विगत लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जिन राज्यों से बड़ी सफलता हासिल हुई थी, उनमें बिहार का बड़ा रोल है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 40 में से कुल 31 सीटें मिली थी। उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया था। नीतीश कुमार की इस चुनाव में दुर्गति हो गई। 90 फीसदी सीटों पर मुख्य मुकाबले से बाहर हो गए और उनकी सीटों की संख्या 20 से 02 होगी। राजनीति में वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं होता। इस बार नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं और पिछली बार भाजपा के साथ रहे उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यूपीए का हिस्सा बन चुकी है।
पिछले 03 फरवरी को बिहार की राजधानी पटना में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली रही। बिहार और देश की राजनीति के लिहाज से यह रैली बेहद महत्वपूर्ण रही क्योंकि 30 साल से राज्य में सत्ता का सूखा झेल रही कांग्रेस ने 32 साल बाद अकेले अपने दम पर अपनी रैली बुलाई थी। ये राजनीतिक पंडितों के लिए चौंकाने वाला था। इस के जवाब में नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान यानी भाजपा, जदयू और लोजपा ने मिल कर कल यानी 03 मार्च को उसी गांधी मैदान में रैली की, लेकिन यह रैली टांय टांय फिस्स हो गई। पूरे मैदान का 40 प्रतिशत हिस्सा खाली दिख रहा था। भीड़ की स्थिति का आंकलन करने के बाद पीएम मोदी के चेहरे पर भी शिकन शिकन साफ नजर आ रही थी। उनके भाषणों में भी इसकी झलक देखने को मिली। रैली में सिर्फ जदयू के झंडे ही नज़र आ रहे थें। भाजपा के झंडे इक्के दुक्के नज़र आ रहे थें। 2013 में भाजपा के पीएम पद का उम्मीदवार बनने के बाद मोदी ने जो रैली गांधी मैदान में की थी, उसके मुकाबले में भीड़ कुछ भी नहीं थी।
बिहार के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राज्य में केंद्र और प्रदेश, दोनों ही सरकारों के विरुद्ध एन्टी इनकम्बेंसी है यानी कि बिहार में एनडीए दोहरी एन्टी इनकम्बेंसी का सामना कर रही है। इसके अलावा दोनों दलों के नेता तो आपस में मिल गए लेकिन कार्यकर्ता लेवल पर आपस में सद्भाव नहीं हो पाया है। एक और घटक लोजपा का कैडर जो पासवान वोटर हैं, उनका पार्टी से मोहभंग हो गया है। सवर्ण आरक्षण पर लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान के रुख के बाद से ही पासवान समाज तेजी से लोजपा से अलग हो गया है, जिसके बाद इस पार्टी में कार्यकर्ता बचे ही नहीं हैं। इन्हीं वजहों से मोदी की पटना रैली फ्लॉप हो गई।