भारतीय जनता पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के विधायक बेटे आकाश विजयवर्गीय की बल्लेबाजी से तो सभी वाकिफ है, इसे लोग ऐसे ही गुंडागर्दी कह रहे हैं। बल्कि वो तो सिर्फ ये दिखा रहे थे कि वो शानदार बल्लेबाज है। वैसे भी भारतीय क्रिकेट टीम को एक मीडिल ऑर्डर बल्लेबाज की जरूरत है। टीम इंडिया लगातार इस परेशानी का सामना कर रही है कि चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए किस खिलाड़ी को पक्का किया जाए। तो वहीं आकाश ने कल गलती से गेंद की जगह पर नगर निगम के कर्मचारी की धुनाई कर दी। इसमें गलत क्या किया। वो तो अपने दोस्तों के साथ शायद मैच खेल कर आए थे, इतने में उन्हें वहां जेसीबी दिख गई तो खुदाई देखने के लिए खड़े हो गए होंगे। लेकिन वो क्रिकेट की फील से नहीं निकले होंगे और दे दिया बल्ला घुमा कर कर्मचारी को। अब वो बीजेपी के विधायक है और साथ ही कैलाश विजयवर्गीय के बहुत ही कुशल बेटे भी है। उन्हें बेनेफिट ऑफ डाउट तो देना ही चाहिए।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड को वैसे एक बार जरूर आकाश के बारे में विचार करना चाहिए, विश्व कप चल रहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैसे ही शिखर धवन को लगी चोट पर ज्यादा गंभीर है। उन्हें चिंता सता रही है तो ऐसे में आकाश विजयवर्गीय को जरूर मौका दिया जाना चाहिए। क्या पता चौथे नंबर की समस्या खत्म हो जाए, और धोनी पांड्या को भी एक पिटाई करने वाला बल्लेबाज मिल जाए। कभी कभी वो गेंद के साथ कोच की भी पिटाई कर सकते हैं पर कोई नहीं चलता है। वैसे भी वो भारतीय जनता पार्टी के विधायक है उन्हें माफ है। हालांकि उनकी तुलना धोनी के साथ करना सही नहीं है क्योंकि वो सिर्फ गेंद की ही पिटाई करते हैं, लेकिन हम कहते हैं ना कि गेंदबाज की पिटाई कर दी, तो वो आकाश असली में भी कर सकते हैं। साथ ही अंपायर को भी गार्ड पहना कर खड़ा करना होगा उस मैच में, क्योंकि अगर उन्होंने आउट दिया तो उनका हाल भी इस अधिकारी की तरह हो सकता है। लेकिन जिस तरह से कल उन्होंने बल्ला चलाया है लगता है उनका शॉट सिलेक्शन काफी अच्छा है।
हमारी कोर्ट भी ना गलत करती है इस होनहार लड़के को जमानत नहीं दी, ऐसा थोड़ी होता है। कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं वो, जज को पता नहीं है क्या कि कैलाश विजयवर्गीय ने बीजेपी को बंगाल में जीत दिलाने का अहम काम किया है। वो पार्टी के पश्चिम बंगाल के प्रभारी है। गलत बात जज को समझ होनी चाहिए, वैसे उन्हें डरना भी चाहिए गृह मंत्री के बारे में नहीं जानते क्या? सैम पित्रोदा जब 35 साल पहले हुए दंगों के बारे में कह सकते हैं कि हुआ तो हुआ तो हम इस मामले में क्यों नहीं कह सकते। 1984 के दंगों में तो सैंकड़ों सिख शामिल थे, यहां तो बस एक अधिकारी ही तो पिटा है, ऐसे ही बाल की खाल बना रखी है कोई नहीं हुआ तो हुआ। गर्म खून था भड़क गया, एक अधिकारी को पीटना, गालियां देना ये तो एक मामूली सी बात है, जब सैंकड़ों बच्चों की मौत पर चुप्पी हो सकती है तो एख अधिकारी के लिए किस लिए किचकिच करनी।
सुना है कि वहां पर जेसीबी भी थी, तो फिर तो जेसीबी को जेल में डालना चाहिए था। भई अगर जेसीबी होगी तो भीड़ तो लगेगी ही ना क्या पता खुदाई हो रही हो। अलग बात है खुदाई की जगह पर ठुकाई हो गई, पर अब ऐसे में निराशा हाथ लगी ना कि जेसीबी है और खुदाई नहीं हो रही, तो बस उसी में पिट गया अधिकारी। अब इसमें आकाश की क्या गलती वो हो सकता है उत्साह से खुदाई देखने गया हो, लेकिन वो उसे मिली नहीं तो गुस्से में उसने अधिकारी को पीट दिया। क्या इतनी सी बात पर बिचारे को जेल में डाल दिया। बताओ ये भी कोई बात है, जब सैंकड़ों की संख्या में बच्चे मर गए तब तो कोई जेल नहीं गया यहां तो बस एक अधिकारी पिटा है और विधायक को जेल पहुंचा दिया। गलत बात है ये तो अन्याय है।