नई दिल्ली: सेना के शौर्य और उसके कारनामे के नाम पर वोट मांगने वाली बीजेपी सरकार को शायद इसका पूरा सच दिखाई नहीं देता है| इसके अलावा बीजेपी समर्थको के द्वारा अक्सर कहा जाता है कि सत्तर साल में ऐसा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने मोदी जी, लेकिन उन समर्थको को ये भी बताना चहिये कि सत्तर साल के इतिहास में पहली बार सेना का जवान किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है| आखिर ऐसा क्या हुआ कि जवान को मैदान में उतरना पड़ा?
सीआरपीएफ जवान तेज बहादुर पीएम मोदी के खिलाफ 27 अप्रैल को निर्दलीय वाराणसी से नामांकन दाखिल करने वाले हैं| इस दौरान उनके साथ सेना के ढाई हजार जवान होंगे| तेज बहादुर ने कहा कि ये सभी जवान मोदी और उनकी नीतियों से परेशान हैं| ये नामांकन में शामिल तो होंगे ही सही और इसके अलावा घर-घर जाकर वोट भी मांगेगे|
तेज बहादुर सीआरपीएफ के जवान थे और उन्होंने गलत खाने की शिकायत कराई थी| इसके बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था| यानी कि सेना के अंदर जवानों की ऐसी हालत है| वही दूसरी ओर सोशल मीडिया पर बीजेपी समर्थक कहते हैं कि सेना मोदी के आने से मजबूत हुई है| सेना स्ट्राइक करती है और श्रेय बीजेपी लेती है लेकिन ऐसा क्या हो गया कि सेना का जवान उसी बीजेपी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने जा रहा है| उसकी देशभक्ति पर तो आप शक नहीं कर सकते हैं| ना ही सेना के उस जवान को आप देशद्रोही बता सकते हैं| मोदी की सेना, मोदी की सेना का शौर्य, सत्तर साल में पहली बार पाकिस्तान को जवाब, ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाले स्वघोषित समर्थको को ये भी बताना चाहिए कि सत्तर साल में कोई भी सेना का जवान किसी पीएम के खिलाफ चुनाव् नहीं लड़ा|
हो ना हो सेना के नाम पर राजनीति केवल बीजेपी सरकार ने की है| हमारी सेना पहले भी मजबूत थी और अब भी मजबूत है लेकिन सेना के काम का श्रेय लेकर उसे अंदर ही अंदर कमजोर बनाने वाले पहले प्रधानमंत्री मोदी जी ही बने हैं|