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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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2009 में ही राहुल गांधी ने भयंकर भूल कर दी जिसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ रहा है

Politics Tadka Sandeep 28 May 2019
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूरी तरह से असफल साबित हुए हैं. उन्होंने कांग्रेस को रसातल में पहुंचा दिया है. कांग्रेस चाटुकारों की पार्टी मानी जाती है. आत्ममंथन के नाम पर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होती है. वहां इस्तीफे की नौटंकी शुरु होती है और चाटुकार इस्तीफा वापस लेने को कहते हैं. मतलब एक अपराधी दूसरे अपराधी को सजा देने ही नहीं देता है. कांग्रेस कार्यसमिति का गठन कांग्रेस अध्यक्ष ही करते हैं. मजे की बात तो यह है कि इसमें जमीन से जुड़ा हुआ कोई कांग्रेस कार्यकर्ता शामिल नहीं होता बल्कि हवा हवाई और बुड्ढे नेताओं की फौज रहती है. इन लोगों को न तो आज की राजनीति की समझ है और नहीं नई पीढ़ी की उम्मीदों की परख है.

2009 में हुई थी बड़ी भूल

2009 में लोकसभा की 206 सीटें जीतकर कांग्रेस का जोश चरम पर था. बतौर कांग्रेस महासचिव और यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई प्रभारी युवा उनकी ओर तेजी से आकर्षित हो रहे थें. पता नहीं, किसी ने राहुल गांधी के दिमाग में पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करने का आइडिया दे दिया. एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस में चुनाव शुरु करा दिए गए. मजे की बात तो यह है कि ये चुनावी व्यवस्था ऐसी है कि साधारण सा कार्यकर्ता तो बिना दस हजार रुपये खर्च किए पंचायत का अध्यक्ष भी नहीं बन सकता है.

इस प्रक्रिया के तहत बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक वोटिंग के माध्यम से यूथ कांग्रेस का पंचायत अध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष तक का निर्वाचन होता है. चुनाव के पूर्व सदस्यता अभियान चलाया जाता है, जिसमें बड़े पैमाने पर धन खर्च होता है. राहुल गांधी के इस निर्णय के कांग्रेस के तपे तपाए कार्यकर्ता मुख्यधारा की राजनीति से पूरी तरह से दूर होते गए और धनपशु हावी होते गए. अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी में अपने स्वाथ की पूर्ति के लिए ही तो धन खर्च करेगा और जब स्वार्थ पूरा नहीं होगा तो पार्टी को बर्बाद कर चला जाएगा. राहुल गांधी की इस सनक ने कांग्रेस संगठन को धरातल से गायब करके रख दिया.

ध्वस्त हो गया संगठन

राहुल गांधी जब से कांग्रेस में आए, तब से उन्होंने कांग्रेस के संगठनों की लंका लगा कर रख दी. देश के किसी भी जिले में कायदे का कांग्रेस संगठन नहीं है. यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई, जिसे कांग्रेस पार्टी की रीढ़ की हड्डी कहा जाता था, राहुल गांधी की सनक ने इस रीढ़ की हड्डी को तोड़ कर रख दिया. ऐसी चुनावी व्यवस्था जिसमें पैसों का जमकर खेल होता है, उससे वैचारिक तौर पर मजबूत कांग्रेसी काडर पार्टी से दूर होता गया. पद लेने के चक्कर में कांग्रेसी पार्टी के अंदर ही एक दूसरे से चुनाव लड़ने लगे.

पार्टी में अंदरुनी विरोध और गुटबाजी चरम सीमा पर पहुंच चुका है. सत्ता के लोभी, कपटी और स्वार्थी तत्वों का जमावड़ा कांग्रेस में होता गया. टिकट मिला तो ठीक नहीं तो पार्टी की जड़ काटने वाले लोगों के हाथों में कांग्रेस की बागडोर चली गई. ऐसे में सर्वनाश की पटकथा तो 2009 से ही लिख दी गई थी.

कई जिलों में इन संगठनों का अता पता नहीं

राहुल गांधी की असीम कृपा से आज देश के अधिकांश जिलों में यूथ कांग्रेस और अधिकांश कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एनएसयूआई का अता पता ही नहीं है. पैसों के जोर पर ऐसे ऐसे यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष बने हुए हैं, जिन्हें कायदे से दो लाइन भाषण देने का शउर भी नहीं है. तो, इस तरह से कांग्रेस का भट्ठा बैठ चुका है. जिस पार्टी का संगठन ही नहीं, वो चुनाव कैसे लड़ सकता है, यह भी सोचने की बात है.