दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नए-नए प्रयोग करने से हिचकिचाते नहीं है। कभी वो केंद्र सरकार के कट्टर दुश्मन हो जाते हैं, तो कभी वो उनके दोस्त बन जाते हैं। वहीं राजनीति का खेल ऐसे ही खेलते खेलते वो दिल्ली के 3 बार मुख्यमंत्री बन गए। उनको जनता ने खूब प्यार दिया है। हालांकि पहली बार वो जनता की नजरों में खटक रहे हैं, क्योंकि कोरोना की मार दिल्ली पर काफी ज्यादा पड़ी है और कम होने का नाम नहीं ले रही है। लेकिन यहां बात हम कोरोना की नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक दाव की करेंगे। पिछले कुछ समय से अरविंद केजरीवाल सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं। पहले चुनाव में हनुमान जी को याद करना और फिर बड़े लेवल पर दिवाली मनाना।
अब अरविंद केजरीवाल की राजनीति में जय श्रीराम की भी गूंज आने लगी है। अब अगर इसके राजनीतिक मायने निकाले जाए, तो साफ है कि साल 2022 में होने जा रहे यूपी विधानसभा चुनावों के लिए टीम केजरीवाल तैयारियों में जोर शोर से जुट गयी है। आम अवधारणा तो यही है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, लेकिन आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली से अयोध्या के रास्ते लखनऊ पहुंचने की कोशिश में लगते हैं। ऐसा हो सकता है कि ऐसी राजनीति के पीछे अरविंद केजरीवाल की नजर केंद्र की सत्ता की सीढ़ी पर हो।
आम आदमी पार्टी ने अपनी तरफ से उत्तराखंड में एक सर्वे कराया गया था। जिसके मुताबिक 62 फीसदी लोगों ने अपनी राय जाहिर की थी कि आम आदमी पार्टी को राज्य में चुनाव लड़ना चाहिये और इसके बाद अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि आम आदमी पार्टी 2022 में होने जा रहे उत्तराखंड विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। 2022 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ पंजाब और गोवा में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। साल 2017 में हुए पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी पूरी ताकत के साथ मैदान में कूदी थी, लेकिन कहीं बात नहीं बनी। पंजाब को लेकर तो अरविंद केजरीवाल ने कहा भी और दिल्ली की तरह खूंटा गाड़ कर बैठे भी लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले।
यूपी चुनाव की तैयारी और उत्तराखंड की घोषणा को देखते हुए ये तो मान कर ही चलना चाहिये कि आम आदमी पार्टी पंजाब में तो चुनाव लड़ेगी ही और वैसे चुनाव लड़ने के ऐलान का क्या है। कहने को तो रेवाड़ी की रैली में भी अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी 2019 में हरियाणा की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि कुछ सीटों पर वो लड़ी लेकिन दिल्ली से कोई छोटा मोटा नेता भी प्रचार के लिए नहीं पहुंचा था। वैसे भी दिल्ली की लड़ाई के आगे हरियाणा में हाथ आजमाने का कोई मतलब भी नहीं रहा था।
गोवा से लेकर गुजरात तक विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन पंजाब से भी घटिया रहा है। 2019 के आम चुनाव में तो आप उम्मीदवार को दिल्ली की ज्यादातर संसदीय सीटों पर कांग्रेस ने धक्का देकर तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया था हालांकि दिल्ली विधानसभा चुनावों से सत्ता में वापसी के बाद आम आदमी पार्टी ने नए सिरे से खुद को खड़ा कर लिया था। अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व वाली राजनीति के साथ ही दिल्ली सरकार के कई फैसलों को राष्ट्रवादी विचारधारा से भी जोड़ कर देखा जाता है। जैसे कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का केस चलाने की मंजूरी देने की तरह ही जेएनयू के एक और पूर्व छात्र उमर खालिद के खिलाफ भी दिल्ली दंगों के मामले में केजरीवाल सरकार का वैसा ही फैसला ही देखा गया है।
2017 जब अरविंद केजरीवाल पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों को लेकर हद से ज्यादा उत्साहित और सक्रिय नजर आ रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाने को लेकर सवाल पूछा गया था। अरविंद केजरीवाल ने तब बताया था कि आप के पास यूपी में बैंडविथ नहीं है। तब तो यही लगा था कि अरविंद केजरीवाल के बैंडविथ का मतलब संगठन और बाकी संसाधनों से हो सकता है और समझने वाली एक बात ये भी रही कि आम आदमी पार्टी के पास उत्तर प्रदेश से सबसे बड़ा चेहरा अरविंद केजरीवाल के बेहद करीबी और भरोसेमंद संजय सिंह है, जो तब पंजाब के प्रभारी थे।
उत्तर प्रदेश में आम चुनाव के दौरान बहुत ही बुरे अनुभव के बावजूद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी संसद में सीएए विधेयक लाये जाने के वक्त से ही 2022 की तैयारियों में जुटी हुई हैं। बाद में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए बसे भेजे जाने से लेकर हाथरस गैंगरेप की घटना तक उनके तेवर बरकरार देखे गये हैं। उस दौरान आम आदमी पार्टी भी सक्रिय दिखी थी।
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तरह ही यूपी में भी अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की फौज से जूझना होगा। बताने के लिए अरविंद केजरीवाल के पास दिल्ली सरकार के काम भी होंगे, लेकिन दिल्ली और यूपी की राजनीति में बड़ा फासला है। दिल्ली चुनाव में तो अरविंद केजरीवाल अपने राजनीतिक विरोधियों के जाति और धर्म की बेड़ियों में जकड़ने की कोशिशों के बावजूद सफल रहे, लेकिन यूपी में वही सिक्का चल पाएगा, संभावना न के बराबर है। यूपी की राजनीति ऐसी है कि काम बोलता है के नारे के कारनामा बोलता है में बदलते देर नहीं लगती।