नई दिल्ली: वैसे एक बात तो है की जितना इंतजार लोगों को दिल्ली विधानसभा चुनावों का है उतना शायद ही किसी राज्य के चुनाव का हो. दरअसल इसमें मनोरंजन बहुत होता है. पहले तो बस मफलर वाले सरजी थे लेकिन बाद में बाजा-पेटी उठाकर मनोज तिवारी आ गए. इन दोनों ने खड़े होकर एक साथ चिल्लाकर कहा “दिल्लीवालों! विकास छोड़ो मनोरंजन में कमी रह गई हो तो बताना”.
अब आप देख लीजिए कि दोनों में क्या-क्या समानताएं हैं-
भाईसाब ये दिल्लीवालों का सौभाग्य कहें कि दुर्भाग्य. मतलब दोनों ही बड़े नेता कहीं ना कहीं पिट जाते हैं. खैर थप्पड़ खाने के मामले में मास्टरी केजरीवाल ने ही हासिल कर रखी है लेकिन अपने रिंकिया के पाप भी कम नहीं. तिवारी जी ने भी कई मौकों पर दूसरे के हाथों का स्पर्श अपने गालो पर मसहूस किया है.
याद है ना, पुल के उद्घाटन के दौरान कैसे “चट्ट देनी मार देली खीच के तमाचा”.
सरजी और तिवारी जी में एक और समानता भी है. अपनी विपक्षी पार्टी का विरोध करना है और उसका लेवल कुछ भी हो सकता है. केजरीवाल कोई अच्छी घोषणा कर बस दे और फिर देखिये उसमे तिवारी जी का पलटवार. ऐसे ही केजरीवाल का भी कि बीजेपी कुछ दें बन्दा कहेगा मैं नहीं मानता विडियो दिखाओ.
ये वाली कला तो इन नेताओं में ऐसी है कि कहने ही क्या. अपनी पार्टी के नेताओं को शून्यता की तरफ धकेलकर खुद आगे हो जाना ये तो सरजी को खूब आता है. पिछले चुनाव में मुफ्त में गाना गाकर कुमार ने चुनाव जितवाया लेकिन सरजी ने कहा कि भईया क्रेडिट दीजिए. ऐसे ही तिवारी जी का भी है.
उन्हें लगता है कि दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों में बीजेपी उनकी वजह से जीती . हाँ अगर इस बार हार गई तो वो जिम्मेदारी पार्टी की होगी भईया बताएं दे रहे हैं.
नौकरी छोड़कर घर में बैठा आदमी कतई जहर उगलने लगता है. नही समझ में आया तो हम बता देते हैं. सरजी ने छोड़ी अपनी नौकरी और आ गए राजनीति में. तो तिवारी ने ढोलक पेटी छोड़ी और आ गए राजनीति में. अब आदमी नौकरी छोड़कर आया ही मजे करने है तो वो काहे का काम करेगा भाई. इसीलिए दोनों बस लगे हैं जैसा हो रहा है.
अब आपको लगेगा कि दिल्ली के सीएम तो केजरीवाल हैं फिर दोनों को कैसे मानेगे. तो भाईसाब दिल पे हाथ रखकर बताना कितने हैं जो सरजी की मुख्यमंत्री मानकर बैठे हैं. सरजी एक प्रदेश नहीं बल्कि बहु राज्जीय मुख्यमंत्री हैं. कैसे बोले थे कि पंजाब में सीएम फेस हम ही होंगे. ऐसे में दिल्लीवाले तो मानने से रहे. और तिवारी जी का ये है कि वो हरकतें तो सारी दिल्ली के मुख्यमंत्री वाली ही करते हैं लेकिन है नही ना इसीलिए उन्हें कोई नहीं मनाता.
अब बताओं मित्रों दिल्ली का सीएम कौन?
…..एलजी ना कहना.
इन दोनों के बीच में एक कविवर भी कामं हैं. कभी तो केजरीवाल के लिए रोने लगते हैं तो कभी मनोज तिवारी के साथ जोगीरा करने लगते हैं. दोनों के बीच में सबसे बड़ी कामन बात यही है कि एक कवि है जो मनोज के करीब है और कभी सरजी के भक्त हुआ करते थे. तो ऐसे में कुमार विश्वास भी दोनों में समानता की बड़ी वजह है.
तो देख लो दिल्लीवालों. हमने बता दिया है कि दोनों एक ही हैं समनाता बहुत है. अब आप अपना ठीक-ठीक लगा लो. बाकी भू चूक लेनी देनी.