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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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चश्मा सही करो साहब , big billion sale या deal नहीं दुगना दाम की दुकान है

SALE! SALE! SALE! त्यौहार के मौके पर आपके शहर में आई भारी छूट. ये शब्द सुनते ही मानो मुर्दे में जान आ जाये. और अगर वो महिला हो तो कसम से उछल पड़े. मन ही मन हम कहते हैं “जिसका मुझे था इंतजार,
Troll Ambresh Dwivedi 2 October 2019

नई दिल्ली: SALE! SALE! SALE! त्यौहार के मौके पर आपके शहर में आई भारी छूट. ये शब्द सुनते ही मानो मुर्दे में जान आ जाये. और अगर वो महिला हो तो कसम से उछल पड़े. मन ही मन हम कहते हैं “जिसका मुझे था इंतजार, वो घड़ी आ गई आ गई”. फिर चल देते हैं उस दुकान की तरफ जहाँ सेल हैं. लेकिन ठहरो(शक्तिमान की स्टाइल में) आपको कई सारी बातें पता नहीं होती हैं की सेल वाले हमारा कैसे काटते हैं. अरे जेब.

  • अरे बस इतने में

दुकान के अंदर घुसते ही आपको लगता है जैसे कि यहाँ सबकुछ कितना महंगा होगा. लेकिन फिर आप टैग देखते हैं और उसमे लिखा होता है “सिर्फ 999/ रुपये. ओ बेटे इतना सस्ता कैसे यार. और हम उठा लेते हैं दो चार. और महिलाओं का तो कहिये ही मत. ऐसे में क्या होता है कि हमें सस्ती चीज मिल गई और दुकानदार का सामान बिक गया. लेकिन नहीं मितरो, इतना आसान भी नहीं. दरअसल जो चीज आप 999 में खरीद रहे हैं उसका असल दाम है 400 रुपये. क्या हुआ लगे ना सोचने. “सेल तो एक बहाना था, असली मकसद तो आपको दुकान तक बुलाना था”. अब बताइए सेल्स का फायदा आपको मिला या फिर दुकानवाले को.

  • चश्मा ठीक करवा के जाएँ

भाईसाब एक बार मैं बिना चश्मे के चला गया ऐसी जगह. सब सस्ता और औकात के अंदर का लग रहा था तो समेत लिया अपनी स्टाइल में. कुल हुआ लगभग दो हजार का और हमें लगा की बड़े-बड़े शब्दों में लिखा है की जितना का समान उसमे 30% छूट. हमने कहा बढिया है ये तो. कार्ड दिए स्वाइप किया और बाहर निकल आए. बाहर देखे की पैसे तो दो हजार कटे हैं और सामान भी इतने का ही है तो फिर छूट कहाँ मिली. पसीने छूट गए भाईसाब लगा की कट गया. लौटे तो दुकानवाले ने कहा “सर वो छूट तभी है जब आप 2699 या उससे अधिक का समान खरीदते हैं”. ऐसा सदमा लगा कि मानो बैकग्राउंड में गाना बज रहा हो “मै ता लुट्या”. उस दिन समझ में आया कि चश्मा सिर्फ काम पर पहनकर नहीं जाएँ. उस काम से कमाए पैसे जब खर्च करने जाएँ तो चश्मा लगाकर जाए. क्योकि वो सेल तो बड़ा-बड़ा लिखा था लेकिन 2699 बहुत छोटा लिखा था इसीलिए हमें दिखा नहीं.

  • लड़कियों का अलग ही टशन

शहर में कहीं सेल लगे और हमारे समाज की महिलाएं ना जाएँ ऐसा ही नहीं सकता. इन्हें सब पता है कि कौन सी जगह कहाँ पर कितने दिनों के लिए सेल लगी हुई है. लेकिन ये जाती तो हैं लेकिन ये जाती तो हैं पैसे बचाने लेकिन बाद में बहुत पछताती हैं. ढेर सारा सामान सेल के नाम पर खरीदकर आईं एक मोहतरमा बड़ी दुखी दिखाई दे रहीं थीं. पता करने पर बताया कि हमें तो हसी आ गई. बोलीं कि जो साड़ी सेल में 1100 रुपये की खरीदी उसका दाम गली वाले लालाजी 680 रुपये बता रहे हैं. और तो और उन्होंने सेम टू सेम साड़ी दिखा दी. अब बताइए भाईसाब “कि हम बतलाएं तो बतलाएं क्या”

  • त्योहारों के मौसम में ही आयेंगे ये

घर में एक बात चलती है. अभी नहीं लेंगे फ्रिज, दिवाली पर लेंगे जब सेल आएगी क्योकि उस टाइम कुछ कम में मिलती है. हाँ बिलकुल मिलती है. कम दाम में मिलती है. लेकिन पिछले साल वाली. आप सोच रहे होंगे ये कह रहे हो. हाँ तो ये सही है. इस वाली दिवाली में वही सामान सेल के नाम पर सस्ते बेचे जायेंगे जो पिछली बार बिकने से रह गए थे. अब बताइए सालभर इंतजार किया कि दिवाली में नया फ्रिज लेकर आयेंगे और लेकर आ गए सालभर पुराना फ्रिज. बताइए कुछ तो घाटा हुआ ना. त्योहारों के मौसम में आते हैं क्योकि आपको बोनस मिलता है. आपका माइंड सेट होता है कि पैसे खर्च करने हैं. लेकिन ये सेल वाले भी ना. सालभर बचाए गए पैसे एक झटके में लेकर चलते बनते हैं.

सेल एक ऐसी कला है जो एक अप्रत्यक्ष रूप से लूट कही जा सकती है. इन सभी घटनाओं को देखते हुए हमने तो कह दिया की इस बार सेल में नहीं जायेंगे. तभी बाहर से आवाज आई “SALE! SALE! SALE…और यहाँ मैं पिघल गया”

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.