भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा की सभ्यता के नाम से भी जानते हैं। यह सभ्यता 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई दिखाई देती थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान और पश्चिमी भारत के नाम से पहचाना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता मेसोपोटामिया,भारत,मिस्र,और चीन की चार सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक बड़ी थी।
1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग (ASI) के द्वारा किये गए सिंधु घाटी के संशोधन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा और मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई थी। ASI के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की थी।
सिंधु घाटी की सभ्यता के धार्मिक जीवन के बारे में कुछ जानकारी पुरातत्व विभाग द्वारा प्राप्त हुई है। जिनमें मिट्टी की अलग-अलग मूर्तियां, पत्थर की छोटी मूर्तियां, मृद्भांड प्रमुख हैं। सिंधु घाटी के लोग एक ईश्वरीय सत्ता में विश्वास रखते थे। ईस्वरीय सत्ता के दो स्वरुप थे परम् पुरुष और परम् स्त्री।
सिंधु घाटी से सबसे अधिक नारी की मृण्मूर्तियां प्राप्त होती थी। घाटी से प्राप्त एक मुहर में एक स्त्री के गर्भ में से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है। इसको शायद पृथ्वी देवी की प्रतिमा माना जाता है। इससे मालूम होता है कि घाटी के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उनकी पूजा करते थे।
सिंधु घाटी में पशुओं में कूबड़ वाला साँड़ इन लोगों के लिए विशेष पूजनीय था।यहाँ से प्राप्त एक मुहर में एक पशु की आकृति मिली है जिसमे उसके तीन सिर होते हैं, जिसमें ऊपर के दोनो सिर बकरे के और नीचे का तीसरा सिर भैंसे का होता है।
सिन्धु सभ्यता से बड़ी संख्या में ताबीज मिले हैं। इससे हम ये अनुमान लगाया जा सकता है कि वो लोग भूत प्रेत, जादू टोना में विश्वास करते थे।
नाग पूजा के प्रचलन के संकेत भी सिंधु घाटी से ही मिलते हैं। घाटी से ही हमे नाग पूजा का महत्तम मिला है
सिंधु घाटी के लोग दो रूप से वृक्ष की पूजा करते है एक जीवन्त रूप में और दूसरा प्रकृति रूप में। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा में एक पीपल के वृक्ष की दो टहनियों के बीच से एक पुरुष आकृति को निकलते हुए दिखाया गया है।
अधिकतर लोगो का यह कहते है की सिंधु घटी के पतन का मुख्य कारण बाढ़ का प्रकोप वो होना भी स्वाभाविक ही था क्योंकि सिंधु घाटी का विकास नदी क्षेत्र में हुआ था। कई लोग न केवल बाढ़ बल्कि आग लग जाना, महामारी, बाहरी आक्रमण और भी कई कारण है सिंधु सब्यता के पतन।