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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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आजादी के लिए इनका शुक्रगुजार हमेशा रहेगा ये मुल्क, और आप?

आज यदि हम आजादी का लुत्फ उठा रहे हैं तो ये इन महानायकों की ही देन है। देश की आजादी के लिए लड़ते वक्त इन्होंने न कभी अपनी परवाह की और न ही अपने परिवार की।
Information Anupam Kumari 13 November 2019

जन्मभूमि और कर्मभूमि स्वर्ग से भी महान है। इसके लिए अपना जीवन भी कुर्बान करना पड़े तो ये कम है। भारत को आजाद कराने में जिन स्वतंत्रता सेनानियों की भी भूमिका रही, सभी के मन में कुछ ऐसी ही भावनाएं थीं। देश को स्वतंत्र कराने में वैसे तो बहुतों का योगदान उल्लेखनीय रहा है, मगर यहां हम आपको इन चुनिंदा महानायकों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी भूमिकाएं सबसे महत्वपूर्ण रही हैं और जिनके बिना भारत को आजादी मिलना शायद मुमकिन न होता।

मंगल पांडे

बैरकपुर की सैनिक छावनी में जब राइफल में गाय और सूअर की चर्बी वाले नए कारतूसों का इस्तेमाल शुरू कर किया गया तो इसने सैनिकों को आक्रोशित कर दिया, क्योंकि यह उनकी धार्मिक आस्था के खिलाफ था। मंगल पांडे ने नए कारतूस का इस्तेमाल करने से 9 फरवरी, 1857 को साफ इनकार कर दिया। मंगल पांडे ने अंग्रेज अफसर ह्यूसन की भी जान ले ली। अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मंगल पांडे ने मौत के घाट उतार दिया। 8 अप्रैल, 1857 को भारत के इस महान क्रांतिकारी मंगल पांडे को फांसी पर जरूर लटका दिया गया, मगर ज्वाला तो उन्होंने सुलगा ही दी थी, जो 1857 के विद्रोह के रूप में आखिरकार सामने आई।

चंद्रशेखर आजाद

भगत सिंह को वे सलाह दिया करते थे। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में उन्होंने खासा सहयोग किया था। काकोरी ट्रेन डकैती में भी वे शामिल रहे। आजाद ने हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रसभा का गठन भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर किया था। 27 फरवरीए 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद हो गए थे।

भगत सिंह

मात्र 23 वर्ष की अल्पायु में देश के लिए वीरगति को प्राप्त करने वाले शहीद भगत सिंह के योगदान के बिना देश की आजादी की कल्पना भी मुश्किल थी, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर अपना बलिदान यह सोचकर दे दिया कि इससे लोग जाग उठेंगे और अंग्रेजी हुकूमत को विद्रोह कर उखाड़ फेंकेंगे। ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉंडर्स की हत्या करके उन्होंने लाल लाजपत राय की शहादत का बदला लिया। केंद्रीय विधान सभा में बटुकेश्वर दत्त के साथ नारे लगाते हुए बम फेंकने के लिए उन पर लाहौर लाहौर षड़यंत्र का मुकदमा चलाकर अंग्रेजों ने उन्हें 23 मार्च, 1931 की रात को फाँसी पर लटका दिया गया।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना करके और द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अंग्रेजों के खिलाफ जापान की मदद से भारतीय राष्ट्रीय सेना आजाद हिन्द फौज का निर्माण करके अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। उनके नारे तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा और दिल्ली चलो आज भी लोगों की जुबां पर हैं।

महात्मा गांधी

2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में करमचंद गांधी और पुतलीबाई के यहां जन्में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा का पावन संदेश देते हुए अपने सत्याग्रह के दम पर अंग्रेजों को नाकों तले चने चबवा दिए। हिंसा के खिलाफ जो उन्होंने आंदोलन चलाया और वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा, इनसे भारत की आजादी का मार्ग प्रशस्त हो गया। नाथूराम गोडसे की गोली से वे 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली में शहीद हो गए।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

पूर्ण स्वराज की मांग करने वाले तिलक पहले नेता थे। उन्होंने कहा था, स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा। जनजागृति के लिए तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव भी शुरू किए। वे लोकमान्य भी कहलाये। अंगेजी हुकूमत को तिलक ने हिलाकर रख दिया था।

खुदीराम बोस

भारत की आजादी के लिए खुदीराम बोस केवल 19 वर्ष की उम्र में फांसी पर चढ़ गये थे। कई इतिहासकार खुदीराम बोस के बारे में मानते हैं कि वे भारत के लिए सबसे कम उम्र में फांसी पर चढ़ने वाले बेहद ज्वलंत क्रांतिकारी थे।

रामप्रसाद बिस्मिल

रामप्रसाद बिस्मिल न केवल एक महान क्रांतिकारी, बल्कि कवि, शायर और लेखक भी थे। उनकी लिखी कविताओं ने क्रांतिकारियों में जोश भर दिया था। मैनपुरी षड्यंत्र का नेतृत्व तो रामप्रसाद बिस्मिल ने ही किया था। पुलिस ढूंढ़ती रह गई थी, मगर वे इस मामले में उनके हाथ नहीं लगे थे।

उधम सिंह

उधम सिंह, वो क्रांतिकारी थे, जिन्होंने लंदन जाकर जालियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम देने वाले जनरल डायर को मौत के घाट उतारकर इसका बदला लिया था। उन्होंने 21 वर्षों तक बदले की आग अपने सीने में दबाये रखी थी। बचपन में ही उन्होंने डायर को मारने की प्रतिज्ञा कर ली थी।

प्रफुल्ल चाकी

प्रफुल्ल चाकी ने स्कूल के दिनों से ही स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। ये जुगांतर पार्टी के सदस्य भी बन गये थे। किंग्सफोर्ड को मारने के लिए उन्होंने उसकी बग्घी पर बम भी फेंका था, मगर वह बच गया था। अंत में खुद को गोली मारकर चाकी ने मातृभूमि के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।

अशफाक उल्ला खां

देश में चल रहे आजादी के आंदोलन से ये काफी प्रभावित हुए थे। विशेषकर रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आने के बाद ये और तत्पर हो गये थे देश को आजाद कराने के लिए। काकोरी ट्रेन डकैती में भी इनकी विशेष भूमिका रही थी।

सरदार वल्लभभाई पटेल

भारत को आजादी दिलाने के लिए इन्होंने बड़ा संघर्ष किया। किसानों के लिए इन्होंने बारदोली सत्याग्रह किया। खेड़ा और बोरसद आंदोलन भी इन्होंने ही खड़ा किया। आजादी के देश के पहले गृह मंत्री बनकर इन्होंने देश के एकीकरण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सरोजिनी नायडू

स्वतंत्रता संग्राम में सरोजिनी नायडू के भी योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनने वाली नायडू द्वितीय महिला थीं। बंगाली में कविताएं लिखकर वे आजादी के लिए लड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करती थीं। वे भारत की पहली महिला राज्यपाल भी बनी थीं।

लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी के नाम से मशहूर लाला लाजपत राय भी भारत की आजादी के लिए खूब लड़े। लाल बाल पाल में से लाल लाला लाजपत राय ही थे। अहिंसा आंदोलन भी उन्होंने भारत की आजादी के लिए चलाया और इसी साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त पुलिस की लाठी के प्रहार से जख्मी होकर बाद में शहीद हो गये।

दादाभाई नौरोजी

ये बहुत ही ज्ञानी थे। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवर्तक भी बने थे। अपने प्रकाशन के जरिये इन्होंने लोगों को जागरुक करने की कोशिश की थी। इन्होंने काॅटन का व्यापार करने वाली खुद की कंपनी भी बना ली थी।

रानी लक्ष्मीबाई

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना के रूप में रानी लक्ष्मीबाई याद की जाती हैं। अपनी वीरता से उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। उन्होंने कह दिया कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी। अपने बेटे को अपनी पीठ से बांधकर घोड़े पर सवार उन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी।

बिरसा मुंडा

देश केा आजादी दिलाने वालों की बात हो और बिरसा मुंडा का नाम न आये, ऐसा हो ही नहीं सकता। जनजातियों को एकता के सूत्र में बांधने का काम मुंडा ने ही किया। उन्होंने जनजातियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। उन्होंने मुंडा विद्रोह का भी नेतृत्व किया। ब्रिटिश शासकों की नाक में उन्होंने दम कर दिया था।

डाॅ राजेंद्र प्रसाद

स्वतंत्रता आंदोलन में डाॅ राजेंद्र प्रसाद के भी योगदान को नहीं भुलाया जा सकता, क्योंकि 1931 में गांधीजी के साथ नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। आजादी के बाद वे भारत के पहले राष्ट्रपति भी बने।

आज यदि हम आजादी का लुत्फ उठा रहे हैं तो ये इन महानायकों की ही देन है। देश की आजादी के लिए लड़ते वक्त इन्होंने न कभी अपनी परवाह की और न ही अपने परिवार की। इनके लिए यदि सबसे महत्वपूर्ण कुछ था, तो वह था देश। इसलिए इन्हें याद करना जरूरी है। ये न होते तो हमारा देश शायद आज भी परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ा होता। आजादी के इन महानायकों को हमारा सलाम। इसे शेयर करके और भी लोगों को आजादी की कीमत का एहसास कराने में आप भी सहयोग करें।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान