नई दिल्ली: कहते हैं कि जब किस्मत और मेहनत साथ हो तो आपके साथ चमत्कार होने लगते हैं| इसका जीता-जागता उदाहरण हैं नए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला जो कभी एक वोट से चुनाव हार गए थे और आज संसद के अध्यक्ष के रूप में सामने आये हैं| आखिर कैसे कोटा के छोटे से इलाके कैथूनीपोल में रहने वाले बिड़ला बने लोकसभा अध्यक्ष
बिड़ला का जन्म कोटा के कैथूनीपोल इलाके में हुआ| एक सामान्य परिवार जन्मे बिरला पांच भाई है| कोई राजनीतिक घराना नहीं| बिरला स्कूल के समय से राजनीति में थोडा-थोडा सक्रिय हुए| इसके बाद जब 1984 में कॉमर्स कालेज पहुचे तो छात्रसंघ अध्यक्ष का पर्चा भर दिया| निर्दलीय खड़े बिरला को एक वोट से हार मिली| करण सिंह राठौड़ के हाथों वो हार गए| लेकिन बिरला नेपथ्य में नहीं गए बल्कि आगे बढ़ते रहे| बिरला ने सहकारी समितियों का चुनाव लड़ना शुरू किया और ग्रामीण सहकारी बैंक का चुनाव जीते| धीरे-धीरे आमजन में पकड़ बढ़ाते बिरला पर नजर पड़ी उस समय के राजस्थान के कद्दावर बीजेपी नेता ललित किशोर चतुर्वेदी कि जो कि कई दफा मंत्री रह चुके थे| चतुर्वेदी ने बिरला को आगे बढ़ाया और प्रदेश के नेताओ से मिलवाया| युवाओं में बिरला की पकड इस कदर थी की जल्दी ही उन्हें युवा मोर्चा का प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया| लेकिन इसी समय बिरला ने चतुर्वेदी का हाथ छोड़कर भैरो सिंह शेखावत का दामन पकड़ लिया| छ साल तक बिरला युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष रहे और उसके बाद उन्हें युवा मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया|
बात है साल 2003 कि जब राजस्थान में वसुंधरा राजे को नए चेहरे के रूप में लाया गया| बीजेपी सरकार बनाने की जद्दोजहद में थी| ऐसे में बिरला को भी मौका मिला| उन्हें कोटा दक्षिण विधानसभा से टिकट और बिरला ने कांग्रेस के कद्दावर नेता शांति धारीवाल को बड़े वोटों के अंतर से हराया| इसके बाद प्रदेश में तो नहीं लेकिन पूरे कोटा में बिरला के नाम की टतूती बोलने लगी| शांति धारीवाल को हराना आसान नहीं था क्योकि उनकी पिता रिखवचंद धारीवाल भी मंत्री रह चुके थे|
विधायक बनते ही ओम बिड़ला ने लोगों के साथ साथ सामाजिक संगठनो में पकड़ बनानी शुरू कि| जैसे हॉस्टल एसोसिएशन, महेश्वरी समाज, ब्राम्हण समाज, और अलग अलग समाजो में अपने लोगों को बैठाया| इसका फायदा ये हुआ की एक मुश्त वोट बिरला के हो गए| बाकी नेता आमजन में प्रचार करते लेकिन बिरला आमजन के साथ-साथ इन संगठनो में भी करते जिससे उन्हें एक साथ वोट मिलते चले गए| इसके बाद बिरल ने साल 2008 के चुनावों में फिर से बड़ी जीत दर्ज कि और ये जीत इस बार और बड़ी थी| इसके बाद बिरला नेता से “ओम भाईसाहब” हो गए| हर एक कार्यकर्त्ता के छोटे से छोटे प्रोग्राम में जाना, कोई काम होने पर तुरंत फोन कर देना ये बिरला ने खूब किया| आलम ये हुआ कि कार्यकर्त्ता बीजेपी नही बल्कि उनके नाम पर वोट मांगते थे| इसके बाद साल 2013 में विधानसभा चुनावों में कोटा-दक्षिण से बिरला ने कांग्रेस के कद्दावर नेता पंकज मेहता को लगभग पचास हजार वोटों से हराया| ये राजस्थान में सबसे बड़ी जीतों में से एक थी| ऐसे में कहा जाने लगा कि बिरला अब मंत्री बनेगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ|
साल 2014 में जब मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तब बीजेपी को एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो कोटा-बूंदी सीट पर जीत हासिल कर सके| देखा गया तो सबसे बेहतर नाम सामने आया बिरला| बिरला चुनाव जीत गए| उन्होंने कोटा के राजा और उस समय के तत्कालीन सांसद इज्याराज सिंह को बड़े अंतर से हराया| इसके बाद कोटा समेत पूरी हाडौती में बिरला के नाम का डंका बजने लगा|
बात राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 कि है जब बीजेपी हर एक क्षेत्र में बुरी तरह से हार रही थी| ऐसे में कोटा समेत हाडौती की लगभग सीटें बीजेपी ने बिरला के दम पर जीती| ऐसे में बिरला का कद और बढ़ गया|
बिरला का बुरा वक्त आना बाकी था लेकिन ये महज 6 महीने तक ही रहा| इसी साल बिरल के निजी सहायक ने उनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज कराया| एसीबी में मुकदमा पंहुचा लेकिन कुछ नहीं मिला| इसके बाद मानो जैसे बिरला के विरोधियों को बल मिल गया हो| एक के बाद एक क्षेत्र के बीजेपी विधायक भी बिरला के खिलाफ होते चले गये| बिरला पर महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगा| कहा जाने लगा की महिलाओं के साथ बिरला गलत व्यव्हार करते हैं| उनका शोषण करते हैं| आलम ये हुआ कि जब बिरला को टिकट मिला तो कोटा-बूंदी के तीन पूर्व विधायक और जिलाध्यक्ष पहुच गए प्रदेशाध्यक्ष के पास कि अगर बिरला को चुनाव लडाना है तो हार समझ लीजिए| लेकिन बिरला अंदर ही अंदर चुनाव प्रचार करते रहे और कुछ नहीं बोले| चुनाव प्रचार के आखिरी दिन बिरला ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि “अगर मेरे ऊपर लगे आरोपों को कोई साबित कर दे दे तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा”| कोई सामने नहीं आया| इसके अलावा बिरला पर परिवारवाद का आरोप लगता रहा| कहा जाने लगा कि कोटा के सभी बड़े पदों में बिरला ने अपने परिवारवालों को बैठा रखा है| इसका खूब विरोध हुआ लेकिन बिरला कुछ नहीं बोले|
जब लोकसभा चुनाव 2019 का परिणाम आने वाला तब बिरला के विरोधी और बहुत सारे बीजेपी नेता खुश थे कि अब बिरला को हार मिलेगी| लेकिन ऐसा नहीं हुआ| बिरला जीते और दुगनी मार्जिन से जीते| पूरे राजस्थान में बिरला का डंका बज गया|
बिरला को उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू समेत शाह का करीबी कहा जाता है| ऐसे में कहा जाने लगा कि बिरला अब केन्द्रीय मंत्री बनेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ| इसके बाद बिरला के नाम पर मुहर लगाई गई की वो लोकसभा अध्यक्ष होंगे| बिरला अध्यक्ष इसीलिए बनाये गए की वो लगातार बड़े अंतर से जीतते आये हैं| मोदी और शाह ऐसे लोगों को पसंद करते हैं जो विरोधियों को कुचलकर जीते और सामने आये| ये कला बिरला को खूब आती है|
बिरला को चुनाव का महारथी कहा जाता है| उनका बूथ मैनेजमेंट इतना तगड़ा है की हर घर में उनके वोट हैं| उनके कार्यकर्ताओं की पहुच हर घर में अंदर तक है|