साल 2020 कोरोना के लिए याद रखा जाएगा, लेकिन अर्थव्यवस्था में रूचि रखने वाले भी इसे कभी नहीं भूलेंगे। ये साल ऐसे आंकड़े लेकर आया है जो भारत की किसी पीढ़ी ने नहीं देखे होंगे। 2020 वित्त वर्ष की पहली तिमाही की जीडीपी -23.9 फीसदी है। अब ये वक्त है सावधान होने का और किसी भी तरह का निर्णय बहुत सोच समझ कर लेने का।
ये बर्बादी का ऐसा लेवल है जहां से आप अब विचार शायद नहीं कर सकते हैं। बेरोजगारी का आंकड़ा जानने की कोशिश मत करियेगा क्योंकि जब जानना चाहिए था और जानने के बाद सरकार बहादुर से सवाल करना चाहिए ता, तब तो चीनी ऐप्स को बैन करने की खुशी मनाई जा रही थी, सुशांत की खुदकुशी में सीआईडी बने हुए थे। तो अब पछताए होत क्या जब ‘मोर’ चुग गया खेत।
ऐसे में संतुष्टि मिलती अगर हम कोरोना की जंग जीत जाते, लेकिन कोरोना की जंग में भी हम हार गए हैं। सरकार बहादुर के राज में रोज के लगभग 80 हजार मामले आ रहे हैं और रोज हजार तो मृतकों की संख्या बनी हुई है। 5 महीनों से ज्यादा हो गए हैं और एक बार फिर जनता हार गई है क्योंकि उसने आदत डाल ली है Compromise कर लिया है। कोरोना के माहौल को नया नॉर्मल कह देना और कुछ नहीं बल्कि अपनी नाकामी छुपाने का बहाना है। ये वैसा ही है जैसा दुर्घटना होने पर हम सड़क के टूटे होने को दोष देते हैं।
जीडीपी के गिरने के लिए कोरोना को दोष दे दिया जा रहा है। बिलकुल ठीक बात है, कोरोना की वजह से जीडीपी गिरी है, लेकिन कभी इस सरकार से पूछने की कोशिश करियेगा कि मार्च से पहले क्यों जीडीपी 3.1 फीसदी था।
तब तो कोरोना नहीं था बल्कि तब तो नमस्ते ट्रंप और हाउडी मोदी हो रहा था। जब एक बच्चा परीक्षा में फेल होता है तो वो बहाना सोचता है ना, ऐसा ही कुछ कोरोना पर हो रहा है। बलि का बकरा तो सुना ही होगा, पहले कोरोना के मामले छुपाने के जमात को बलि का बकरा बनाया ता, अब अपनी फेल हुई आर्थिक नीतियों के लिए कोरोना को बलि का बकरा बना दिया है।
लेकिन आपको क्या आप मजे से बैठ कर मुझे ड्रग्स दो, मुझे ड्रग्स दो वाले सच्चे देशभक्त को देखिये और कहिये की हिंदू खतरे में हैं। सुशांत के निधन पर जज, वकील, गवाह, सब बनिये और इतने में कोई मोर के साथ वीडियो बना कर अर्थव्यवस्था की डूबती नांव के पुरजे छुपाने का काम कर रहा है।
जब तक आप जागेंगे तब तक नेहरू, गांधी, मुगल, प्रोफेट किसी न किसी की जिम्मेदारी तय कर दी जाएगी। और मंदिर भी तो बन ही रहा है ना। उसके उत्सव के लिए आपको तैयार होना है। तो टेंशन नॉट आखिर मोदी है ना और वैसे भी मोदी नहीं तो कौन? ये सवाल आपके जहन में इस तरह से घोल दिया गया है कि इसका उत्तर खोजने की सचो भी नहीं सकते।
आप जानते हैं अर्थव्यवस्था गिर रही है और बहुत पहले से लगातार गिरती आ रही है। कभी गिरती अर्थव्यवस्था के लिए ओला-उबर तो कभी भगवान को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। वित्त मंत्री के हिसाब से कोरोना एक्ट ऑफ गॉड है इसलिए वो कुछ नहीं कर सकती है।
ऐसे में वित्त मंत्री से तीखे सवाल होने चाहिए थे, जनता को पूछने थे, मीडिया को पूछने थे, विपक्ष को पूछने थे। लेकिन आलम देखिये तीनों में से कोई नहीं पूछता जनता कहती है मीडिया और विपक्ष का काम है। मीडिया की तो क्या ही कहने और विपक्ष खुद को इतना लाचार समझ चुका है कि सवाल पूछने में भी सोचता है कहीं बची हुई इज्जत भी निलाम ना हो जाए।