भारत के अंदर सिर्फ नेता ही समस्या नहीं है बल्कि उनके द्वारा फैलाया गया भ्रष्टाचार भी बेहद बड़ा मुद्दा है। इसे लेकर एक वक्त पर पूरे देश ने आवाज भी बुलंद की थी और उस वक्त देश ने दूसरा गांधा देखा था, जिसका नाम अन्ना हजारे था। साल 2013 में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एक कानून भी बनाया गया हालांकि वो कानून अन्ना को सही नहीं लगा।
लेकिन जो बना था वो भी आज तक सही से लागू नहीं हो पाया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा साल 2018, 2019 और 2020 में दिए गये निर्देश के बावजूद 8 राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए गए हैं और केंद्र के लोकपाल में भी 2 पद खाली पड़े हैं। 9 राज्यों में अभी तक लोकायुक्त कानून भी नहीं बना है और 10 राज्यों में लोकायुक्त की वेबसाइट तक नहीं है। आलम ये है कि सिर्फ महाराष्ट्र, ओडिशा और मिजोरम में लोकपाल को शिकायत भेजने के लिए ऑनलाइन प्रावधान है।
सरकारी तंत्र में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के मामलों को रोकने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त संस्था बनाने का प्रावधान किया गया है। भारत में साल 1963 में पहली बार एलएम सिंघवी ने लोकपाल और लोकायुक्त शब्दों का जिक्र किया था। पहली बार लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 1968 में लोकसभा में पेश हुआ था लेकिन पास ना हो सका था।
इसके बाद वो कई बार संसद में पेश किया गया और हर बार बेनतीजा निकला। इसके बाद साल 2011 में अन्ना हजारे की अगुवाई में देश भर में लोकपाल के लिए आंदोलन हुआ और कई महीनों तक जनता सड़कों पर उतरी आलम ये हुआ की सरकार को पूरी तरह से बैकफुट पर आना पड़ा। जैसे-तैसे साल 2013 में कानून बन गया, लेकिन इसकी स्थिति आज भी काफी खराब है।
इस कानून के अनुसार इसके बनने के एक साल के अंदर राज्यों में लोकायुक्त बनाना था, लेकिन 7 सालों के बाद भी बहुत से राज्यों में न तो लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है और न ही लोकपाल कानून में कोई बदलाव हुआ है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 63 में कहा गया है कि संसद से लोकपाल कानून को पारित किए जाने के एक साल के अंदर हर राज्य को लोकायुक्त की नियुक्ति करनी होगी। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में भी राज्यों से कहा था कि वो समयसीमा के अंदर लोकायुक्त चुनें, लेकिन इसका भी राज्य सरकारों ने अभी तक पालन नहीं किया है। अभी तक सिर्फ चार राज्यों में ही लोकायुक्त के साथ उप लोकायुक्त भी हैं।
कानून बनने के बाद और अन्ना के द्वारा जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट करने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि अब भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। चाहे फिर वो किसी भी पार्टी की सरकार रही हो। सरकार भ्रष्टाचार पर केवल नारा लगाती है, जबकि जमीनी स्तर पर काम बेहद निराशाजनक है।
सरकार कानून को कमजोर करने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति में देरी करती है। इसके अलावा लोकयुक्त की रिपोर्ट पर सालों कार्रवाई नहीं होती है, विधानसभा में वार्षिक रिपोर्ट तक नहीं पेश करते हैं। देश में जल्द से जल्द सूचना का अधिकार कानून की तर्ज पर जनता के समस्याओं के निवारण के लिए कानून बनाना चाहिए। वहीं सरकार डिजिटल इंडिया को भी खूब महत्व देती है, लेकिन इस मामले पर सभी सरकारों का इंटरनेट खत्म हो जाता है। वहीं शिकायत करने के लिए भारी फीस भी देनी पड़ती है। जैसे कि गुजरात में 2 हजार रुपये।