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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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लाशों के ढेर में रहकर खाईं 15 गोलियां, फिर भी योगेंद्र ने पाकिस्तानियों को भून डाला

कुल मिलाकर 15 गोलियां योगेंद्र के शरीर में घुस गई थीं। फिर भी वे जिंदा थे।बहुत सारा खून योगेंद्र के शरीर से निकल कर बह चुका था।फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी
Information Anupam Kumari 28 July 2020
लाशों के ढेर में रहकर खाईं 15 गोलियां, फिर भी योगेंद्र ने पाकिस्तानियों को भून डाला

यह 5 जुलाई, 1999 का दिन था। 18 ग्रेनेडियर्स के 25 सैनिक आगे बढ़ रहे थे। पाकिस्तान की ओर से खूब गोलीबारी हो रही थी। पांच घंटे तक उन्होंने लगातार गोलियां बरसाईं। ऐसे में भारत के 18 सैनिक पीछे हटने के लिए मजबूर हो गए थे। केवल 7 सैनिक अब वहां मौजूद थे।

भारतीय सैनिकों ने बरसाईं गोलियां

कुछ समय के बाद पाकिस्तान के 10 सैनिक वहां पहुंचे। वे देखना चाह रहे थे कि कहीं कोई भारतीय सैनिक जिंदा तो नहीं है। केवल 45 राउंड गोलियां भारतीय सैनिकों के पास बची हुई थीं। पाकिस्तानी सैनिक जैसे ही पास आए, सातों सैनिकों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी।

भाग निकले दो पाकिस्तानी सैनिक

भारतीय सैनिकों ने 10 में से 8 पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर दिया। हालांकि, दो पाकिस्तानी सैनिक भागने में कामयाब हो गए। ऊपर जाकर उन्होंने अपने साथियों को बता दिया कि नीचे सात भारतीय सैनिक मौजूद हैं।

6 भारतीय जवान हुए शहीद

कुछ ही देर में 35 पाकिस्तानी सैनिकों ने इन भारतीय सैनिकों को घेरकर हमला कर दिया। सात में से 6 सैनिक शहीद हो गए। अब बुलंदशहर के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव जिंदा बचे थे। भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों की लाशों के बीच वे पड़े हुए थे।

दुश्मनों ने लाशों पर दागीं गोलियां

पाकिस्तानी सैनिक नहीं चाह रहे थे कि कोई भी भारतीय सैनिक जिंदा बचे। ऐसे में वे लगातार लाशों पर भी गोलियां दाग रहे थे। योगेंद्र भी अपने मरने की ही प्रतीक्षा में थे। उनके पैर में गोली लगी थी। बांह में गोली लगी थी। शरीर के बाकी हिस्सों में भी गोलियां लगी थीं। कुल मिलाकर 15 गोलियां योगेंद्र के शरीर में घुस गई थीं। फिर भी योगेंद्र जिंदा थे।

5 पाकिस्तानियों को किया ढेर

इसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के हथियार ले लिए थे। हालांकि, योगेंद्र की जेब में रखा एक ग्रेनेड उन्हें नहीं मिला। वे जब लौटकर जाने लगे तो योगेंद्र ने पूरी ताकत जुटाई। उन्होंने अपनी जेब से ग्रेनेड को बाहर निकाला। उन्होंने इसकी पिन हटाई। लौट रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर उन्होंने इस ग्रेनेड को फेंक दिया।

एक पाकिस्तानी सैनिक के हेलमेट से यह ग्रेनेड टकराया। उस पाकिस्तानी सैनिक के तो चिथड़े ही उड़ गए। इसके बाद योगेंद्र ने और हिम्मत जुटाई। एक पाकिस्तानी सैनिक की लाश के बगल में पीका राइफल पड़ी थी। उन्होंने यह राइफल उठा लिया। फायरिंग करना शुरू कर दिया। 5 पाकिस्तानी सैनिकों को उन्होंने ढेर कर दिया।

वायरलेस का संदेश

पाकिस्तानी वायरलेस वहां पड़े थे। योगेंद्र ने सुना कि पाकिस्तानी सैनिकों को वे पीछे हटने के लिए कह रहे थे। वे कह रहे थे कि भारत का एमएमजी बेस नीचे 500 मीटर की दूरी पर है। उस पर वे हमला करने बोल रहे थे।

कूद गए नाले में

बहुत सारा खून योगेंद्र के शरीर से निकल कर बह चुका था। उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। होश में बने रहना भी उनके लिए कठिन था। बगल में उन्होंने एक नाला बहते हुए देखा। उसी नाले में योगेंद्र कूद गए। 5 मिनट वे इस नाले में बहे। इस तरह से 400 मीटर नीचे योगेंद्र पहुंच गए।

सैनिकों ने निकाला बाहर

भारतीय सैनिकों की नजरें योगेंद्र पर पड़ीं। उन्होंने उन्हें नाले से बाहर निकाला। योगेंद्र यादव का तब तक बहुत खून बह चुका था। उन्हें कुछ दिख भी नहीं रहा था। सीओ खुशहाल सिंह चौहान ने उनसे सवाल किया, क्या मुझे तुम पहचान पा रहे हो? योगेंद्र की आवाज टूट रही थी। उन्होंने कहा, आपकी आवाज साहब मैं पहचानता हूं। साथ ही उन्होंने जय हिंद भी कहा था।

खुशहाल सिंह चौहान को योगेंद्र ने और भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि टाइगर हिल को पाकिस्तानी खाली कर चुके हैं। अब एमएमजी बेस पर वे धावा बोलने वाले हैं। योगेंद्र यह बताकर बेहोश हो गए।

तैयार थे भारतीय जवान

बिल्कुल वैसा ही हुआ। योजना के मुताबिक पाकिस्तानी सैनिकों ने वहां हमला बोल दिया। भारतीय सैनिकों को जानकारी तो योगेंद्र ने दे ही दी थी। ऐसे में वे पहले से तैयार खड़े थे। इस तरह से योगेंद्र यादव ने एमएमजी बेस को उस दिन बचा लिया। योगेंद्र यादव ने जो वीरता दिखाई, उसके लिए उन्हें परमवीर चक्र भी प्रदान किया गया।

टाइगर हिल पर तिरंगा

टाइगर हिल की चोटी पर अब तिरंगा लहराना था। दुनिया को बताया जा चुका था कि टाइगर हिल पर भारत का कब्जा हो गया है। भारतीय सेना की इज्जत का सवाल था। कैप्टन सचिन निंबालकर की अगुवाई में तीसरा हमला भारतीय सैनिकों ने बोल दिया। आखिरकार टाइगर हिल की चोटी पर रात 1:30 बजे भारतीय सैनिकों का कब्जा हो गया।

Anupam Kumari

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