साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ का इस्तेमाल हुआ था। पिछले चुनावों में 83.41 करोड़ वोटर थे जिनमें से 55.38 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले थे। इनमें से करीब 60 लाख लोगों ने अपना वोट नोटा यानी ‘इनमें से कोई नहीं’ को दिया था। ये कुल वोटों का 1.1% था।
साल 2014 में नोटा को सबसे ज्यादा इस्तेमाल 46,559 वोट तमिलनाडु की नीलगिरी सीट पर हुआ था, जबकि सबसे कम 123 वोट लक्षद्वीप सीट पर पड़े थे।
आदिवासी इलाकों पर नोटा को ज्यादा वोट मिले
साल 2014 के आम चुनावों में जिन 10 सीटों पर नोटा का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा रहा था, उनमें से 9 सीटें आदिवासी बहुल हैं। इनमें से भी 7 सीटें ऐसी थीं, जहां पर आदिवासियों की आबादी 50% से ज्यादा है।
वहीं इसके अलावा सबसे कम नोटा वाली 10 में से 5 सीटें उत्तर प्रदेश-हरियाणा से थी। यूपी की मथुरा, अमेठी और फर्रुखाबाद में सबसे कम नोटा दबा था।
तो वहीं हरियाणा की हिसार और भिवानी-महेन्द्रगढ़ सीटें भी सम नोटा वाली सीटों में शामिल थी। इसके अलावा केन्द्र शासित तीन प्रदेशों में मतदाताओं ने सबसे कम नोटा दबाया गया था।
44 सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर, 293 सीटों पर टॉप-5 में
543 लोकसभा सीटों में से 293 सीटें ऐसी थीं, जिनमें नोटा टॉप-5 में था। वहीं 44 सीटें ऐसी थीं, जहां पर नोटा तीसरे नंबर पर था। पिछले चुनावों में 502 सीटें ऐसी थी, जिनपर नोटा टॉप-10 में था।
2013 से नोटा के इस्तेमाल की शुरुआत हुई
साल 2013 में मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का फैसला लिया गया था। इसी साल छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प दिया। अब तक एक लोकसभा और कुल 37 विधानसभा चुनावों में नोटा का इस्तेमाल किया जा चुका है। साल 2013 से 2017 के बीच हुए चुनावों में नोटा को कुल 1.33 करोड़ वोट मिले थे।