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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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चीन का 1962 का हमला और उसके पीछे का वह घिनौना सच

चीन में तब चार करोड़ लोगों की भूख से मौत हो गई थी। लोग कुछ भी खाने के लिए तैयार रहते थे। बच्चों को आपस में बदल लेते थे। अपने बच्चे को तो खा नहीं सकते थे।
Information Anupam Kumari 19 October 2020
चीन का 1962 का हमला और उसके पीछे का वह घिनौना सच

भारत और चीन के बीच 1962 में भीषण जंग हुई थी। चीन ने अचानक से हमला कर दिया था। 19 अक्टूबर, 1962 को चीन ने हमला किया था।

चीन ने भारत पर हमला तो जरूर किया था, लेकिन अचानक वह पीछे क्यों हट गया? इसके बारे में अलग-अलग लोग अलग-अलग राय रखते हैं। ज्यादातर लोग मौसम को लेकर बात करते हैं। वे कहते हैं कि सर्दियों का मौसम नजदीक आते देख चीन ने ऐसा किया था। चीन को डर था कि रास्ता बंद हो गया तो वे फंस जाएंगे। उसके सैनिक हिमालय के बीच में फंस कर रह जाते।

हमले का क्या था मकसद?

ऐसे में ‘द एलीफेंट एंड द ड्रैगन’ नामक एक किताब का विवरण बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। यह किताब रोबिन मेरेडिथ ने लिखी है। इसमें यह जिक्र है कि चीन ने हमला आखिर क्यों किया था? आखिर क्या वजह थी कि चीन ने अचानक से लड़ाई बंद भी कर दी थी। भारत ने चीन को उकसाया भी नहीं था। फिर हमला करने का मतलब क्या था।

हथिया सकता था असम भी

चीन की सेना बहुत ही तेजी से आगे बढ़ी थी। ब्रह्मपुत्र घाटी तक वह पहुंचने वाली थी। कैलाश मानसरोवर उनके कब्जे में आ गया था। अक्साई चीन के भूभाग को उसने हथिया लिया था। असम तक भी चीन का पहुंचना मुश्किल नहीं था। तेजपुर तब तक खाली कर दिया गया था। फिर भी चीन लौट गया। अक्साई चीन को उसने लद्दाख में बस अपने पास रखा। अरुणाचल से भी चीन तब लौट गया।

वापसी की जब की बात

तब पूर्णेन्दु कुमार बनर्जी चीन में भारत के राजदूत थे। चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने 19 नवंबर को उन्हें बुलाया। उन्होंने बताया कि 21 तारीख से चीनी सेना की वापसी होने लगेगी। बिल्कुल ऐसा ही हुआ था। अब तो यह रहस्य और गहरा गया कि चीन ने ऐसा क्यों किया? लौट ही जब उसे जाना था तो हमला करने की वजह क्या थी।

पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की नींव माओ ने 1949 में चीन में रखी थी। हर किसी के लिए वे बराबरी का दर्जा चाहते थे। सामूहिक खेती चीन में वर्ष 1955 में उन्होंने शुरू करवा दी। जमीन पर से लोगों का अपना खुद का अधिकार समाप्त हो गया।

वो भयानक अकाल

नतीजा यह हुआ कि उपज 40 फीसदी तक घट गई। देश में भयानक अकाल पड़ने लगा। इधर माओ तेजी से आगे बढ़ने लगे थे। देश में फिर सामूहिक खेती खत्म कर दी गई। कम्यून बनाने शुरू कर दिए गए। 10-10 हजार की आबादी के लिए ये बनाए गए थे। हर कोई यहां उत्पादन में अपनी तरफ से योगदान देता था।

टैक्स के रूप में एक तिहाई हिस्सा सरकार के पास चला जाता था। फिर इसमें भ्रष्टाचार शुरू हुआ। पार्टी की नजर में कम्यून के पदाधिकारी आना चाहते थे। उत्पादन को लेकर बड़े-बड़े दावे वे करने लगे। नतीजा यह हुआ कि सारा उपज टैक्स में ही चला जाता था। ऑफिस जाने वालों के लिए कुछ बचा ही नहीं था।

माओ की औद्योगिक क्रांति

देश अकाल की चपेट में था। माओ को इसकी खबर तक नहीं थी। वे तो औद्योगिक क्रांति लाने में लगे हुए थे। हर घर अकाल की चपेट में था। वे हर घर में धातु की चीज भट्टी में गलाने का आदेश दे रहे थे। उनकी चाहत थी कि देश में भरपूर लोहे का उत्पादन हो। ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया जाए।

निर्यात तब भी जारी था

किताब ‘द एलीफेंट एंड द ड्रैगन’ में भुखमरी का वर्णन किया गया है। चीन में तब चार करोड़ लोगों की भूख से मौत हो गई थी। लोग कुछ भी खाने के लिए तैयार रहते थे। बच्चों को आपस में बदल लेते थे। अपने बच्चे को तो खा नहीं सकते थे। इतनी भयानक भुखमरी का तब इस देश में आलम था। जबकि सरकारी गोदामों में अनाज की कोई कमी नहीं थी। निर्यात तक चल रहा था।

माओ की थी ये चाल

बर्टील लिंटनर एक मशहूर पत्रकार रहे हैं। वे एक स्कॉलर भी रहे हैं। चाइनाज इंडिया वॉर नामक एक किताब उन्होंने वर्ष 2018 में लिखी थी। उन्होंने साफ किया है कि आखिर क्यों 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था। चीन को दुनिया का ध्यान भुखमरी से हुई मौत पर से भटकाना था। माओ ने भारत पर हमले के जरिए राष्ट्रवाद से अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने की चाल चली थी।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान