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महज 19 साल के झारखंड में बन चुके हैं अब तक 10 मुख्यमंत्री

मगर केवल झारखंड के 19 साल में ही यहां के राजनीतिक उठापटक और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से यह राज्य अब तक 10 मुख्यमंत्री देख चुका है
Information Anupam Kumari 9 December 2019
महज 19 साल के झारखंड में बन चुके हैं अब तक 10 मुख्यमंत्री

झारखंड कोई बहुत पुराना राज्य नहीं है। इसकी स्थापना को केवल 19 साल ही बीते हैं। बिहार से अलग होकर 28वें राज्य के रूप में इसकी स्थापना 15 नवंबर, 2000 को हुई थी। रघुबर दास के नेतृत्व में यहां भाजपा की सरकार ने अपने पांच वर्षों का कार्यकाल जरूर पूरा किया है, मगर केवल 19 साल में ही यहां के राजनीतिक उठापटक और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से यह राज्य अब तक 10 मुख्यमंत्री देख चुका है। साथ ही तीन बार तो यहां राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा चुका है।

झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री भाजपा के बाबूलाल मरांडी को केवल 2 वर्ष 4 माह में ही इस्तीफा देना पड़ा था और इसके बाद राज्य की कमान संभालने वाले राज्य के द्वितीय मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी यहां केवल एक साल 11 महीने और 15 दिन तक ही शासन कर सके थे। राज्य का प्रमुख चेहरा माने जानेवाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री तो बने, मगर केवल 10 दिनों में ही उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। एक बार फिर से भाजपा के अर्जुन मुंडा की वापसी झारखंड के चौथे मुख्यमंत्री के तौर पर 12 मई, 2005 को हुई, लेकिन इस बार भी वे अपना कार्यकाल पूरा कर पाने में नाकाम रहे और केवल एक साल 04 महीने और 6 दिन में ही उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।

नसीब किसी के साथ नहीं

अब बारी आई झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल के मिल कर सरकार बनाने की। इन्होंने प्रदेश के पांचवे मुख्यमंत्री के तौर पर निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा चुना और उन्हें राज्य की कमान दे दी। ये झारखंड के ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिनके कार्यकाल के दौरान घोटालों का अंबार लग गया और हर ओर बदनामी ही फैलने लगी। देशभर में सरकार बदनाम हो गई। ऐसे में ये भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और केवल एक साल 11 महीने और 12 दिन में ही इन्हें भी अपना पद छोड़ना पड़ा। पूर्व में 10 दिन के लिए झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सारेन को अब मौका मिला और मधु कोड़ा के इस्तीफे के बाद उन्होंने राज्य के छठे मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली। हालांकि, उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और इस बार भी वे केवल 4 महीने 20 दिन तक ही राज्य की कमान संभाल सके और उन्हें हटाकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। राष्ट्रपति शासन के 11 माह 10 दिन तक रहने के बाद भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच हुए समझौते के तहत फिर से शिबू सोरेन को झारखंड का सातवां मुख्यमंत्री बनना नसीब हुआ, लेकिन नसीब इस बार भी सोरेन के साथ नहीं थी और महज 5 महीने एक दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद फिर से तीन महीने नौ दिनों के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

नहीं बदली तस्वीर

तीसरी बार भाजपा के अर्जुन मुंडा को राष्ट्रपति शासन हटने के बाद मौका मिला और वे राज्य के आठवें मुख्यमंत्री तो बन गये, मगर इस बार भी वे केवल 2 साल 4 महीने और 7 दिन ही अपनी सरकार चला सके एवं इनके इस्तीफे के बाद राज्य फिर से 5 माह 25 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन के अंतर्गत चला गया। इतिहास ने खुद को दोहराया और फिर से झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस एवं राष्ट्रीय जनता दल ने राष्ट्रपति शासन के दौरान साथ आकर गंठबंधन सरकार बनाई, जिसके मुखिया के रूप में हेमंत सोरेन राज्य के नौवें मुख्यमंत्री बने और एक साल 5 महीने 10 दिनों तक शासन किया।

पहली बार पांच साल

इसके बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा यहां सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई और 28 दिसंबर, 2014 को जो रघुबर दास राज्य के 10वें मुख्यमंत्री बने, पहली बार उन्होंने ही यहां अपना पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया। हालांकि, अपनी पार्टी के बिना बहुमत के ही दास झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे और उनकी सरकार आजसू के साथ बनी थी। बाद में जब बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गये तो भाजपा के विधानसभा सदस्यों की संख्या 37 से बढ़कर अब 43 पर पहुंच गई और पूर्ण बहुमत की वजह से भाजपा सरकार ने यहां अपना कार्यकाल पूरा कर लिया।

आगे क्या?

झारखंड में फिर से विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। भाजपा इस बार अपने सहयोगी आजसू से अलग होकर अकेले चुनाव मैदान में है। दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल का गंठबंधन है। झारखंड विकास मोर्चा भी भाजपा की तरह अकेले ही चुनाव मैदान में ताल ठोंक रही है। साथ में कम्युनिस्ट पार्टियां भी अकले दमखम दिखा रही हैं। आजसू, जो कि अब भाजपा के साथ नहीं है, वह भी राज्य की अधिकतर सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड के 2 करोड़ 26 लाख मतदाता अबकी राज्य में किसे बहुमत देती है। खजिन संपदा से भरपूर इस राज्य को स्थिर सरकार की बहुत जरूरत है, ताकि विकास की दौड़ में वह भी देश के बाकी राज्यों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल सके।

Anupam Kumari

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