राजस्थान में पुजारी की हत्या से एक बार फिर जंग छिड़ गई है कि हमारे देश में पुजारियों पर हमले कब तक होंगे? इससे पहले पालघर के वक्त भी कुछ ऐसा ही नजारा था, जब देश में हिंदू भावनाओं को आहत करने की बात काफी तूल पकड़ गई थी। अब राजस्थान के करौली कांड में एक पुजारी को जला देने का मामला सामने आया है। ये बहुत ही जघन्य अपराध है, लेकिन इससे भी ज्यादा खराब लोगों की सोच है खासकर टीआरपी की भूख से तड़पने वाले पत्रकारों की। जो मीडिया पहले चीख-चीख कर हाथरस में पहुंची हुई थी, वहीं अब चीख रहे हैं और राजस्थान में हल्ला बोल रहे हैं। ऐसे में इन दोनों मामलों की तुलना करना बेहद ही बेवकूफी भरा है।
हाथरस में एक लड़की का गैगरेप हुआ उसके साथ दरिंदगी की गई और उसे मारा गया। वहीं राजस्थान के करौली में पुजारी को कुछ लोगों ने संपत्ति की वजह से मार दिया। यहां पर दोनों मामलों में किसी तरह की समानता नजर नहीं आती। अब बात करते हैं प्रशासन की तो हाथरस में पीड़ित परिवार को एक तरह से बंद कर के रखा हुआ था, मीडिया को जाने से रोका था, पीड़ित परिवार को धमकाया जा रहा था, पुलिस और डीएम का रवैया बेहद ही खराब था।
वहीं राजस्थान के करौली में ऐसा कुछ भी नहीं है। पीड़ित परिवार से कोई भी मिलने के लिए जा सकता है, पुलिस ने किसी को रोका नहीं है, मीडिया के जाने में किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। नेता, मीडिया, वकील कोई भी मिलने के लिए जा सकता है। परिवार को डराया धमकाया नहीं जा रहा है। सबसे बड़ी बात देर रात को पीड़ित के शव को जला कर ठिकाने नहीं लगाया गया है। तो कैसे ये मामले एक जैसे हुए?
यूपी के हाथरस में परिवार सिर्फ अपनी बेटी को मांग रहा था, वो किसी तरह का मुआवजा नहीं मांग रहा था। वो सिर्फ आरोपी को जेल और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग कर रहा था, साथ ही डीएम को हटाने पर लगा हुआ था। अब बात करते हैं करैली के पीड़ित परिवार की तो करौली में लोग 50 लाख का मुआवजा मांग रहे हैं, एक सरकारी नौकरी, एक पक्का मकान। तो ये तो एक वसूली का जरिया बन गया है। क्योंकि परिवार को मृतक से ज्यादा मुआवजे का मन लग रहा है।
इस पूरे प्रकरण में किसी भी तरह का मुआवजा देने के लिए सरकार क्यों बाध्य हो रही है? क्या सरकार की तरफ से किसी तरह की लापरवाही बरती गई? नहीं, क्या सरकार ने कुछ छुपाया? नहीं तो फिर क्यों आम जनता के पैसे से मुआवजा दिया जा रहा है। मर्डर केस है इसके लिए मुआवजा क्यों? क्योंकि वो सिर्फ साधू है और सियासत चमकानी है।
वैसे तो मुआवजा सरकार की तरफ से हाथरस में भी नहीं दिया जाना चाहिए था, ये पूरा मामला डीएम और एसपी के कारण हुआ तो इसमें उनसे इसकी वसूली की जानी चाहिए, जनता के पैसे से क्यों मुआवजा दिया जाए। इन दोनों केसों में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसमें आपदा जैसा हो। लेकिन हाथरस में माना मुआवजा देना चाहिए था, लेकिन करौली में किसलिए दिया गया। ऐसे तो फिर हर संपत्ति केस में मुआवजा दिया जाएगा। ये एक गलत प्रक्रिया बन रही है जिसे रोकना बेहद जरूरी है।