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क्या मध्य प्रदेश में अब नहीं चलेगा मामा-राज? आखिर कैसे बिगड़ा संतुलन

28 में भाजपा के अपने पुराने महज 16 ही मंत्री है, जबकि 9 मंत्री ज्योतिरादित्य खेमे से ताल्लुक रखते हैं, 3 मंत्री ऐसे हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल
Others Taranjeet 8 July 2020

23 मार्च को शपथ लेने के 100 दिन बाद शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार कर सके हैं। मुख्यमंत्री की इस नई टीम में 28 मंत्रियों को शामिल किया गया है, लेकिन क्या ये असल में शिवराज सिंह चौहान की ही टीम है? क्या ये टीम उनकी मर्जी से बनाई गई है?

इसका जवाब हां और ना दोनों हो सकते हैं। हां इसलिए क्योंकि वो मुख्यमंत्री है कप्तान अपनी टीम खुद ही चुनता है, लेकिन ना इसलिए क्योंकि लगता नहीं है कि ये उनकी टीम है। क्योंकि शपथ लेने वाले इन 28 मंत्रियों में से 20 कैबिनेट मंत्री और 8 राज्यमंत्री है। और इनका गणित बहुत ही हैरान करने वाला है, क्योंकि 28 में से भाजपा के अपने पुराने महज 16 ही मंत्री है, जबकि 9 मंत्री है जो ज्योतिरादित्य खेमे से ताल्लुक रखते हैं और 3 मंत्री ऐसे हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे।

शिव ने पीया विष?

इन कैबिनेट मंत्रियों में इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, महेन्द्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव और राज्य मंत्रियों में भारत सिंह कुशवाहा, ब्रजेन्द्र यादव, गिर्राज डण्डौतिया, सुरेश धाकड़ और ओपीएस भदौरिया, सिंधिया खेमे से हैं। जबकि भाजपा के 16 विधायकों में भी सिर्फ 7 पुराने मंत्रियों को ही मौका मिल पाया है और 9 नए चेहरे शामिल किए गए हैं। शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले कैबिनेट विस्तार के लिए चली लंबी माथापच्ची के सवाल पर शिवराज ने कहा था कि मंथन में अमृत निकलता है, विष शिव पी जाते हैं। ये शिवराज के द्वारा गया एक भारी बयान था, जिसमें वो साफ कह रहे थे कि अपनी नई टीम के इस बंटवारे से वो खुश नहीं हैं। तो क्या वजह है कि भाजपा आलाकमान ने नई लिस्ट को हरी झंडी देते हुए 4 बार के मुख्यमंत्री शिवराज को ही तरजीह नहीं दी? इसकी वजह साफ हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया।

सिंधिया ने बिगाड़ा संतुलन?

मध्य प्रदेश की राजनीति पर करीबी नजर रखने वालों के मुताबिक सिंधिया के भाजपा में आने के बाद से ही पार्टी की अंदरूनी राजनीति का संतुलन बिगड़ गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे सिंधिया 11 मार्च को भाजपा में शामिल हुए और उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी थी। जिसके बाद 20 मार्च को कमलनाथ सरकार गिर गई थी और 23 मार्च को शिवराज ने सीएम पद की शपथ ली थी। इसके बाद पहले तो 29 दिनों तक शिवराज ने अकेले ही सरकार चलाई थी। जिसके बाद 21 अप्रैल को पांच सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन हुआ और जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के दो मंत्री तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत शामिल थे।

इसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मंथन चलता रहा और शिवराज चाहते थे टीम में उनके खेमे के लोग शामिल हों। लेकिन सिंधिया जिस सौदेबाजी के साथ भाजपा में आए होंगे आलाकमान को उसे भी पूरा करना होगा। इसके अलावा नए लोगों को मौका देने के नाम पर शिवराज के पुराने विश्वासपात्रों को भी दिल्ली दरबार मंत्रिमंडल से बाहर रखना चाहता था। इस दौरान शिवराज ने दिल्ली के चक्कर भी लगाए, लेकिन सहमति नहीं बनी और आखिरकार लंबे मंथन के बाद नए नामों की लिस्ट फाइनल हो पाई थी। जिसमें चली तो सिंधिया की ही।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.