तीन तलाक विधेयक आखिरकार कानून बनने की तरफ बढ़ गया है। एक लंबी दशकों की यात्रा तय कर, अब मुस्लिम महिलाओं के अंदर न्याय की एक उम्मीद जागी है। वो महिलाएं जो सब्जी में नमक कम होने, या फिर 30 रुपये की गोभी की वजह से सड़क पर फेंक दी जाती थी। किसी मर्द के गुस्से का शिकार हो कर वो तलाक की हकदार बन जाती और फिर कभी सम्मान के साथ, इज्जत के साथ अपने पति के साथ वापिस नहीं जा सकती थी, क्योंकि ऐसा करने के लिए उसे पहले किसी और आदमी के साथ हमबिस्तर होना पड़ता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि अब कोई शौहर अपनी पत्नी को फोन पर, मेसेज पर, स्काईप पर या फिर ईमेल भेज कर तलाक… तलाक… तलाक नहीं कहेगा और वो उस महिला को सड़क पर नहीं छोड़ देगा। अगर उसने ऐसा किया तो 3 साल तक की जेल, जुर्माना और मीडिया ट्रायल का शिकार होना पड़ेगा।
मोदी सरकार के लिए हम पिछले 5 सालों से कहते आ रहे हैं कि ये सरकार सिर्फ फेंकती है, काम कम और प्रचार ज्यादा करती है। हजार खामियां निकालते हैं सरकार में, कुछ सही और कुछ गलत। लेकिन 5 सालों में कभी भी किसी पत्रकार ने ये नहीं कहा होगा कि तीन तलाक पर सरकार के कदम गलत है। राफेल, शिक्षा और ना जाने कितने मामलों पर सरकार फेल हुई हो, लेकिन एक मामले में वो पूरी तरह से हिट रही है और वो है तीन तलाक को बंद कराने में। देर से ही सही लेकिन ये समाज का एक डंक बंद हुआ, सरकार ने पिछले 2 सालों में 3 अध्यादेश, 3 बार लोकसभा में पास कराया और हर बार राज्यसभा में खुद को फेल कराने के बाद भी हार नहीं मानी। इस बिल को पास कराना हमारे वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी के लिए मानो साख का सवाल बन गया था। ऐसा सवाल जिसका वो कोई जवाब नहीं दे पा रहे थे। मुस्लिम महिलाएं उन्हें बहुत आस के साथ देख रही थी, तो वहीं लोग इंतजार में थे कि सरकार कुछ तो करे और कुछ लोग जो इस उम्मीद में थे कि ये मामला भी राम मंदिर की तरह लटक कर रह जाए।
संसद में जनता के द्वारा चुन कर पहुंचे बहुत से ऐसे सांसद थे, जो तीन तलाक बिल के खिलाफ थे। कोई कह रहा था कि इसमें सजा का प्रावधान गलत है, तो कोई कहता था कि ये बिल असंवैधानिक है, किसी को पति पर रहम आता तो कोई कहता कि महिला का गुजारा कैसे चलेगा अगर उसका पति जेल चला गया तो। लेकिन इन सांसदों ने ये नहीं कहा कि हमारी पार्टी उन महिलाओं की मदद करेगी। कांग्रेस, समाजवादी, ममता, मायावती, नीतीश कुमार, लेफ्ट, टीआरएस सब इसके विरोध में आ गए। हालांकि कुछ दलों ने शर्म दिखाई और वो राज्यसभा से वॉक आउट कर गए ताकि सरकार को बिल पास कराने में तकलीफ ना हो, लेकिन कुछ दल जलीलों की तरह खड़े रहे और आखिरी वक्त तक इस विधेयक के खिलाफ खड़े रहे, लेकिन जीत आखिर उन महिलाओं की हुई जो लंबे वक्त से इंतजार में थी, कि उनकी बात सुनी जाए। विपक्ष इस बिल के पास होने से इतना नाराज दिखा कि सदन से बाहर निकल कर जब खुशी में झूम रहे मीडिया वालों ने कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल को रोका और उनकी प्रतिक्रिया लेनी चाही तो पहले तो वो भागते नजर आए फिर रुके काफी गुस्से में विपक्षी दलों की एकता पर 2 शब्द कहे और वहां से निकल गए। ऐसा लग रहा था कि मानो राहुल गांधी एक चुनाव और हार गए हो, और कांग्रेस पार्टी को बहु और बहुमत दोनों ही नहीं मिल रहा हो।
इस बिल के पास होने से जहां कुछ राजनीतिक दल जो मुसलमानों के शक्तिमान बन कर रहते हैं, वो तो निराश हैं क्योंकि उनके वोटबैंक पर हमला हुआ है। ये एक सर्जिकल स्ट्राइक हुई है जो नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस, सपा, बसपा, ममता, लेफ्ट, ओवैसी, जैसे नेताओं के वोटबैंक पर की है। इसके अलावा एक तबका और भी है जो इससे काफी निराश है। वो उन धर्म के ठेकेदारों का है, जो कभी नहीं चाहता था कि ये बिल पास हो, क्योंकि इससे उनकी दुकानों पर ताले लग सकते हैं। अब तक इन्हें हम मौलवी के नाम से जानते थे, अब ये लोग शादी के सिलसिले में कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि महिलाओं के पास अब कानून है। उन अय्याशों की भी अय्याशी बंद हो जाएगी जो सोचते थे कि हलाला और बार बार बीवी बदल कर वो अपनी हवस शांत कर सकते हैं। ये इस्लाम के ठेकेदार बनने वालों के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक है, जो महिलाओं को कबी आगे नहीं निकलने देना चाहते थे। जिनके लिए महिलाएं एक खिलौना थी, इस्तेमाल करने वाली चीज समझते थे, इन लोगों की अय्याशी, कमजोर सोच पर अब हमला हुआ है।
साहिर लुधियानवी का एक शेर आया जो इन रुठे हुए मर्दों के लिए एकदम सटीक बैठता है, जिनके धंधे या वोटबैंक बंद हो गए हैं।
” औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया “