खिचड़ी एक बेहद लोकप्रिय शुद्ध भारतीय व्यंजन है। ये बेहद स्वादिस्ट तो होता ही है ,साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उपयोगी होता है। अक्सर डॉक्टर मरीजों को हल्की खिचड़ी ही सलाह देते है।
वैसे तो खिचड़ी कई तरीको से बनता है ,लेकिन मूंग की दाल की खिचड़ी बहुत लोकप्रिय और स्वस्थ्य के लिए बहुत लाभकारी मन जाता है। साथ ही इसका धार्मिक महत्व भी है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन विशेषकर उड़द दाल की खिचड़ी बनाकर इसका सेवन किया जाता है।
खिचड़ी एक पौष्टिक भोजन है, जिसमें पोषक तत्वों का सही संतुलन होता है। चावल, दाल और घी का संयोजन आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम प्रदान करता है। कई लोगों इसके पोषण मूल्य को बढ़ाने के लिए इसमें सब्जियां भी मिला देते हैं।
खिचड़ी पेट और आंतों को स्मूथ बनाती है। सुपाच्य और हल्की होने की वजह से ही बीमारी में खिचड़ी खाने की सलाह दी जाती है। इसके सेवन से विषाक्त भी साफ होते हैं। नरम और पौष्टिक होने की वजह से यह बच्चों और बुजुर्ग दोनों के लिये बेहतर भोजन है।
खिचड़ी के नियमित सेवन से वात, पित्त और कफ का दोष दूर हो जाता है. खिचड़ी शरीर को ऊर्जा तो देने का काम करती ही है, साथ ही ये रोग प्रतिरक्षा तंत्र को भी बूस्ट करने का काम करती है|
ग्लूटेन अर्थात लस से परहेज कर रहे लोगों के लिये भी खिचड़ी एक बेहद फायदेमंद आहार विकल्प होती है। इसमें मौजूद दालों, सब्जियों व चावल में ग्लूटेन नहीं होता है और सभी लोग इसका निश्चिंत होकर सेवन कर सकते हैं।
चूकि पचाने में बहुत आसान होता है खिचड़ी ,इसलिए इसको खाने से फैट नहीं बढ़ता ,जिससे हमे आलस्य नहीं लगता है। साथ ही हमारा मन भी शांत रहता है।
खिचड़ी बनने की परंपरा को भगवान शिव का अंश माने जाने वाले बाबा गोरखनाथ ने शुरू किया। माना जाता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते और कमज़ोर होते जा रहे थे। इस समस्या का समाधानबाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पका कर निकाला। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती। और फिर बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।