नागरिकता संशोधन कानून को लेकर इस वक्त पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। विपक्ष लगातार इसे लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठा रहा है। साथ ही देश भर में विपक्षी दलों की ओर से विरोध-प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। ऐसे में यह जानना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर नागरिकता को लेकर जो यह बहस इन दिनों चल रही है, उसी नागरिकता को लेकर भारत के पहले और कांग्रेसी प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू क्या नजरिया रखते थे?
शरणार्थियों को जो नागरिकता दिए जाने को लेकर आजकल बहस चल रही है, इसी तरह की बहस वर्ष 1949 में भी हो चुकी है। जी हां, संविधान सभा में 8 जनवरी, 1949 को नागरिकता के मुद्दे पर जोरदार बहस हुई थी। अलगू राय शास्त्री द्वारा इस दौरान नागरिकता को लेकर जवाहर लाल नेहरू से सवाल पूछे गए थे। भारत का नागरिक आखिर किसे माना जाए और किसे नहीं, इस बारे में अलगू राय शास्त्री स्पष्ट जानकारी चाह रहे थे। जवाहरलाल नेहरू ने इसका जवाब भी दिया था। उन्होंने कहा था कि जो भी शरणार्थी खुद को बिल्कुल भारतीय नागरिक की तरह ही मान रहे हैं, उन्हें हम भारतीय नागरिक के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार शरणार्थियों को नागरिकता देने को लेकर बहुत ही उदार थे। दृष्टिकोण उनका मानवतावादी था। विस्थापन का दर्द क्या होता है, इसे वे अच्छी तरह से समझ रहे थे। वे जान रहे थे कि विस्थापन की वजह से एक बड़ी आबादी को दर्द झेलना पड़ रहा है। ऐसे में उन्होंने अपने ये विचार संविधान सभा में रखे थे।
शरणार्थियों को नागरिकता देना कितना उचित है, इसे लेकर एक और बहस 12 अगस्त, 1949 को संविधान सभा में हुई थी। महबूब अली बेग ने इस दौरान इसे लेकर अपने विचार रखे थे। उन्होंने साफ सवाल किया था कि आखिर पाकिस्तान से जो विस्थापित होकर लोग आ रहे हैं, उन्हें भारत की नागरिकता क्यों नहीं दी जा सकती है? इसके समर्थन में उन्होंने बताया था कि वहां इन लोगों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। जब सत्ता का स्थानांतरण हो रहा था, उसी वक्त दोनों देशों ने अपने यहां के अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने की बात कही थी, मगर यह किसी से नहीं छुपा है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ कितनी ज्यादती हो रही है। ऐसे में लोग वहां से भागकर भारत आ रहे हैं। बेग ने यह भी कहा था कि कुछ लोग मानते हैं कि यहां आकर वे साजिश रचेंगे। इसलिए उन्हें यहां नहीं लौटने देना चाहिए। बेग ने कहा था कि ऐसे लोगों से वे कहना चाहेंगे कि इस तरह की शंका वाली सोच रखकर कोई भी देश ताकतवर नहीं बन सकता है।
महबूब अली बेग के समर्थन में उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उतर गए थे। नेहरू ने उस वक्त कहा था कि राष्ट्रवादी मुस्लिम की विचारधारा का वे पूरी तरह से समर्थन करते हैं। वे मान रहे थे कि परिस्थितियों के कारण कुछ मुस्लिमों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा है। वहां जाने के बाद जब उन्होंने देखा है कि वहां उनकी क्या दुर्दशा हो रही है और वहां उनका जी पाना कितना मुश्किल है, तो उन्हें समझ में आ रहा है कि भारत ही उनके लिए सबसे महफूज जगह रही है। उस पर जाने के बाद उन्हें यह पता चल रहा है कि वहां उन्हें दुश्मनों की नजर से देखा जा रहा है। नेहरू के मुताबिक पाकिस्तान में जब इन लोगों की हालत बेहद दयनीय हो गई है तो इनमें से बहुत से लोग वापस आ गए हैं। बहुत से मुस्लिम ऐसे भी हैं जो वापस आने की इच्छा जता रहे हैं।
नेहरू ने उस दौरान यह भी कहा था कि भारत को पाकिस्तान अपना दुश्मन धर्म के आधार पर नहीं मान रहा है। वह भारत को अपना दुश्मन राष्ट्रीयता एवं नस्ल के आधार पर मानता है। नेहरू ने यह भी कहा था कि इन लोगों को यदि हम संदेह की नजरों से देखते हैं तो यह नजरिया क्षेत्रीय होगा। उनका यह मानना था कि यदि हम गर्मजोशी की भावना रखते हैं और इन्हें वापस अपना लेते हैं तो इससे हर तरह की शंका समाप्त हो जाएगी। इस विचार के लिए नेहरू पर तुष्टिकरण के भी आरोप लगे थे, लेकिन इसका भी उन्होंने खुलकर जवाब दिया था।