साल 2013 में पहली बार चुनाव लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल, चुनाव लड़ा दिल्ली से कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया। 2013 में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन 49 दिनों में इस्तीफा दे कर 2015 में पूर्ण बहुमत की मांग करने लगे। दिल्ली वालों ने दिल खोल कर वोट किया 70 में से 67 सीटें जीता दी, 5 साल शासन किया। लोगों को काम अच्छा लगा और 2020 में दोबारा चुनाव में जीत दिला दी। इस बार भी 2015 जैसी जीत हां सीटें कुछ कम हुई लेकिन इतना फर्क नहीं पड़ा। इस बार 70 में से 62 सीटें। दिल्ली वालों को लगा कि ये आदमी हमारा नेता, हम जैसा है, इसने शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दों की राजनीति शुरु कर दी है और असलियत में देश की राजनीति बदलने आया है। क्योंकि अन्ना आंदोलन के बाद राजनीतिक दल बनाने वाले अरविंद केजरीवाल ने तो यही कहा था कि हम गंदी राजनीति को साफ करेंगे।
सब कुछ अच्छा चल रहा था फिर आया कोरोना का वक्त और दिल्ली में केस लगातार बढ़ते गए, 1000, 5000, 10000, 25000, और अब तो रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। अब ये गलत नीतियां कह लो या दिल्ली का राजधानी होना कह लो। एक बार को दिल्ली वाले बढ़ते केस भी सह लेते, लेकिन केजरीवाल सरकार की खामियां शायद ही अब जनता सह पाएगी। कहीं किसी को बेड तो कहीं किसी को वेंटिलेटर नहीं मिल रहा है। कोई टेस्ट के लिए दर-दर भटक रहा है तो कभी मृतकों का अंतिम संस्कार न होना खल रहा है। जो केजरीवाल सरकार मेडिकल क्षेत्र में अपने काम गिनवात नहीं थकती थी, अब उसे अपनी जुबान पर ताला लगाना पड़ेगा।
कोरोना में फेल हो गई केजरीवाल की वर्ल्ड क्लास सुविधाएं
केजरीवाल सरकार की व्यवस्थाओं की पोल कोरोना ने ही खोल कर रख दी है। दिल्ली वाले शायद इस बात से खुश होंगे कि महाराष्ट्र जैसा हाल हमारा नहीं है। क्योंकि अगर 25 हजार केसों में दिल्ली का ये हाल हो गया है तो सोचिये अगर महाराष्ट्र जैसा हाल हो जाता तो अरविंद केजरीवाल क्या करते। अरविंद केजरीवाल रोज कई बार टीवी पर फेसबुक पर दिख जाते हैं, वो कहते हैं हमारी व्यवस्था पूरी है तो फिर क्यों कोई अपने पिता को तो कोई अपने जीजा को लेकर भटक रहा है। कोई प्राइवेट अस्पताल के बाहर खड़ा हुआ है लेकिन उसे भर्ती नहीं किया जा रहा है। क्यों किसी को टेस्ट के लिए तारीखें दी जा रही है तो किसी को इधर से उधर ट्रांस्फर किया जा रहा है।
भरोसा टूट गया
दिल्ली में बढ़ते कोरोना संक्रमण को लेकर अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली में मामलों में वृद्धि देखी जा रही है, हम इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है… मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आप की सरकार कोरोना वायरस से चार कदम आगे है और हम इस महामारी से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। लेकिन जिस तरह से अमरप्रीत अपने ससूर के इलाज के लिए ट्विटर पर गुहार मांगती रही वो इस दावे की पोल खोल देता है। केजरीवाल तो कहते थे कि वो 4 कदम आगे हैं लेकिन इस मामले में तो वो बाकी सभी से कई कदम पीछे नजर आए।
अमरदीप के जैसा ही हाल वरुण, जैन साहब का भी हुआ था, टीवी पर कई पीड़ित आए हैं और अपनी बात रख कर गए हैं। जिसका जवाब कई बार राघव चढ्ढा देते नजर भी आए हैं। केजरीवाल कोरोना संकट से निपटने में तो पूरी तरह नाकामयाब साबित हुए हैं। इस नाकामयाबी के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें से एक ये हो सकता है कि दिल्ली सरकार ने अपना दिमाग नहीं लगाया और केंद्र के ही हिसाब से सबकुछ किया। लेकिन वो ये भूल गए थे कि अगर दिल्ली वालों को केंद्र की ही नीतियों को राज्य में लागू करवाना होता तो वो उन्हें इतना बड़ा शासन क्यों देते? केजरीवाल से उम्मीद थी कि वो जिन सुविधाओं को गिनवाते हैं उनका सही से इस्तेमाल करेंगे, लेकिन वो इसमें फेल हो गए हैं।