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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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आज लाहौर में भी लहरा रहा होता तिरंगा, लेकिन भारी पड़ गई वो भूल

सेना को इस बार लाहौर फतेह कर ही लेना था। जमीन पर जबरदस्त लड़ाई चल रही थी। खूब खून-खराबा चल रहा था। जवानों की शहादत हो रही थी ।
Information Anupam Kumari 26 July 2020
आज लाहौर में भी लहरा रहा होता तिरंगा, लेकिन भारी पड़ गई वो भूल

पाकिस्तान का मतलब होता है पाक स्थान यानी कि पवित्र जगह। लेकिन यही पाकिस्तान हमेशा नापाक हरकतें करता रहता है।अगर ये बड़ी भूल हमने न की होती तो आज लाहौर में तिरंगा लहरा रहा होता। लेकिन भारत को परेशान करने का पाकिस्तान एक भी मौका नहीं गंवाता। इस वक्त भी सीमा पर पाकिस्तान ऐसा ही कर रहा है।

जहां एक ओर पाकिस्तान की ओर से सीजफायर का उल्लंघन किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आतंकवादी लगातार भारत में घुस रहे हैं। निर्दोष नागरिकों की जान पाकिस्तान ले रहा है।

आतंकवादियों से बार-बार मुठभेड़ हो रही है। आए दिन जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ रही है। देशवासियों का खून यह देखकर खौल उठता है। गुस्सा बहुत आता है। कई बार लोग बोलते हैं कि काश उस वक्त लाहौर को जीत ही लिया होता।

तो क्या सच में भारत लाहौर को जीतने वाला था? क्या सच में कभी कुछ ऐसा हुआ था कि लाहौर पर भारत अपना कब्जा जमा लेता?क्या सच में लाहौर में तिरंगा देखने को मिलता ? इसी के बारे में यहां हम आपको बता रहे हैं।

आदत से दोनों लाचार

देखा जाए तो भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपनी आदत से लाचार रहे हैं। यह चीज 1965 के जंग में भी देखने को मिली थी। पाकिस्तान अति आत्मविश्वास का शिकार हमेशा हो जाता है। यही कारण है कि 1965 के युद्ध में उसकी हालत पतली हो गई थी। वहीं, भारत की आदत है कि वह हमेशा समझौता कर लेता है।

मिला था बड़ा मौका

1965 का युद्ध एक बहुत बड़ा मौका लेकर आया था दोनों देशों को फिर से एक कर देने का। लेकिन अपनी आदत से भारत लाचार था। पूरी तैयारी थी। सेना को इस बार लाहौर फतेह कर ही लेना था। जमीन पर जबरदस्त लड़ाई चल रही थी। खूब खून-खराबा चल रहा था। जवानों की शहादत हो रही थी। हालांकि, जैसे ही सियासत की तरफ यह युद्ध मुड़ा, परिस्थितियां देखते-ही-देखते बदल गईं।

फरमान आया और सीजफायर हो गया

हमला तो 1965 में भारत पर पाकिस्तान ने किया था, लेकिन मुंह की पाकिस्तान को खानी पड़ी थी। ऐसा साहस भारतीय सेना ने दिखाया कि पाकिस्तान की तो आधी सेना ही खत्म हो गई थी। कोई शक इसमें नहीं बचा था कि भारत लाहौर फतेह करने जा रहा है। तभी अचानक से एक फरमान आया। सीजफायर इसके बाद हो गया।

उधर एक और युद्ध

इधर भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे से लड़ रहे थे। दूसरी ओर वियतनाम से लड़ने में अमेरिका भी जुटा हुआ था। जंग उसे जीतनी थी। पाकिस्तान की मदद लेनी थी। अमेरिका को मालूम था कि जिस जोश से भारत लड़ रहा है, पाकिस्तान तो दुनिया के नक्शे से अब गायब होने वाला है।

फिर क्या था, भारत पर सीजफायर के लिए उसकी ओर से दबाव बनाना शुरू कर दिया गया। यहां तक कि ब्रिटेन भी पाकिस्तान का ही समर्थन कर रहा था।

ब्रिटेन से आया फैक्स

लाहौर पर भारतीय सेना ने हमला तो कर दिया, लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास एक फैक्स पहुंचा। यह किसी और का नहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हेरोल्ड विलसन का था। युद्ध के लिए जिम्मेदारी दोनों देशों पर इसमें थोप दी गई थी।

इसमें कहा गया था कि भारत की एक अलग तस्वीर दुनिया के सामने लाहौर पर हमला करने की वजह से पेश हो रही है। वे शायद इस बात पर गौर फरमाना भूल गए कि हमला भारत ने नहीं, पाकिस्तान ने किया था। फिर भला भारत को कैसे दोषी ठहरा दिया गया?

भारत के साथ सोवियत रूस

इस वक्त में भारत के साथ यदि कोई खड़ा था तो वह था सोवियत रूस। चीन भी पाकिस्तान के साथ था। भारत से चीन के संबंध खराब थे। हालांकि, सोवियत रूस ने साफ कह दिया था कि यदि चीन इस जंग में दूसरा हमला करता है तो वह भारत के साथ खड़ा होगा।

पाकिस्तान, बांग्लादेश एंड द मेजर पॉवर्स: पॉलिटिक्स ऑफ ए डिवाइडेड सबकॉन्टिनेंट नामक एक किताब 1975 में आई थी। इस पूरे मामले के बारे में विस्तार से इसमें बताया गया है। सोवियत और भारत की दोस्ती उस वक्त इतनी तगड़ी थी कि इसके कारण पीछे हटने के लिए चीन को मजबूर होना पड़ा था।

शास्त्री ने मांगी जानकारी

शुरुआत में हालांकि बाहरी दबाव के बावजूद लाल बहादुर शास्त्री पीछे नहीं हटना चाह रहे थे। लाहौर फतेह के लिए वे पूरी तरह से तैयार थे। 1965 War, The Inside Story: Defence Minister Y.B. Chavan’s Diary Of India-Pakistan War नामक किताब में बताया गया है कि जयंतो नाथ चौधरी 1965 में भारत के सेना प्रमुख थे।

उनसे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 20 सितंबर, 1965 को पूछा था कि युद्ध के कुछ और दिन तक चलने से उन्हें कितना फायदा हो सकता है। इसके जवाब में सेना प्रमुख ने आर्मी के पास गोला-बारूद के खत्म होने की जानकारी दी थी। साथ ही संघर्ष विराम के प्रस्ताव को मानने के लिए भी कहा था।

गलत जानकारी ने सब कुछ बदला

चौहान के मुताबिक इसी के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने संघर्ष विराम के प्रस्ताव को मान लेने के बारे में विचार करना शुरू किया था। बाद में यह पता चला था कि सिर्फ 14 से 20 फ़ीसदी रिजर्व ही गोला बारूद का भारतीय सेना ने खर्च किया था।

इस तरीके से पाकिस्तान के लाहौर में भारत आसानी से तिरंगा लहरा सकता था। इस तरह से एक गलत जानकारी दिए जाने की वजह से लाहौर भारत का होते-होते रह गया।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान