हमारे स्वर्ग पर पाकिस्तान (Pakistan) की नापाक नजरें हैं। वही स्वर्ग, जिसे कश्मीर (Kashmir) के नाम से हम जानते हैं। आजादी के बाद से ही पाकिस्तान की कोशिश कश्मीर को हड़पने की रही है। 1947 के अक्टूबर में पाकिस्तान ने बड़ी तादाद में अपने सैनिकों को कश्मीर भेज दिया था। ये सैनिक शस्त्रों से लैस होकर यहां पहुंचे थे।
पूरे कश्मीर पर वे कब्जा करना चाह रहे थे। उसी दौरान भारत सरकार (Indian Government) ने आधिकारिक रूप से इस बात की घोषणा कर दी थी कि भारत के साथ कश्मीर के विलय के लिए महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) औपचारिक रूप से तैयार हो चुके हैं। इससे पाकिस्तान बुरी तरीके से चिढ़ गया था।
पाकिस्तानी सेना पूरी तैयारी के साथ आई थी। कई जगहों पर जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की सेना ने हमला बोल दिया था। यहां तक कि झांगर (Jhangar) पर दिसंबर में उनका कब्जा भी हो गया था। इन हमलावरों को भगाने के लिए और नौशेरा सेक्टर (Naushera Sector) की रक्षा करने के लिए राजपूत बटालियन को आदेश दिया गया।
नौशेरा सेक्टर दरअसल बहुत ही महत्वपूर्ण था। दुश्मन यदि इस क्षेत्र में स्थित टैनधार मोर्चा पर कब्जा कर लेते तो इससे श्रीनगर (Srinagar) के एयरफील्ड पर उनके लिए नियंत्रण रखना बेहद आसान हो जाता।
यही कारण था कि नौशेरा पर कब्जा जमाने की वे पूरी कोशिश कर रहे थे, ताकि पूरे कश्मीर का नियंत्रण वे अपने हाथों में ले लें। ब्रिगेडियर उस्मान (Brigadier Usman) ने भारतीय सैनिकों की अगुवाई की।
1948 में 1 फरवरी को भारत के 50 पैराब्रिगेड आगे बढ़े और पूरी बहादुरी के साथ उन्होंने नौशेरा पर धावा बोल दिया। पाकिस्तान इस हमले से एकदम घबरा गया। आखिरकार उसे पीछे हटना पड़ा। नौशेरा पर भारतीय सैनिकों ने अपना कब्जा जमा लिया।
भले ही पाकिस्तान को पीछे धकेलने में ब्रिगेडियर उस्मान की अगुवाई में आए सैनिक सफल हो गए थे, मगर वे सतर्क थे। अलग-अलग मोर्चों पर ब्रिगेडियर उस्मान ने सेना की टुकड़ियां तैनात कर दी थीं। नौशेरा हाथ से निकलने से पाकिस्तान खीझ गया था।
टैनधार पर उसने 6 फरवरी को धावा बोल दिया। अपने 9 सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ जदुनाथ सिंह (Jadunath Singh) यहां मोर्चा संभाल रहे थे। पाकिस्तान ने बहुत ही चालाकी से यहां हमला किया था। इसके आसपास की जगहों पर उसने आगजनी कर दी थी। इससे धुआं उठने लगा था।
इसी की आड़ लेकर पाकिस्तान लगातार हमले किए जा रहा था। हालांकि, दुश्मनों से जदुनाथ के नेतृत्व में भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिक पीछे हटने पर मजबूर हो गए।
कुछ देर ही बीते थे कि एक बार फिर से पाकिस्तान का हमला हुआ। इस बार वे अधिक सैनिकों और हथियारों के साथ थे। ऐसे में भारत के 4 सैनिक घायल हो गए। फिर भी अपने सैनिकों का उत्साह जदुनाथ लगातार बढ़ाते रहे। पूरी बहादुरी और वीरता से भारतीय सैनिक लड़े, लेकिन इस दौरान जदुनाथ भी घायल हो गए।-
जख्मी हो जाने के बाद भी जदुनाथ ने अपनी साहस का परिचय देना जारी रखा। इसे देखकर भारत के और सैनिक जो घायल हुए थे, वे भी पूरे उत्साह से लड़ने लगे। दुश्मनों पर एक बार फिर से भारतीय सैनिक भारी पड़ने लगे।
जदुनाथ ने इतनी गजब तरीके से नेतृत्व किया कि एक बार फिर से पाकिस्तानी सैनिक पीछे हटने पर मजबूर हो गए। वैसे ,पाकिस्तान फिर हमले की तैयारी कर रहा था। इधर जदुनाथ को बैकअप देने के लिए ब्रिगेडियर उस्मान ने सेना की एक टुकड़ी रवाना कर दी थी।
हालांकि, इस टुकड़ी के पहुंचने से पहले पाकिस्तान को तीसरी बार भारतीय सेना ने जवाब देना शुरू कर दिया था। बचे सैनिकों के साथ वे दुश्मनों से लगातार लोहा ले रहे थे। घायल हो गए थे, मगर फिर भी जदुनाथ पुरी बहादुरी से फायरिंग कर रहे थे।
अंत में जब जदुनाथ ने देखा कि अब घड़ी विकट आ गई है तो उन्होंने मशीनगन हाथ में लिया और एकदम सामने जाकर फायरिंग करना शुरू कर दिया। इसी दौरान दुश्मनों की एक गोली उनके सिर में जा लगी। एक और गोली उनके सीने में लगी। दुश्मनों से पूरी निडरता से लड़ते हुए मातृभूमि के लिए जदुनाथ शहीद हो गए।
इधर बैकअप वाली सेना भी वहां तक पहुंच गई थी। उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर हमला बोल दिया। ऐसे में पाकिस्तान की सेना एक बार फिर से पीछे हटने पर मजबूर हो गई। जदुनाथ के वीरतापूर्वक नेतृत्व करने की वजह से पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा जमाने में नाकामयाब रहा।
पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भारतीय सेना ने ध्वस्त कर दिए। जदुनाथ सिंह को भारतीय सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार भी प्रदान किया गया। वे 6 फरवरी, 1948 को परमवीर चक्र (Paramveer Chakra) से नवाजे गए।