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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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सपा और बसपा के बिना कांग्रेस की स्थिति

Politics Tadka Durga Prasad 18 January 2019
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जैसा की आप सभी को पता ही की सपा और बसपा एक बार फिर से एक हो गयी है ,वो भी बिना कांग्रेस के। गठबंधन को लेकर फिर से बहस छिड़ गयी है की ये कितना उपयोगी साबित होगा। विरोधी मानते है की महागठबंधन का ये खेल अब खात्मे की और है। जबकि तीन राज्यों में फ़तेह से उत्साहित कांग्रेस ये मानती है की साथियो की कमी नहीं होने वाली है। लेकिन कांग्रेस भी ये जानती है की मुकाबला बाहुबली भाजपा से है इसलिए अभी और तयारी करनी होगी।

यूपी में कांग्रेस की स्थिति –

एसपी-बीएसपी के साथ जुड़ने से कांग्रेस को यूपी में अधिकतम क्या हासिल हो सकता है? बहुत मेहरबानी होती तो कांग्रेसी उम्मीदवारों के लिए 8 से 10 सीटें। इनमें रायबरेली और अमेठी की वो दो सीट भी हैं, जिन पर एसपी-बीएसपी वैसे भी उम्मीदवार नहीं खड़े करने जा रही। यानी महागठबंधन में शामिल होकर कांग्रेस बेहतर-से-बेहतर प्रदर्शन भी करती, तो उसे रायबरेली और अमेठी से इतर अधिकतम 4-5 सीटें हासिल होतीं।

यानि गठबंधन होने का ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है ,बल्कि साख अलग ख़राब होगी की मिलकर भी मुकाबला नहीं कर पाए। इसलिए यहाँ से अकेले लड़ने में भी कांग्रेस परहेज नहीं करना चाहेगी।|

यूपी कांग्रेस की खस्ता हाल-

कांग्रेस की एक चिंता ये भी है की अगर सपा और बसपा के साथ कांग्रेस मिल भी जाये तो ,कांग्रेस के कार्यकर्ता सपा और बसपा के साथ कार्य करते हुए कही उन्ही के हो के न रह जाये ,यही स्थिति कांग्रेस के वोट का भी हो सकती है ,क्युकी हो सकता है की गठबंधन के उमीदवार को वोट करते -करते कांग्रेस के पुराने वोट बैंक उन्ही के न हो के रह जाये। कार्यकर्ताओ में हीन भावना अलग आ सकती है की इतनी बड़ी पार्टी की आज ऐसी स्थिति हो गयी है की दुसरो के साथ मिलकर लड़ना पड़ रहा है।

अखिलेश का चाचा शिवपाल से परहेज –

एसपी-बीएसपी के साथ जुड़ने से कांग्रेस को यूपी में अधिकतम क्या हासिल हो सकता है? बहुत मेहरबानी होती तो कांग्रेसी उम्मीदवारों के लिए 8 से 10 सीटें। इनमें रायबरेली और अमेठी की वो दो सीट भी हैं, जिन पर एसपी-बीएसपी वैसे भी उम्मीदवार नहीं खड़े करने जा रही। यानी महागठबंधन में शामिल होकर कांग्रेस बेहतर-से-बेहतर प्रदर्शन भी करती, तो उसे रायबरेली और अमेठी से इतर अधिकतम 4-5 सीटें हासिल होतीं।

और अब तो शिवपाल और अमर सिंह भी खुलकर सपा और बसपा के गठबंधन के खिलाप बोलने लगे है। और शिवपाल ने तो पार्टी भी बना ली है और उनका दावा भी है की करीब 40 से 45 दल उनके साथ है। तो कही ना कही चाचा बुआ और भतीजे के लिए मुसीबत ही लाएंगे।

चुनाव के बाद का समीकरण –

भले ही अभी कांग्रेस सपा और बसपा से दुरी बनायीं हुई है ,लेकिन समय आने पर कभी भी ये एक हो सकते है। जैसा की कर्नाटक में कांग्रेस ने जे दी यस को समर्थन देकर किया है।  और ऐसा सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि सभी पार्टिया मौका भुनाने के लिए करती रहती है।

यही नहीं, अपनी महात्वाकांक्षा में आकर मायावती ने अगर कांग्रेस की अगुवाई को नामंजूर किया, तो चुनाव के बाद अखिलेश अकेले भी कांग्रेस के समर्थन में आ सकते हैं। हालांकि ऐसा करने से 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव के लिहाज से माया-अखिलेश के रिश्ते बेपटरी हो सकते हैं, लेकिन मौजूदा राजनीति इतनी दूर की नहीं सोचती|

Durga Prasad

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