बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता इरफान खान के निधन से पूरा देश दुख के सागर में है। वो साल 2018 से न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी से जूझ रहे थे। ये काफी रेयर बीमारी है, जिससे शरीर के कई अंगों पर गंभीर असर होता है। वहीं हाल ही में उन्हें हुए संक्रमण कोलोन इंफेक्शन का ताल्लुक पेट से है। जानिए, क्या हैं ये दोनों बीमारियां।
न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर एक ऐसी अवस्था है जिसमें नर्वस सेल्स का निर्माण करने वाले हार्मोन में न्यूरो एंडोक्राइन कोशिकाएं असामान्य गति से बढ़ने लगती हैं। इन कोशिकाओं का नर्व कोशिकाओं और हार्मोन्स दोनों से ताल्लुक होता है। यानी की कोशिकाओं की असामान्य ग्रोथ से बने ट्यूमर से हार्मोन्स भी प्रभावित होते हैं। यानी इसका पहला असर उन ब्लड सेल्स पर होता है, जो खून में हॉर्मोन्स का स्त्राव करती हैं। ये ट्यूमर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है लेकिन सबसे ज्यादा मामलों में पेट में देखे गए हैं। जैसे पाचन नलिका, आंत, अग्नाशय, फेफड़ों या एपेंडिक्स के अंदर, दूसरे किसी भी कैंसर की तुलना में ये कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है इसलिए शुरुआत में इसका पता चल पाना मुश्किल ही होता है। इसी के शिकार थे मशहूर अभिनेता इरफान खान ।
ट्यूमर के आकार, उसके टाइप और वो किस अंग में हुआ है, इस पर निर्भर करता है कि मरीज में कैसे लक्षण दिखेंगे। हालांकि अक्सर इसका पता काफी देर से और तब लगता है जब कैंसर बढ़ता हुआ लिवर तक न पहुंच जाए या फिर किसी एक अंग को बुरी तरह से प्रभावित न कर दे। अगर ये ट्यूमर पेट में हो जाए तो मरीज को लगातार कब्ज की शिकायत रहेगी। फेफड़ों में हो जाए तो मरीज को लगातार बलगम रहेगा. बीमारी होने के बाद मरीज का ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल बढ़ता-घटता रहता है।
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के इलाज के कई तरीके हैं, जो बीमारी की अवस्था पर निर्भर होते हैं। इनमें सबसे पहले सर्जरी के तहत ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। इसके बाद कीमोथैरेपी, हार्मोन थैरेपी जैसे विकल्प आते हैं। अगर बीमारी काफी फैल चुकी हो और सर्जरी मुमकिन न हो तब रेडिएशन थैरेपी की जाती है।
ट्यूमर से पिछले तीन सालों से जूझ रहे इरफान खान हाल ही में कोलोन संक्रमण की वजह से अस्पताल में थे। यहां ये जानना भी जरूरी है कि कोलोन इंफेक्शन असल में क्या है और कितना खतरनाक हो सकता है। आमतौर पर गंदे पानी या खाने के कारण होने वाली इस बीमारी में पेट के भीतरी हिस्से में बड़ी आंत में सूजन आ जाती है। कोलोन संक्रमण की इस अवस्था को कोलाइटिस भी कहते हैं। वैसे संक्रमण की वजह के आधार पर कोलोन इंफेक्शन की कई श्रेणियां हैं, जैसे शरीर पर बैक्टीरिया या वायरस का हमला हुआ है या फिर शरीर में खून का बहाव ठीक से नहीं हो पा रहा। कई बार कैंसर के मरीजों में भी कोलोन इंफेक्शन दिखता है, जो Inflammatory bowel syndrome (IBD) के तहत आता है। दर्द या सूजन कम करने वाली दवाएं काफी वक्त तक लेने पर भी कोलोन संक्रमण का डर रहता है, जिसे Drug-induced colitis कहते हैं।
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इसके लक्षणों में पेट दर्द, उल्टियां, थकान और तेज बुखार जैसे संकेत शामिल हैं। मरीज का वजन तेजी से कम होता है और उसे बार-बार टॉयलेट जाने की जरूरत पड़ती है। वक्त पर पकड़ में आने पर कोलाइटिस या कोलोन इंफेक्शन का इलाज मुश्किल नहीं। आमतौर पर इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी की वजह क्या है। एंटीबायोटिक और लाइस्टाइल में बदलाव से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। कई बार गंभीर मामलों में आंतों की सर्जरी की जरूरत भी हो सकती है।