कारगिल युद्ध 1999 में हो रहा था। भारत और पाकिस्तान की सेना एक-दूसरे के सामने खड़ी थी। 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स की एक यूनिट को एक बड़ी जिम्मेवारी मिली थी। जिम्मेवारी थी मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर कब्जा जमाने की।
हजारों मीटर की ऊंचाई पर दुश्मन बैठे थे। उन्हें वहां से भगाना था। पहाड़ी पर भारतीय सेना चढ़ने लगी। दुश्मनों ने ऊपर से फायर करना शुरू कर दिया। वे ऊंचाई पर थे। ऊपर से एक पत्थर भी फेंकते थे तो बम के गोले जैसा होता था। भारतीय जवानों के लिए यह बहुत चुनौतीपूर्ण था।
कई जवानों की शहादत
फिर भी दुश्मनों को वे जवाब देते जा रहे थे। लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे। राइफलमैन संजय कुमार भी इसमें शामिल थे। संजय के कई साथी अपनी शहादत दे चुके थे। संजय ने मौके की नजाकत को समझा। तुरंत उन्होंने अपनी योजना बदल डाली। दुश्मनों तक पहुंचने के लिए एक अलग रास्ता चुना। इसमें बहुत जोखिम था।
उन्होंने अपनी टीम को योजना बता दी। एकदम खड़ी चट्टान की सहायता से टीम को ऊपर जाने के लिए कह दिया। टीम समझ नहीं पा रही थी कि संजय कर क्या रहे हैं। ऐसे में संजय खुद आगे बढ़ गए। उन्होंने अपने कदम बढ़ाये। पीछे-पीछे टीम चढ़ने लगी। टीम को भरोसा हो गया।
बौखला गए दुश्मन
थोड़ी ही देर में दुश्मनों के समीप सेना पहुंच गई। उन पर इन्होंने हमला कर दिया। दुश्मन कुछ समझ ही नहीं पाए। कारगिल युद्ध में भारतीय जवान उनका बहुत बड़ा नुकसान कर चुके थे। दुश्मन इससे एकदम बौखला गए थे। उम्मीद उन्हें थी ही नहीं कि भारतीय सेना वहां तक पहुंच पाएगी।
संजय की टीम पर अब उन्होंने तेज बमबारी करना शुरू कर दिया। कुछ समय तक दुश्मनों का भारतीय जवानों ने मुकाबला किया। संजय ने इस पर विचार किया। उन्हें एक बात समझ में आ गई। इस युद्ध को जीतने के लिए दुश्मनों का बंकर उड़ाना जरूरी था। उस बंकर को जहां से कि अंधाधुंध गोलियां बरसाई जा रही थीं।
उड़ा दिया बंकर
फिर देर किस बात की थी? मशीन गन संजय ने अपने कंधे पर रख लिया। दुश्मनों की ओर वे तेजी से दौड़ पड़े। संजय को साथियों ने रोका बहुत। मगर वे मानने वाले कहां थे। वे तेजी से दौड़ते रहे। ज्यादा समय नहीं लगा। कुछ ही समय में एक हथगोला पाकिस्तानी सेना के बंकर पर उन्होंने दाग दिया।
लड़ाई अभी भी बहुत बाकी थी। दुश्मन बड़ी तादाद में अभी भी बचे हुए थे। गोलियां लगातार उनकी ओर से बरसाई जा रही थीं। संजय भी एक अलग ही मिट्टी के बने थे। हौसला उनका अब भी फौलादी था। इसी हौसले के साथ उन्होंने लड़ना जारी रखा।
खत्म हो गईं गोलियां
हालात ऐसे भी हो गए कि संजय के बंदूक में गोलियां नहीं बचीं। स्थिति बड़ी विकट थी। दुश्मन खुश हो गए। उन्हें लगा कि अब तो मौत उनकी टल गई है। लेकिन संजय तो संजय ही थे। वे भला रुक कैसे सकते थे।
हथियार के बिना ही दुश्मनों पर संजय टूट पड़े। दुश्मनों के लिए वे काल बनकर आए थे। आमने-सामने की लड़ाई हो रही थी। संजय कुमार बहादुरी से लड़ रहे थे। तीन दुश्मनों को उन्होंने मार गिराया। घायल संजय भी बुरी तरीके से हो गए थे। कई गोलियां उनके शरीर में छेद कर चुकी थीं।
पॉइंट 4875 पर लहराया तिरंगा
संजय की दिलेरी देखकर बाकी जवान भी उत्साहित थे। उनके अंदर भी नई जान का संचार हो गया। वे भी अब पूरे जी-जान से लड़ने लगे। भारतीय जवानों ने दुश्मनों को पस्त कर दिया। बहुत से दुश्मन मारे गए। बहुत से दुम दबाकर भाग खड़े हुए।
आखिरकार पॉइंट 4875 पर भारत का तिरंगा लहराने लगा। आगे चलकर टाइगर हिल की सभी चोटियां भारत के कब्जे में आ गईं। वहां तिरंगा लहराने लगा। कारगिल का युद्ध भारत ने जीत लिया।
परमवीर चक्र से सम्मानित
यह जंग खत्म हुई। संजय लौट आये। हालत उनकी बड़ी गंभीर थी। पीठ में गोली लगी थी। दाहिने पैर में गोली लगी थी। जख्म गहरे थे। ऑपरेशन किया गया। समय रहते गोलियां शरीर से निकाल ली गईं।
जान इस तरह से संजय कुमार की बच गई। वर्तमान में वे नायब सूबेदार हैं। देश की सेवा कर रहे हैं। परमवीर चक्र से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। पूरे देश को संजय कुमार पर नाज है।