Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

केजरीवाल जी, दिल्ली को पूर्ण राज्य दर्जा या आपकी मृत्यु की खबर, क्या मिलने वाला है ?

Politics Tadka Preeti Mishra 23 February 2019
cm-kejriwal-delhi-statehood-ndefinite-fast-on-march-1-political-stunt-ls-election-2019-congress

ठीक है ? माननीय अरविन्द केजरीवाल जी जिनका जन्म दरअसल सिवानी में नहीं बल्कि जंतर – मंतर पर अन्ना के आंदोलन में हुआ था. जी हाँ दोस्तों भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा जिसको जान-आंदोलन का सरोकार मिलते हुए दिल्ली की गद्दी मिल गयी. दिल्ली में ७० में से ६७ सीट पाते ही केजरीवाल की पार्टी के बारे में ये कहा जाने लगा कि ये है जन आंदोलन से निकली हुई पार्टी जो भारत का इसिहास और भूगोल दोनों बदल देगी. बता दें कि केजरीवाल आजकल एक ऐसा चेहरा बने हुए हैं, जिनको यदि ‘बिना पेंदे का लोटा’ बोला जाए तो कोई ग़लत नहीं होगा. बात बात में यू टर्न लेने के फेमस अरविन्द केजरीवाल ने ना जाने कितनी बार जन आंदोलन के मुद्दे को दरकिनार करके खुद को ही ग़लत साबित किया. बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल १ मार्च २०१९ से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने बाबत दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठने वाले हैं. आइये जानते हैं उसी से सम्बद्ध कुछ महत्वपूर्ण बातें जानने का

अन्ना आंदोलन की मांग – दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा

इसी आंदोलन में जो एक मुद्दा पूर -जोरों से उठाया गया वो था ‘दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना’ . तब कांग्रेस की सरकार थी इसलिए बीजेपी ने इस मुद्दे का भरपूर समर्थन किया.

किन्तु जैसे ही बीजेपी सत्ता में आयी यहां की लोलुपता में उसका सारा समर्थन कहीं खो गया और अब वो इसी बाबत कानून संशोधन के लिए तैयार नहीं हो रही. मजे की बात ये है कि ४ साल में इस मुद्दे को भूल जाने वाले केजरीवाल ने इस बार इस मुद्दे को एक बार फिर से उठाया है. और इस बाबत वे दिल्ली में भूख हड़ताल पर बैठे हैं. उनका कहना है कि वे इस आमरण अनशन से तब ही उठेंगे जब केंद्र सरकार इस बिल को पास करने का आश्वासन देगी.

कब कब केजरीवाल ले चुके हैं यू टर्न?

हालांकि राजनीति में यू टर्न लेना कोई नयी बात नहीं है, किन्तु एक ऐसे पार्टी जिसने आते ही स्लोगन दिया था कि, ‘राजनीति करने नहीं राजनीति बदलने आये हैं’ उनसे ये उम्मीद लोगों को बहुत ही कम थी. आइये जानते हैं कब कब केजरीवाल ने यू टर्न लेते हुए अपने ही समर्थन को कमजोर कर दिया है;

१. माफीनामा:

बात बात पर पेपर निकाल के सबूत पेश करने वाले केजरीवाल ने जिन लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार की मुहीम छेड़ी थी उन सभी से माफ़ी मांगते हुए अपने हर एक केस को वापस ले लिया. अरुण जेटली से लेके नितिन गडकरी तक हर किसी को माफ़ी मांगते हुए ये बोल दिया कि उनके पास इनलोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं. अतः केजरीवाल को माफ़ किया जाए.

माफीनामे पर सफाई-

इन माफीनामों पर केजरीवाल की सफाई ये थी कि उनके पास इन बड़े लोगों के खिलाफ केस लड़ने के लिए पर्याप्त धन नहीं था. अतः उन्होंने इन सभी के खिलाफ दायर केस वापस लेना उचित समझा. हालांकि इसके बाद उनको अपने ही ख़ास लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा.

२. कांग्रेस सपोर्ट और गठबंधन

शीला दीक्षित से लेके राबर्ट वाड्रा तक हर एक कांग्रेसी इनकी आँख में खटकता था. किन्तु जैसे ही अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली का शीर्ष आसान मिला वे कांग्रेस के पक्ष में बातें करने लगे. इतना ही नहीं सरकार बनते ही उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था जो सिर्फ ४९ दिनों तक चला. हालांकि इस गठबंधन को केजरीवाल ने अपनी सबसे बड़ी भूल बतायी और एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली में काबिज़ हुए.

४ साल बीत गए और फिर बारी आयी चुनाव की. जी हाँ, पिछले १ साल से कांग्रेस मोदी सरकार के विरोध में किसी भी हद जाके कांग्रेस के साथ गठबंधन और मेल-मिलाप में लगे हुए हैं. उन्होंने २०१९ के लोकसभा चुनाव के बाबत कांग्रेस को गठबंधन का न्यौता भी दे दिया है. किन्तु कांग्रेस है कि इसके लिये फिलहाल राज़ी नहीं है. हालांकि ये राजनीति है और आगे कुछ भी हो सकता है.

केजरीवाल की सफाई –

केजरीवाल ने सफाई देते हुए कहा कि जिस तरह मोदी जी मेरे काम में अडंगा लगाते रहते हैं उनको सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाना बहुत ही ज्यादा जरुरी है. और इस बाबत मुझे जिस किसी के साथ भी अलाइंस करना पड़ेगा या जिस हद तक जाना होगा मैं जाऊंगा. उन्होंने बोला कि यदि बीजेपी को हराना है तो बीजेपी कैंडिडेट के सामने किसी एक ही कैंडिडेट को खड़ा होना पड़ेगा अन्यथा वोट का बंटवारा होगा.

हालांकि केजरीवाल इस वजह से काफी ज्यादा ट्रोलिंग का सामना कर रहे हैं. उनके विरोधी ही नहीं इस बाबत उनके समर्थक भी इस बार उनका साथ छोड़ने की काफी कवायत में हैं.

भ्रष्टाचारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाना-

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्म लेने वाले, बात बात पर लोगों को रिश्वतखोरों का स्टिंग करके देने वाले अरविन्द केजरीवाल जी आजकल उन्ही लोगों के साथ आये-दिन दिखते रहते हैं जिनके विरुद्ध वे आंदोलन करके इस सत्ता में आये. उनकी इस हरकत पर उनको लोगों ने बड़े अच्छे से समझाया कि,

दिल्ली के पूर्ण राज्य के दर्जे को लेके पुर जोर राजनीति-

ये कहना ग़लत नहीं हैं कि, सत्ता में काबिज़ भाजपा सरकार पूर्व सरकार के वक़्त दिल्ली के पूर्ण राज्य के दर्जे को लेके अन्ना और केजरीवाल के साथ खड़े थे. जिसको आज वे जानबूझ कर पारित नहीं होने दे रहे हैं ये बहाना करते हुए कि केजरीवाल इस बिल को न्यायिक तरीके से पेश ही नहीं कर रहे हैं.

लोकसभा चुनाव २०१९ के बाबत दिल्ली की भूख हड़ताल कहीं झूठा ढकोसला तो नहीं ?

लोकसभा चुनाव आने वाला है, और इस बाबत सभी राजनितिक पार्टियां अपने अपने हिसाब से कोशिश में लगी हुई हैं. हालांकि पिछले काफी दिनों से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने बाबत किसी विषयवस्तु पर कोई भी चर्चा न करना ही उनकी गंभीरता को दिखाता है. किन्तु क्या कर सकते हैं चुनाव आ रहा है और अब बारी है रिपोर्ट कार्ड के लिए जनता के पास जाने की. उम्मीद है कि ये आंदोलन दिल्ली की जनता के समर्थन में हो किन्तु केजरीवाल का बात बात पर यू टर्न लेना लोगों के कदम को इस आंदोलन से थोड़ा पीछे जरूर करता है.

केजरीवाल के लिए आमरण अनशन पर बैठना कोई नयी बात नहीं

जैसा कि विदित है, अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन के वक़्त आमरण अनशन करके देश को सोचने की एक नयी दिशा अवश्य दी थी. किन्तु जैसे जैसे केजरीवाल ने बाकी सभियों की राजनीति करना शुरू किया लोगों का विश्वास ऐसे किसी भी आंदोलन से उठता चला गया.

प्राण जाए, अनशन न टूटे का ढोंग

अरे भाई अगर सच में हमारे राजनेता आमरण अनशन की शैया पर बैठ कर चिर आंदोलन करने लगे तो फिर बात ही क्या. दरअसल हमारे नेता ना जाने कितनी बार आमरण अनशन पर बैठ देश हित के नाम पर लोगों के वोट की राजनीति करते रहे लेकिन आज तक किसी भी अनशन का परिणाम वो नहीं मिला जिस बाबत अनशन शुरू किया गया. कभी अन्ना, कभी ममता बनर्जी, कभी अरविन्द केजरीवाल तो कभी आम आदमी पार्टी के बाघी नेता कपिल मिश्रा.

इन सभी के आमरण अनशन २-३ दिन में ख़त्म हो जाते हैं. याद रहे ये लोग आमरण अनशन पर बैठते हैं यानी कि मृत्यु तक अनशन व धरना.

१ मार्च से शुरू होने वाले आमरण अनशन को लेके लोगों में उत्सुकता तो काफी है किन्तु शायद इसलिए कि वे देखना चाहते हैं कितने दिन में बिना पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाते अरविन्द केजरीवाल इस अनशन को तोड़ देते हैं.

बहुत सारे नेता और लोगों ने अरविन्द केजरीवाल को ट्विटर पर ख़ासा ज्ञान दिया कि ‘इस बार आमरण अनशन मरने तक होना चाहिए. आम आदमी पार्टी के विधायक व बाघी नेता कपिल मिश्रा ने इस बाबत एक वीडियो साझा करते हुए अरविन्द केजरीवाल से ख़ासा निवेदन किया है कि, ‘या तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाइये या तो अपनी मृत्यु तक ये अनशन का ढोंग करते रहिये और अनशन न तोड़िये. आपके मरने के बाद दिल्ली वाले आपको शहीद का दर्जा दे देंगे.’

बहरहाल सिर्फ उम्मीद की जा सकती है कि हर बार की तरह ये राजनेता आमरण अनशन का बाहरी दिखावा करके पोलराइजेसन में ना जुटे हो और जल्द से जल्द दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं. और तब तक अपनी बातों पर अडिंग रहते हुए आमरण अनशन पर बैठे रहे.

Preeti Mishra

Preeti Mishra

Blogger | Founder | Foodie