Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

भारत-पाक जंग 1971, खुद से अपने पैर काटकर भी लड़ा था ये वीर

उन्होंने अपने साथियों से पैर काट देने के लिए कहा। साथियों ने ऐसा नहीं किया तो खुद से उन्होंने अपने पैर को काट दिया। इस हालत में भी इयान ने नेतृत्व किया।
Information Anupam Kumari 2 August 2020
भारत-पाक जंग 1971, खुद से अपने पैर काटकर भी लड़ा था ये वीर

1971 की जंग को न तो भारत भुला सकता है और ना ही पाकिस्तान। भारत इसलिए इस जंग को नहीं भूलेगा, क्योंकि इस जंग में भारत के जवानों ने अद्भुत वीरता का परिचय दिया। वहीं ,पाकिस्तान इस जंग को इसलिए नहीं भूल सकता, क्योंकि इस युद्ध में उसकी शर्मनाक हार हुई थी। दुनिया को मुंह दिखाने के भी काबिल वह नहीं रह गया था।

इस युद्ध में इयान कार्डोजो नामक एक बहादुर जवान ने भी लड़ाई लड़ी थी। वे बुरी तरीके से घायल जरूर हो गए थे, लेकिन दुश्मनों के सामने उन्होंने हार नहीं मानी। खून से लथपथ हो गए। यह भी जानते थे कि बचना अब मुमकिन नहीं है। फिर भी लड़े। तब तक लड़े जब तक भारत इस युद्ध को जीत नहीं गया।

युद्ध में बदला तनाव

साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा था। यह प्रतीत होने लगा था कि दोनों देशों के बीच जंग बहुत जल्द छिड़ने जा रही है। पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराना था। इसकी मांग लगातार उठ रही थी और इसी को लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध भी हुआ था।

शुरुआत हालांकि इस युद्ध की पाकिस्तान की ओर से ही की गई थी। अब जब दुश्मन ने शुरुआत कर दी तो भारत के लिए युद्ध में जाना एक तरीके से मजबूरी हो गई थी। अपनी सेना को भारत ने भी इधर से भेज दिया। जो सेना की टुकड़ी यहां भेजी गई थी, उनमें से एक टुकड़ी गोरखा रेजीमेंट की भी थी।

इयान को मिला मौका

इसी रेजिमेंट में इयान कार्डोजो भी शामिल थे। जंग जब शुरू हुई तब उन्हें इस युद्ध में लड़ने का अवसर नहीं मिला था। लेकिन जब उनके रेजिमेंट के एक अधिकारी लड़ते हुए शहीद हो गए तब इयान को भी युद्ध में जाने का मौका मिल गया।

बचपन से ही इयान का सेना में जाने का सपना था। युद्ध में गए तो अब उनके ऊपर देश के मस्तक को ऊंचा रखने की जिम्मेवारी थी। भारतीय सेना के पहले हेलीकॉप्टर मिशन का भी वे हिस्सा बने। अपने साथी के साथ अपनी मंजिल पर तो इयान जरूर पहुंच गए, लेकिन यहां पाकिस्तान भारी गोलीबारी कर रहा था। एक बहुत बड़ी सेना उनके सामने थी और इनकी बस एक छोटी सी टुकड़ी थी। स्थितियां प्रतिकूल नहीं थीं, फिर भी भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने हार मानना स्वीकार नहीं किया।

बहादुरी का परिचय

पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। गोला-बारूद तक खत्म हो गए थे। खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा था। फिर भी पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते रहे। दिन जैसे-जैसे बीत रहे थे, युद्ध बड़ा होता जा रहा था। सभी टुकड़ियां इंतजार कर रही थीं सेना की ओर से बैकअप के आने का।

इसी दौरान फंसे हुए कुछ बांग्लादेशी कैदियों को रिहा करने की जिम्मेवारी इयान की टुकड़ी को मिल गई। इस मिशन को बीएसएफ की एक टुकड़ी के साथ मिलकर उन्हें पूरा करना था। ये लोग आगे बढ़ने लगे। पाकिस्तानी सेना से लड़ते रहे। उस जगह को भी इन्होंने खाली कराने में कामयाबी हासिल कर ली।

धमाके का शिकार

अब बस उन घायल कैदियों को सेना के कैंप तक किसी तरीके से पहुंचाना था। इस काम की जिम्मेवारी इयान ने ले ली। कैदियों की ओर तेजी से बढ़ने लगे। ध्यान ही नहीं रहा कि पाकिस्तानी सैनिकों के जाल में फंसते जा रहे हैं। लैंडमाइन वहां बिछी हुई थी। थोड़ी दूर आगे बढ़े ही थे कि एक पैर इयान का माइन पर पड़ गया। इसके बाद बड़ा धमाका हुआ। इयान इसकी चपेट में आ गए। बहुत दूर जाकर वे गिरे थे।

शरीर से खून बहता ही जा रहा था। इयान को घायल अवस्था में एक बांग्लादेशी ने देख लिया था। सेना तक उन्हें उठाकर उसने पहुंचाया था। फिर अपने कैंप तक सेना इयान को लेकर गई थी। इयान के पैर में दर्द असहनीय था। उन्होंने अपने साथियों से उनका पैर काट देने के लिए कहा। साथियों ने ऐसा नहीं किया तो खुद से उन्होंने अपने पैर को काट दिया। हर कोई उनकी हिम्मत को देखकर हैरान रह गया। इस हालत में भी इयान ने सैनिकों का नेतृत्व किया।

जीत अपनी झोली में

सैनिकों में जोश भर आया था। आखिरकार भारत इस युद्ध को जीतने में कामयाब रहा। इयान को बाद में सेना मेडल देकर सम्मानित भी किया गया था। बहादुरी के उनके किस्से आज भी याद किए जाते हैं। इयान कार्डोजो जैसे सैनिकों की बहादुरी को देख कर पाकिस्तान भी तब दंग रह गया था। आज भी ऐसे वीरों से हमारे दुश्मन खौफ खाते हैं।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान