोई बड़ा युद्ध चीनी सैनिकों ने नहीं लड़ा है। वहीं, भारत तो लगातार पाकिस्तान से सीमा पर संघर्षरत ही है। ऊपर से हिमालय के इलाकों में चीनी सैनिकों में लड़ने की क्षमता ज्यादा नहीं है। आज की तारीख में भारत एक बड़ी महाशक्ति है। चीन को पटखनी देने में भारत पूरी तरह से समर्थ है।