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क्यों कर रहा है किसान प्रदर्शन? क्या है उसकी नाराजगी का कारण

अध्यादेश के विरोध में प्रदर्शन करने जा रहे भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं को दिल्ली से सटे अलग-अलग राज्यों की सीमा पर रोक लिया गया।
Information Taranjeet 17 September 2020
क्यों कर रहा है किसान प्रदर्शन? क्या है उसकी नाराजगी का कारण

कुछ दिन पहले हरियाणा में किसानों ने प्रदर्शन किया। भारी संख्या में किसानों ने सरकार के 5 जून को लाए गए तीन नए अध्यादेशों का विरोध किया और सड़कों पर उतरे। प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया और किसानों की पिटते हुए कई सारी तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी वायरल होने लगीं। कृषि क्षेत्र से जुड़े ही इन तीन अध्यादेशों को लेकर पंजाब, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना में भी किसानों ने प्रदर्शन किया। अध्यादेश के विरोध में प्रदर्शन करने जा रहे भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं को दिल्ली से सटे अलग-अलग राज्यों की सीमा पर रोक लिया गया।

किसान प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में घुसने नहीं दिया गया

दिल्ली के जतंर मतंर पर प्रदर्शन करने निकले किसानों को सबसे पहले हरियाणा से अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल के किसानों को नरेला थाने पर, उत्तर प्रदेश से गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली के किसानों को यूपी गेट पर गाजीपुर पर रोक दिया गया। लेकिन भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने यूपी गेट पर ही धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया और सड़कों पर ही बैठकर नारेबाजी की।

किसान क्यों है नाराज?

केन्द्र सरकार द्वारा 5 जून को लाए गए अध्यादेशों का देश के कई किसान विरोध कर रहे हैं और सरकार इन अध्यादेशों को एक देश एक बाजार के रूप में कृषि सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम बता रही है। किसानों के संगठन भारतीय किसान यूनियन का मानना है कि किसानों को इन कानूनों के कारण कंपनियों का बंधुवा बन जाने का खतरा है।

कृषि में कानून नियंत्रण, भंडारण, आयात-निर्यात, किसान हित में नहीं है। इसका खामियाजा देश के किसान विश्व व्यापार संगठन के रूप में भी भुगत रहे हैं। देश में 1943-44 में बंगाल के सूखे के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनाज भंडारण के कारण 40 लाख लोग भूख से मर गये थे।

क्या कहते हैं तीनों अध्यादेश

1. कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश

इस अध्यादेश के तहत किसान अपनी तैयार फसलों को कहीं भी किसी भी व्यापारी को बेच सकता है। अपने क्षेत्र की APMC मंडी में बेचने की मजबूरी नहीं होगी। सरकार इसे एक देश एक बाजार के रूप में सामने रख रही है।

2. मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश

इस अध्यादेश के तहत मोटे तौर पर किसान को अपनी फसल के मानकों को तय पैमानों के आधार पर फसलें बेचने का कॉन्ट्रैक्ट करने की मंजूरी देता है। ऐसा माना जा रहा है कि इससे किसान का जोखिम कम हो सकता है।

3. आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन

साहूकार और व्यापारी पहले सस्ती दरों पर फसलों को खरीदकर भारी तादाद में भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे। सरकार ने इस कालाबाजारी को रोकने के लिए 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया था। लेकिन अब नए संशोधन के तहत इसमें से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल और आलू जैसे कृषि उत्पादों को हटा लिया गया है। लेकिन शर्त ये रखी गई है कि राष्ट्रीय आपदा और आपातकाल की स्थिति में लागू नहीं होगा। इसके बाद से व्यापारी जितना चाहे उतने माल का भंडारण कर सकेंगे।

किसानों की मूल चिंता MSP के सिस्टम में छेड़छाड़ को लेकर है। उनकी मांग है कि सरकार को समर्थन मूल्य पर कानून बनाना चाहिए। इससे बिचौलियों और कम्पनियों द्वारा किसान का किया जा रहा अति शोषण बन्द हो सकता है और इस कदम से किसानों की आय में वृद्धि होगी। समर्थन मूल्य से कम पर फसल खरीदी को अपराध की श्रेणी में रखा जाए।

सरकार की दलील

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सुखबीर सिंह बादल को पत्र लिखकर कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश के बारे में बताया कि इससे सिर्फ APMC मंडी के क्षेत्र के बाहर फसलें खरीदने बेचने की अनुमति मिलेगी। ये एक तरह से किसानों के लिए वैकल्पिक मार्केटिंग चैनल को तैयार करेगा। इसके साथ-साथ APMC मंडियां भी काम करती रहेंगी। अब किसानों के पास विकल्प होगा कि वो जहां चाहें वहां अपनी फसलें बेच सकेंगे। इससे ये भी होगा कि APMC को अपनी दक्षता में सुधार करने के लिए प्रतियोगिता भी मिलेगी।

किसानों को MSP सिस्टम खत्म होने का डर

किसानों के इस प्रदर्शन के पीछे 2 चीजें हैं। पहला वो किसान जो APMC की मोनोपोली पर निर्भर है वो इन अध्यादेश से नाराज हैं। उनका मानना है कि इस नई व्यवस्था के आने के बाद सरकारी MSP खरीदी की प्रक्रिया खत्म कर दी जाएगी। हालांकि अध्यादेश में प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर इस तरह की कोई बात नहीं कही गई है कि इस नए सिस्टम के बाद MSP आधारित सरकारी खरीद को खत्म कर दिया जाएगा।

किसान नेताओं का मानना है कि इस अध्यादेश के लाने के पीछे नीयत ये है कि शांता कुमार की हाई लेवल कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए। इस पैनल ने साल 2015 में अपनी रिपोर्ट सबमिट की थी और कहा था कि फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) को सारी खाद्य संरक्षण की जिम्मेदारी पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सरकारों को दे देना चाहिए। ऐसा कहा जा रहा है कि केंद्र खरीदी और भंडारण से अपना हाथ खींचने की कोशिश कर रही है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.