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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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नमस्कार! मैं इरफ़ान आज आपके बीच हूँ भी और नहीं भी

आज सूबेदार चचा चले गए तो उनका ही एक डायलॉग याद रह गया जिसमे वो कहते हैं कि "जे बात को जवाब कौन देगा दद्दा, हम ऊपर आकर भी जवाब लेंगे".-इरफ़ान खान
हैलो भाइयों बहनों, नमस्कार, मैं इरफ़ान खान आज आपके साथ हूँ भी और नहीं भी

मुंबई: कई बार कुछ कलाकार हीरोगीरी वाली लाइन पार करके आपके दिल में उतर जाते हैं. इतना उतर जाते हैं कि आप उनके डायलॉग रोजाना अपनी भाषा में इस्तेमाल करने लगते हैं और इरफ़ान खान हमारे लिए तुम वही थे. दुनिया के लिए रहे होंगे बहुत बड़े अभिनेता जिसने हॉलीवुड की फिल्मों में भी काम किया था लेकिन मेरे लिए “पान सिंह तोमर” के सूबेदार चचा थे. वही सूबेदार चचा जो कहते हैं कि “अंग्रेज भगे मुल्क से, पंडिज्जी परधानमंत्री बने और नव भारत के निर्माण के संगे-संगे हमाओ भी निर्माण शुरू भओ”. आज सूबेदार चचा चले गए तो उनका ही एक डायलॉग याद रह गया जिसमे वो कहते हैं कि “जे बात को जवाब कौन देगा दद्दा, हम ऊपर आकर भी जवाब लेंगे”.



तुम वही कहते थे जो हमें सुनना था- तुम्हारे डायलॉग बर्फ की पहाड़ियों में खड़े किसी अभिनेत्री के साथ नहीं थे. बल्कि बीहड़ में घूम रहे एक बागी के डायलॉग थे जिन्हे सुनकर लगता था यार क्या ही बोल गया. ये तो मतलब मजा आ गया. चाहे बात हासिल के रणविजय सिंह की हो या फिर हिंदी मीडियम में साडी बेच रहे उस दुकानदार की, हर बार तुमने दिल जीता है.



अब तुम्हारे चले जाने पर तरह-तरह के बयान आएँगे। लोग कहेंगे की ये सिनेमा के लिए बहुत बड़ी क्षति है. हमने एक बहुत बड़ा एक्टर खो दिया। इतना कहकर शायद कोई चुप हो जाए लेकिन कोने में बैठा सूबेदार चचा का फैन हमेशा रोता रहेगा। वो हमेशा ये सोचेगा की अभी तुम आओगे और कहोगे “हमाओ बदला पूरा न भओ”. तुम्हारा वो वाला डायलॉग जब तुम तीन स्टेट की पुलिस को चकमा देकर एक व्यापारी को पकड़ लाते हो और वो कहता है की तुम लोग पुलिस तो नहीं लग रहे हो. तो तुम कहते हो “सही पहचाना, हम हैं सूबेदार पान सिंह तोमर और तुम हो हमाई पकड़, कहो हाँ”. ये बोलते ही मानो लगता था की जैसे ये लाइने लिखी ही तुम्हारे लिए गईं थीं.



अब बस इतना ही कहूंगा की तुम मुझे कभी अभिनेता नहीं लगे. ऐसा लगता था की जैसे अभी पिछली वाली गली से तुमसे मिलकर आ रहा हूँ और टीवी खोली तो तुम्हारी फिल्म आने लगी. तुम वैसे ही बात कर रहे हो जैसे अभी घर के कोने में खड़े होकर हमसे कर रहे थे. एकदम अपना सा लगता था सबकुछ।  तुम्हारी हर एक फिल्म से एक नई उम्मीद बंध जाती थी की चलो कुछ ऐसा आया है जिसपर कुछ दिनों तक बात तो करेंगे। लेकिन अब शायद बातें खत्म हो जाएंगी। अब बस यादें होंगी। हमें तुम हमेशा याद रहोगे, हमेशा। जब कभी इरफ़ान खान नाम सुनेंगे तो काँधे में बन्दूक टाँगे और वर्दी पहने हमे सूबेदार चचा दिखाई देंगे और कह रहें होंगे “अरे वैसे ही है तुमाओ पंडित, सरेंडर है जाएंगे, सरेंडर है जाएंगे, सरेंडर का मतलब पतो है”
आज सब सरेंडर है गयो सूबेदार चचा, सब सरेंडर है गयो

 

तुमने कहा था की भाइयों बहनों मैं हूँ भी और नहीं भी. इस बीच शायद तुम ये भी कहना चाहते होंगे की मैं हूँ. यहीं हूँ. बंबई में स्ट्रगल कर रहे शख्स की कहानी में मैं हूँ, काम ना मिलने की उदासी में मैं हूँ और फिर काम को अपनी जिन्दगी बना लेने की चाह में मैं हूँ…

दरिया भी मैं, दरख़्त भी मैं

जेहलम भी मैं, चिनार भी मैं

दैर भी हूं, हरम भी हूं

शिया भी हूं, सुन्नी भी हूं

मैं हूं इरफ़ान

मैं था, मैं हूं, और मैं ही रहूंगा…

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.