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जिससे रह रहे थे दूर-दूर, उसी के समर्थन से बिहार में बनी थी तब कर्पूरी सरकार

जनसंघ के समर्थन को लेकर मतभेद हो गए थे सोशलिस्ट पार्टी में। दो गुट बने थे। पार्टी टूट गई थी। फिर भी कर्पूरी ठाकुर तो मुख्यमंत्री बन ही गए।
Information Anupam Kumari 2 November 2020
जिससे रह रहे थे दूर-दूर, उसी के समर्थन से बिहार में बनी थी तब कर्पूरी सरकार

राजनीति बड़ी अजीब होती है। कब कौन सी करवट ले ले, कुछ पता ही नहीं चलता। बिहार की राजनीति तो हमेशा से ऐसी ही रही है। इतनी करवटें यहां की राजनीति ने ली हैं कि बताना मुश्किल है। पल-पल यहां हैरान करने वाली चीजें हमेशा से होती रही हैं।

यहां का राजनीतिक इतिहास बेहद पेचीदा रहा है। कब कौन किसके साथ चला जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। जो कल हो रहा था, वह आज भी हुआ है।

गैर कांग्रेसी सरकार

1967 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए थे। यह खास इसलिए था, क्योंकि इस दौरान बदलाव हुआ था। जी हां, पहली गैर कांग्रेसी सरकार बिहार में बनी थी। मुख्यमंत्री बने थे महामाया प्रसाद सिन्हा। गैर कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री थे वे। पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी थे।

कांग्रेस बहुमत से दूर

बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा की अगुवाई में सरकार बन गई। फिर भी ज्यादा दिनों तक यह चल नहीं पाई थी। दरअसल, यह चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत बुरा साबित हुआ। बहुमत से कॉन्ग्रेस दूर रह गई थी। महामाया प्रसाद सिन्हा ने सरकार ऐसे में बना ली। फिर भी 10 महीने तक ही सरकार टिकी रह सकी। आखिरकार सरकार का पतन हो गया।

तीन दिनों की सरकार

फिर आया 1968 का 28 जनवरी। अब फिर एक सरकार बनी बिहार में। अगुवाई की इस सरकार की सतीश प्रसाद सिंह ने। आप भी सोचेंगे कि एक ऐसी सरकार थी, जो तीन ही दिनों में गिर गई थी।

बीपी मंडल की सरकार

फिर बनी एक और सरकार। तारीख थी 1 फरवरी, 1968। अबकी बनी सरकार बीपी मंडल के नेतृत्व में। जी हां, बीपी मंडल की सरकार यह कहलाई। लगा था कि कम-से-कम यह सरकार तो चलेगी, लेकिन एक महीने में ही यह भी गिर गई थी। जी हां, सरकार को गिराया था कांग्रेस ने। कांग्रेस क्या, उसका सहयोग रहा था।

95 दिनों की सरकार

अब एक बार फिर से बिहार को नया मुख्यमंत्री मिला। 22 फरवरी, 1968 का यह दिन था। अबकी भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बन गए। लगातार पिछली कुछ सरकारों से इस बार यह थोड़ी स्थाई दिख रही थी। फिर भी इनकी भी सरकार ज्यादा नहीं चल पाई। 95 दिनों में ही सरकार गिर गई।

राष्ट्रपति शासन की नौबत

अब राष्ट्रपति शासन की स्थिति आ गई। राज्य में जून में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई। 1969 में ये चुनाव हो गए। इस बार भी जनाधार किसी के पक्ष में नहीं रहा। कहने का मतलब है कि पूर्ण बहुमत किसी भी दल को मिला ही नहीं।

सरदार हरिहर प्रसाद सिंह को मौका

कांग्रेस को इस चुनाव में 118 सीटें ही मिली थीं। यह बहुत कम हो गई थी। अबकी मुख्यमंत्री बने सरदार हरिहर प्रसाद सिंह। कांग्रेस के विभाजन के बारे में आपने सुना होगा। इसी समय यह विभाजन हुआ था। इस तरह से फिर भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बने।

दरोगा प्रसाद राय भी

इसके बाद सीएम बनने का मौका दरोगा प्रसाद राय को मिला। फिर कर्पूरी ठाकुर भी मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद भोला पासवान शास्त्री एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने। बतौर सीएम यह उनका तीसरा कार्यकाल था।

बनी कर्पूरी सरकार

इस तरह से 1970 में 22 दिसंबर को एक बार फिर से सरकार बनी। जी हां, यह एक मिली-जुली सरकार थी। इस बार मुख्यमंत्री बने कर्पूरी ठाकुर। वही कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें बिहार आज भी याद करता है। कर्पूरी ठाकुर के सिद्धांतों की आज की राजनीति में दुहाई दी जाती है।

समर्थन जनसंघ का

हैरानी होगी आपको जानकर कि यह सरकार जनसंघ के समर्थन से बनी थी। रामानंद तिवारी भी सरकार बनाने वाले थे। ज्यादा नहीं, कुछ समय पहले ही। जनसंघ का ही सहयोग मिल रहा था। संभावना प्रबल थी। फिर आपस में ही पार्टी में बवाल होने लगा। बवाल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया। आखिरकार सरकार नहीं बनी। रामानंद तिवारी खुद पीछे हट गए थे।

किताब कहती है

बिहारनामा नाम की एक किताब है। इसे लिखा है हेमंत ने। ये वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं। सरकार तो कर्पूरी ठाकुर की बन गई थी। हालांकि, यह सरकार भी सिर्फ 163 दिनों तक ही चल पाई थी। 1971 में 2 जून को सरकार का पतन हो गया था। रामानंद तिवारी जो सीएम नहीं बन पाए थे, इस सरकार में पुलिस मंत्री बने थे।

जनसंघ के समर्थन को लेकर मतभेद हो गए थे सोशलिस्ट पार्टी में। दो गुट बने थे। पार्टी टूट गई थी। फिर भी कर्पूरी ठाकुर तो मुख्यमंत्री बन ही गए।

Anupam Kumari

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