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53 साल पहले भी मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया ने ही लाया था भूचाल

राजनीति कब क्या मोड़ ले ले, कोई नहीं जानता। कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़कर धुर विरोधी भाजपा का दामन थाम कर सभी को हैरान कर दिया। साथ ही सिंधिया के इस कदम से अब मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि कमलनाथ की सरकार अब ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाए। ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस कदम का उनके परिवार की ओर से स्वागत किया गया है।

कांग्रेस को कहा था अलविदा

वैसे, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो कदम उठाया है, उससे 53 साल पुराना इतिहास मध्य प्रदेश की राजनीति में दोहराया जा रहा है। जी हां, 53 साल पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया के कारण ही कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। यह वर्ष 1967 की बात है जब विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। उस दौरान उन्होंने इस्तीफा देने के बाद स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर न केवल लोकसभा चुनाव लड़ा था, बल्कि इसमें उन्होंने जीत भी हासिल की थी। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से 53 वर्षों के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता से बेदखल होने के करीब पहुंच चुकी है। दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजने के लिए अपना उम्मीदवार भी बना दिया है।

फिर लिखी जा रही वही पटकथा

वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव को याद करें तो पता चलता है कि उस दौरान कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया था। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी और डीपी मिश्रा राज्य के मुख्यमंत्री उस वक्त बने थे। हालांकि, बाद में कांग्रेस के 36 विधायकों ने विजयाराजे सिंधिया के प्रति अपनी निष्ठा जताई थी। इस तरह से ये सभी विपक्षी से उस वक्त जा मिले थे। ऐसे में डीपी मिश्रा की कांग्रेस सरकार उस वक्त अल्पमत में आ गई थी। आखिरकार मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा को त्यागपत्र देना पड़ा था। अब 53 वर्षों के बाद कुछ वैसी ही पटकथा मध्यप्रदेश में लिख दी गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफा देने की खबर है, जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आने की आशंका जताई जा रही है और माना जा रहा है कि कमलनाथ किसी भी वक्त मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे सकते हैं।

राजमाता ने इसलिए छोड़ा था हाथ

जैसे ही मध्यप्रदेश में इन विधायकों के इस्तीफे को मंजूर कर लिया जाता है तो कमलनाथ सरकार इसकी वजह से विधानसभा में अल्पमत में पहुंच जाएगी। ऐसी परिस्थिति में कमलनाथ सरकार के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा और कमलनाथ सरकार बहुमत साबित करने में नाकाम हो जाएगी। इस वजह से कमलनाथ सरकार के गिरने की पूरी संभावना है। वर्ष 1967 में ग्वालियर में एक छात्र आंदोलन हुआ था। इसी आंदोलन की वजह से बताया जाता है कि मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा से राजमाता विजयाराजे सिंधिया की कुछ अनबन हो गई थी। इसी के बाद राजमाता ने यह फैसला कर लिया था कि वे कांग्रेस छोड़ देंगी। कुछ समय के बाद उन्होंने बिल्कुल वैसा ही किया था।

तब भी सिंधिया, आज भी सिंधिया

कांग्रेस छोड़ने के बाद गुना संसदीय सीट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उस वक्त लोकसभा का चुनाव लड़ा था। इसमें उन्हें जबरदस्त जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस में जी तब फूट पड़ी थी, उसका सिंधिया ने लाभ उठाया। 36 विधायकों का समर्थन लेते हुए उन्होंने सतना के गोविंद नारायण सिंह को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था। इस तरह से मध्य प्रदेश में तब पहली बार एक गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई थी। कांग्रेस छोड़ देने के बाद राजमाता का जुड़ाव जनसंघ से हो गया। मध्यप्रदेश में जनसंघ को मजबूत बनाने में राजमाता का अहम योगदान माना जाता है। बाद में भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्य भी राजमाता बन गईं। उन्हें भारतीय जनता पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया गया। बिल्कुल 1967 वाली कहानी एक बार फिर से आज मध्यप्रदेश में दोहराई जा रही है। एक-एक करके सभी अपनी भूमिका निभाने में लगे हुए हैं। तब राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा था और आज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा से नाता जोड़ लिया है।