केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले गरीब सवर्णो के लिए आरक्षण का बड़ा दांव खेला है। अब तो इससे राष्ट्पति की भी मंजूरी मिल चुकी है।
सरकार की ओर से ऐसा प्रावधान किया गया है जिसके तहत जनरल कैटेगरी के उन लोगों को नौकरी और एजूकेशन इंस्टीट्यूट में 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा, जो आर्थिक रुप से पिछड़े हुए हैं। जनरल कैटेगरी को 10 फीसदी आरक्षण उस 50 फीसदी में से मिलेगा, जो कि अभी आरक्षण मुक्त है।
इस तरह के परिवार जिनकी वार्षिक आय 8 लाख से कम है ,ऐसे परिवार 10 फीसदी आरक्षण के दायरे में आते है। इसके साथ ही शहरी सवर्ण परिवार ,जिनके पास 1000 स्क्वायर फ़ीट से छोटा मकान है ,वो भी इसके हक़दार है।
लम्बे समय से आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग उठ रही थी। जनता दलील थी की गरीबी कभी भी जाति देखकर नहीं आती। गरीब कोई भी हो सकता है फिर चाहे वो सामान्य जाति का ही कोई बंदा क्यों न हो। ऐसे में तो गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण स्वागत योग्य है।
लोग ये भी कह रहे है की जब नौकरी अब है ही नहीं तो आरक्षण का ज्यादा ही क्या है। लोग यह भी बोल रहे है की ठीक लोकसभा चुनाव से पहले ही इसकी याद क्यों आयी?
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गयी. राज्यसभा ने करीब 10 घंटे तक चली बैठक के बाद संविधान (124 वां संशोधन), 2019 विधेयक को सात के मुकाबले 165 मतों से मंजूरी दे दी. लोकसभा ने इस विधेयक को मंगलवाार को ही मंजूरी दी थी जहां मतदान में तीन सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया था.
उच्च सदन में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया. कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ पहले लाये जाने को लेकर सरकार की मंशा तथा इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जतायी. हालांकि सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए इसे सरकार का एक ऐतिहासिक कदम बताया|
जो भी हो वाकई गरीब सवर्णो लिए आरक्षण एक अच्छा फैसला है। आगे ये कितना लाभकारी होता है या कितना उपयोगी हो पाता है, ये बाद की बात है।