नागरिकता संशोधन कानून यानी कि CAA के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में जो विरोध प्रदर्शन चल रहा है, वह अनवरत जारी है। शाहीन बाग का यह प्रदर्शन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। जबसे शाहीन बाग का प्रदर्शन शुरू हुआ है, तब से अब तक के बीच में बीते कुछ दिनों में दिल्ली सांप्रदायिक दंगों की आग में भी झुलस चुकी है। एक बार फिर से धर्मनिरपेक्षता शब्द को लेकर बहस शुरू हो गई है। दो शब्द हैं। एक है सेक्यूलर और दूसरा है कट्टर।
भारत के परिप्रेक्ष्य में सेक्युलर शब्द ही अहमियत रखता है, क्योंकि भारत एक सेक्यूलर देश है, धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन जिस तरीके के हालात पिछले कुछ समय में राजधानी दिल्ली में बने और जिसका प्रभाव संभवतः पूरे देश पर भी पड़ सकता है, उसने इस सोच को बल दिया है कि क्या सेक्यूलर से ज्यादा कट्टर शब्द अधिक हावी हो रहा है?
जो लोग खुद को कट्टर बता रहे हैं या जो खुद को सच्चा हिंदू बता रहे हैं, अक्सर उनके द्वारा महाराणा प्रताप, महारानी लक्ष्मीबाई और छत्रपति शिवाजी का नाम लिया जाता है। वे खुद को उनके वंशज बताते हैं, लेकिन ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने शायद ठीक से इतिहास को नहीं पढ़ा है। यदि उन्होंने इतिहास को पढ़ा होता तो शायद वे खुद को कट्टर या खुद को हिंदू या मुस्लिम न बता कर खुद को एक इंसान बताते। खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते। खुद को सेक्युलर बताते।
सबसे पहले बात करते हैं छत्रपति शिवाजी महाराज की। औरंगजेब से उनकी लड़ाई थी। औरंगजेब का उदाहरण देते हुए बहुत से लोग बताते हैं कि उसके धर्म से महाराणा प्रताप की लड़ाई थी। वैसे लोगों से यह सवाल किया जाना चाहिए कि वास्तव में यदि औरंगजेब से लड़ाई महाराणा प्रताप की उसके धर्म को लेकर थी तो फिर औरंगजेब के धर्म का इब्राहिम खान आखिर छत्रपति शिवाजी महाराज के तोपखाने का प्रमुख क्यों था? आखिर क्यों शिवाजी की सेना में 30 से 35 फ़ीसदी लोग मुसलमान थे? आखिर क्यों शिवाजी ने 700 पठान को अपनी सेना में रखा था? छत्रपति शिवाजी की लड़ाई यदि औरंगजेब के धर्म से ही होती तो छत्रपति शिवाजी हैदराबाद के निजाम से अच्छी दोस्ती आखिर क्यों रखते?
महाराणा प्रताप, जिनकी गिनती सबसे वीर राजाओं में होती है, आखिर क्यों वे दर-दर भटकने के लिए मजबूर हो गए थे? जिन्होंने महाराणा प्रताप को जंगलों में भटकने के लिए मजबूर कर दिया, उनका धर्म क्या था? हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के खिलाफ जो मुगलों की सेना का नेतृत्व कर रहा था, वह था मान सिंह। महाराणा प्रताप की सेना में सेनापति हाकिम खां सूर था। तो फिर यहां बात धर्म की कहां से आ गई? जिन आदिवासी लोगों को, जिन भील लोगों को निम्न कोटि का इस समाज में समझा गया है, महाराणा प्रताप का साथ दरअसल जंगलों में इन्हीं लोगों ने दिया था। इन्हीं लोगों की वजह से महाराणा प्रताप एक बार फिर से मजबूत हो सके थे और इन्हीं की वजह से महाराणा प्रताप आगे की लड़ाई लड़ पाने में सफल हो पाए थे।
खान-ए-खाना जो कि अजमेर के गवर्नर थे, महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने उनके परिवार की महिलाओं और बच्चों को कैद कर लिया था। खान-ए-खाना वही थे, जिन्हें हम रहीम के नाम से जानते हैं। रहीम मशहूर हिंदी कवि थे। उनके दोहे हमने और आपने खूब पढ़े हैं। महाराणा प्रताप को जब यह जानकारी मिली कि उनके बेटे ने ऐसा किया है तो वे बहुत नाराज हो गए थे। इसके बाद अमर सिंह को अपने किए पर पछतावा हुआ था और उन्होंने पूरे सम्मान के साथ सभी को रिहा करते हुए वापस उनके घर तक पहुंचाया था। बाद में रहीम ने महाराणा प्रताप की तारीफ में काफी कुछ लिखा भी था।
रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सबसे अच्छे तोप कड़क बिजली की जिम्मेवारी तोपची गुलाम गौस खां को सौंपी हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई के सबसे वफादार माने जाने वाले खुदा बक्श भी उनके धर्म के नहीं थे। अंग्रेजी सेना से घिर जाने पर जब बुंदेलखंड के कई राजाओं ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने से मना कर दिया था, वैसे वक्त में नवाब बांदा को रानी लक्ष्मीबाई ने चिट्ठी लिखी थी और उन्होंने अपने 10 हजार सैनिक रानी लक्ष्मीबाई की मदद के लिए भेज दिए थे। इस वक्त ग्वालियर के सिंधिया ने क्या किया था, यह किसी से छुपा नहीं है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि उस वक्त कभी भी हिंदू मुसलमान था ही नहीं। तो फिर आज यह हिंदू मुसलमान क्यों किया जा रहा है? क्यों इतिहास का नाम लेकर कट्टरता को सेक्यूलर से बेहतर साबित करने की कोशिश की जा रही है? ऐसा करना किसी के लिए भी हितकर नहीं है। देश तभी आगे बढ़ेगा, जब सभी आगे बढ़ेंगे। एक भी पीछे छूट गया तो यह देश कुछ नहीं कर पायेगा।