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वो 5 कारण जिनकी वजह से भाजपा को दिल्ली चुनाव में मिली हार

दिल्ली में नफरत की राजनीति की हार हुई है, और इससे देशभर में सकारात्मक संदेश गया है। अगर हम कहें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा जहरीले, सबसे ज्यादा अभद्र रहे हैं तो गलत नहीं होगा, इसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी को ही जाना चाहिए। सिर्फ एक चुनाव जीतने के लिए किसी शर्म या डर के बिना बार-बार लक्ष्मण रेखाएं लांघी गईं हैं। ये हैरान करने वाला पहलू है कि हमें जब भी लगता था कि प्रचार अभियान इससे ज्यादा नीचे नहीं गिर सकता तो कुछ नया घट जाता था, जो उसे और गहराई तक ले जाता था।

इस नतीजे के बाद से किसी को भी शक नहीं है कि अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली की राजनीति के शहंशाह हैं, और उनकी राजनीति को जनता ने पसंद भी किया है। भाजपा 21 साल से दिल्ली में नहीं चुनी गई है, और अब भी पांच साल तक गद्दी से दूर रहेगी। वहीं अगर इस चुनाव में भाजपा को किसी को हार का दोषी मानना है तो वो नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही है। बार-बार कहा गया कि अमित शाह भाजपा को फिर मुकाबले में ले आए हैं लेकिन अगर देश के दूसरे सबसे ताकतवर नेता को दिल्ली की सड़कों पर उतरकर पर्चे बांटने पड़े, तो इससे उस बेचैनी और दीवानगी का पता चलता है, जिसे भाजपा ने इस चुनाव से जोड़ा। लेकिन ऐसे में भाजपा जहां जीत का दावा कर रही थी और मनोज तिवारी तक ने तो 48 सीटों का दावा भी कर दिया था। फिर भी हार हुई और ऐसे में भाजपा तो हार के कारण जान रही होगी लेकिन हम भी जानते हैं कि ऐसे क्या कारण रहे जो भाजपा को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा की हार के बड़े कारण क्या रहे

जैसे लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए कहा जाता है कि मोदी नहीं तो कौन, वैसा ही कुछ दिल्ली के लिए भी अब कहा जा रहा है। मुख्यमंत्री पद के लिए एक चेहरे की घोषणा करने में भाजपा पूरी तरह से नाकाम रही और आम आदमी पार्टी ने इसका काफी चतुराई से फायदा उठाया और दिल्ली के मतदाताओं को समझाया कि भाजपा के पास केजरीवाल की जगह लेने के लिए कोई नेता नहीं है। और इसमें वो काफी हद तक सफल भी रहे।

आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव की तैयारी साल 2017 से ही कर रही थी, जब उसे नगर निगम चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था, जबकि भाजपा ने नामांकन पत्र दाखिल किए जाने के बाद काम करना शुरू किया था। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की तैयारियां अमित शाह और भाजपा की तुलना में काफी बेहतर नजर आई।

साल 2013 में पहली बार सत्ता में आई केजरीवाल सरकार द्वारा किया गया फ्री बिजली और पानी का काम साल 2015 में मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ, और अब 2020 में इसने फिर से काम कर दिखाया। मिडिल क्लास और लोअर क्लास को इसका फायदा हुआ। वहीं केजरीवाल सरकार ने और मुफ्त चीजों की भी घोषणा कर जनता को अपने पाले में कर लिया, जैसे कि बसों में महिलाओं और विद्यार्थियों को मुफ्त यात्रा।

दिल्ली की आबादी में 14 प्रतिशत मुस्लिम हैं और अल्पसंख्यकों के बीच एकजुट वोट देने की आदत रही है, और खासतौर से मुस्लिम उसी पार्टी को वोट देते हैं, जो भाजपा को हरा सकती हो। दिल्ली में मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद कांग्रेस हुआ करती थी, लेकिन ये सोच 2015 में बदल गई थी। अब अरविंद केजरीवाल मुख्य भूमिका में है, और मुस्लिमों की पहली पसंद है। इस बार, मोदी सरकार की नीतियों की वजह से मुस्लिम भाजपा को हरा डालना चाहते थे।

भाजपा द्वारा चलाए गए बेतहाशा नकारात्मक प्रचार अभियान की वजह से भी बहुत-से मध्यमवर्गीय भाजपा समर्थक नाराज हुए। साल 2015 में भी नकारात्मक प्रचार अभियान को नकारा गया था। गोली मारो वाले अनुराग ठाकुर के बयान से लेकर मुख्यमंत्री केजरीवाल को आतंकवादी कहने वाले बयान तक से बचा जाना चाहिए था।